Coconut Cultivation: नारियल की खेती यानि 80 साल तक उपज! जानिए किस्में और प्रबंधन का तरीका

नारियल की खेती (Coconut Cultivation) गर्म तापमान में अच्छी होती है, क्योंकि इस मौसम में फल अच्छी तरह पक जाते हैं। ये 10 डिग्री से लेकर 40 डिग्री तक के तापमान को सहन कर सकते हैं।

Coconut Cultivation नारियल की खेती

नारियल के पेड़ को कल्पवृक्ष भी कहा जाता है। इसका पौधा एक बार लगाने के बाद 80 साल से भी ज़्यादा समय तक फल देता है। इसके पेड़ की  ख़ासियत है कि इसका हर हिस्सा उपयोगी है। नारियल की खेती किसानों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। इसका फल जब कच्चा होता है तो उसे नारियल पानी के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। पक जाने पर पूजा-पाठ से लेकर मिठाई और कई व्यंजनों में इसका इस्तेमाल होता है।

यही नहीं, सूख जाने पर नारियल से तेल निकाला जाता है, जिसे बालों में लगाने के साथ ही खाना बनाने में भी इस्तेमाल किया जाता है। नारियल का इस्तेमाल कई ब्यूटी प्रोडक्ट्स में भी किया जाता है। इसके अलावा, नारियल की प्रोसेसिंग करके कई तरह के उत्पाद भी बनाए जाते हैं जैसे बिस्किट, चिप्स आदि। शहरों में लोग गमलों के लिए जिस कोकोपिट का इस्तेमाल करते हैं वो भी नारियल के पेड़ से ही बनता है। इसलिए दूसरी फ़सलों की बजाय नारियल की खेती किसानों के लिए ज़्यादा फ़ायदेमंद साबित होती है। यही नहीं, चूंकि नारियल के पेड़ बहुत ऊंचे होते हैं, तो इसे खेत के किनारों में लगाकर नीचे दूसरी फसल भी उगाई जा सकती है।

नारियल के बड़े उत्पादक देश (Major Coconut Producing Countries)

भारत में नारियल का उत्पादन बहुत बड़े पैमाने पर किया जाता है। लगभग सभी राज्यों में इसकी खेती होती है, मगर दुनिया में नारियल उत्पादन में भारत का स्थान तीसरा है। पूरी दुनिया में सबसे अधिक नारियल का उत्पादन  इंडोनेशिया में होता है। दूसरे नंबर पर  फिलिपिंस आता है। भारत में केरल नारियल का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है। इसके अलावा कर्नाटक, तमिलनाडू, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा. महाराष्ट्र, गुजरात, असम और बिहार जैसे राज्यों में भी बड़े पैमाने पर नारियल की खेती हो रही है।

कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के मुताबिक, भारत की कृषि और अर्थव्यवस्था में नारियल की अहम भूमिका है। आंकड़ों के मुताबिक, देश में 2021-22 के दौरान 13411.93 मीट्रिक टन नारियल का उत्पादन हुआ। चूंकि नारियल की खेती से सालों साल फ़ायदा होता है, इसलिए सरकार भी किसानों को नारियल की खेती के लिए बढ़ावा दे रही है।

नारियल की किस्में (Coconut Varieties)

वेस्ट कोस्ट टॉल नारियल
भारत में नारियल की कई किस्में उगाई जाती हैं। नारियल की इस किस्म की खेती सबसे ज़्यादा की जाती है, क्योंकि यह अधिक उत्पादन देती है। पौधा लगाने के करीब 6-7 साल बाद इसमें फल लगने शुरू होते हैं।  इसमें तेल की मात्रा 65-70 प्रतिशत तक होती है। इसे ख़ासतौर पर कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, उड़ीसा, त्रिपुरा और लक्षद्वीप के तटीय इलाकों में बड़े पैमाने पर उगाया जाता है।

