बकरी पालन (Goat Farming): देश के छोटे, सीमान्त किसान और भूमिहीन लोगों में करीब 70 प्रतिशत का नाता बकरी और भेड़ पालन से है। ऐसे सभी पशुपालकों का वास्ता भेड़-बकरी में होने वाली साँस सम्बन्धी आम बीमारी ‘निमोनिया’ से पड़ता है। तकरीबन हरेक पशु इस बेहद संक्रामक बीमारी का शिकार होता है।
इनमें से करीब 40 प्रतिशत भेड़-बकरी मर जाते हैं। अभी तक इससे बचाव का कोई प्रभावी टीका विकसित नहीं हुआ है, लेकिन पशुधन को बचाने के लिए वक़्त रहते इलाज़ करवाना ज़रूरी है। अगर आप बकरी पालन से जुड़े हैं या इस व्यवसाय की शुरुआत करना चाहते हैं तो ये लेख आपके लिए है।
भेड़-बकरियों में होने वाले निमोनिया को डॉक्टरी भाषा में CCPP (Contagious Caprine Pleuropneumonia) या कंटेजियस कैपराइन प्लूरोनिमोनिया कहते हैं। यह जुगाली करने वाले छोटे पशुओं के लिए बेहद ख़तरनाक और चुनौतीपूर्ण रोग है। ये ‘कैपरी’ नामक जिस जीवाणु से फैलता है, उसी प्रजाति के अन्य जीवाणु पशु में थनैला, गठिया, केराटाइटिस और सेप्टिसीमिया जैसी बीमारियाँ पैदा करते हैं।
1889 से देश में मौजूद है CCPP
भारत में CCPP को पहली बार मुम्बई में 1889 में रिपोर्ट किया गया था, लेकिन मौजूदा दौर की सरकारी रिपोर्टों में आन्ध्र प्रदेश, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, झारखंड, लक्षद्वीप