ईस्ट कोस्ट टॉल नारियल
नारियल की इस किस्म की ख़ासियत यह है कि ये तेज़ हवा का भी सामना कर लेता है। इसे अच्छी जल निकासी वाली, जलोढ़ या लाल दोमट मिट्टी में उगाया जा सकता है।  पौधा लगाने के करीब 6 से 8 साल बाद इसमें फल लगना शुरू होता है। इसे मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल, पांडिचेरी, आंध्र प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और तमिलनाडू के तटीय इलाकों में उगाया जाता है।

चौघाट ग्रीन ड्वार्फ नारियल
ये नारियल की बौनी किस्म है, लेकिन ये बेशकीमती होता है। यह मुख्य रूप से केरल में उगाया जाता है। इसका पानी बहुत पौष्टिक और स्वादिष्ट होता है। इसकी सबसे बड़ी ख़ासियत ये है कि इसमें फल जल्दी लगने  शुरू हो जाते हैं। पौधा लगाने के 3-4 साल बाद ही फल लगने लगते हैं।  इसके फल में तेल की मात्रा तकरीबन 66-68 फीसदी होती है।

केरा संकर नारियल
नारियल की ये ख़ास  किस्म अपनी बेहतरीन उपज क्षमता और गुणवत्ता के लिए लोकप्रिय है।  यह शंकर किस्म लक्षद्वीप ऑर्डिनरी टाल और चौघाट ऑरेंज ड्वार्फ का मिश्रण है। इसमें तेल की मात्रा लगभग 68-72 फ़ीसदी होती है। तमिलनाडू, कर्नाटक और केरल जैसे राज्यों में बड़े पैमाने पर इसे उगाया जाता है।

चंद्र लक्ष्य नारियल
स्वाद में बेहतरीन नारियल की ये किस्म आकार में भी बड़ी होती है। इसकी सबसे ज़्यादा खेती केरल और कर्नाटक के तटीय इलाकों में की जाती है। इसमें तेल की मात्रा 69-72 फ़ीसदी तक होती है।

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नारियल की खेती के लिए मिट्टी और तापमान (Soil & Temperature For Coconut Cultivation)

नारियल की खेती के लिए अच्छी जल निकासी वाली बलुई, दोमट मिट्टी अच्छी मानी जाती है। पथरीली ज़मीन पर इसकी खेती नहीं करनी चाहिए, क्योंकि नारियल के पेड़ की जडें बहुत गहरी होती हैं।  इसलिए सख़्त मिट्टी इसकी खेती के लिए सही नहीं होती है। भूमि का पीएच मान (pH value) 5.5 से 8.8 के बीच होना चाहिए। नारियल की खेती गर्म तापमान में अच्छी होती है, क्योंकि इस मौसम में फल अच्छी तरह पक जाते हैं। नारियल के पेड़ सामान्य तापमान में अच्छी तरह विकसित होते हैं। ये 10 डिग्री से लेकर 40 डिग्री तक के तापमान को सहन कर सकते हैं।

खेत की तैयारी (Land Preparation For Coconut Cultivation)

पौधे लगाने से पहले खेत को अच्छी तरह से तैयार करना ज़रूरी है। खेत की जुताई करके उसे समतल बना लें। ऐसा  करने पर जलभराव की समस्या नहीं होगी। जुताई करने के बाद तैयार खेत में पौधों को लगाने के लिए गड्ढे बनाएं और इन गड्ढ़ों को पंक्तियों में तैयार करें। हर पंक्ति के बीच 20 से 25 फीट की दूरी रखें और गड्ढे के बीच 15 से 20 फीट की दूरी रखें। गड्ढे एक मीटर गहरे और चौड़े होने चाहिए। गड्ढों को तैयार करते समय उसमें 20 से 25 किलो गोबर की खाद के साथ 1:2:2 के अनुपात में N.P.K. की 500 ग्राम मात्रा को मिट्टी में अच्छी तरह मिलाकर भरें।

पौधों की रोपाई का सही समय और तरीका (Method Of Sowing Coconut Plants)

नारियल के पौधों की रोपाई जून से सितंबर के बीच की जा सकती है। बरसात में रोपाई नहीं की जाती है। पौधों को खेत में तैयार गड्ढों में लगाया जाता है। यदि खेत में सफेद चींटी का प्रकोप हो, तो पौधों की रोपाई से पहले उन्हें सेविडोल 8जी की 5 ग्राम की मात्रा से उपचारित कर लें। फिर तैयार गड्ढ़ों में खुरपी से खुदाई करके पौधों को लगाएं। जहां सिंचाई की सुविधा उपलब्ध हो वहां सर्दियों के मौसम में भी इसके पौधे लगाए जा सकते हैं।

सिंचाई और पौधों की देखभाल (Irrigation & Plant Care)

रोपाई के बाद शुरुआती 3-4 सालों तक पौधों को अधिक देखभाल की ज़रूरत होती है। इस दौरान पौधों को बहुत ज़्यादा ठंड और गर्मी से बचाना होता है। नारियल के पौधों के सही विकास के लिए पर्याप्त हवा की भी ज़रूरत होती है। जहां तक सिंचाई का सवाल है तो पौधों की रोपाई अगर बारिश के मौसम में की गई है, तो ज़्यादा सिंचाई की ज़रूरत नहीं होती है।  लेकिन बरसात में अगर रोपाई न की गई हो तो पौधों को सिंचाई की ज़रूरत होती है। गर्मियों के मौसम में 3-4 दिन के अंतराल में पानी देना चाहिए, जबकि सर्दियों के मौसम में पौधों की सिंचाई हफ्ते में एक बार करें। सिंचाई के लिए ड्रिप विधि का इस्तेमाल करना अच्छा होता है। इससे पौधों को पर्याप्त पानी मिलता है और उनका विकास अच्छी तरह होता है। 3-4 साल तक सही देखभाल करने पर नारियल के पेड़ में भरपूर फल लगते हैं।

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खरपतवार नियंत्रण (Weed Management In Coconut Cultivation)

नारियल के बाग में खरपतावर नियंत्रण प्राकृतिक तरीके से करना चाहिए।  इसके लिए समय-समय पर पौधों की निराई–गुड़ाई करें। एक साल में 3-4 बार गुड़ाई करनी चाहिए।  नारियल के पौधों को तैयार होने में 5 से 8 साल का समय लगता है। ऐसे में किसान खाली पड़ी ज़मीन में दलहनी या मसाला फसलों की खेती करके अतिरिक्त कमाई कर सकते हैं।

फलों की तुड़ाई और उपज (Harvesting Of Coconut)

नारियल के पेड़ बहुत लंबे होते हैं और इसके फल एकदम ऊंचाई पर लगते हैं।  इसलिए इसे तोड़ना आसान नहीं होता है। प्रशिक्षित व्यक्ति ही पेड़ पर चढ़कर इसकी तुड़ाई करता है। नारियल के फल को तैयार होने में 15 महीने का समय लग जाता है, लेकिन ज़रूरत के हिसाब से इसे पहले भी तोड़ा जा सकता है। अगर नारियल पानी चाहिए, तो फल जब हरा दिखाई दे तभी इसे तोड़ लेना चाहिए। अगर पके फलों को तोड़ना चाहते हैं, तो जब फल का रंग पीला दिखने लगे, तो इसे तोड़ लें। पूरी तरह से पके हुए नारियल के फल से तेल और रेशा मिलता है। नारियल के एक हेक्टेयर के खेत से एक बार की फसल से करीब 50 क्विंटल तक की पैदावार होती है। इसके पेड़ 80 साल से भी ज़्यादा समय तक फल देते हैं। नारियल को कच्चा और पक्का, दोनों ही रूप में बेचा जा सकता है, जिससे किसानों को इससे अच्छी आमदनी होती है। नारियल की डिमांड हमेशा ही बनी रहती है।  नारियल पानी से लेकर पूजा तक के लिए पूरे साल इसकी मांग रहती है।

नारियल की खेती से जुड़ा वीडियो: 

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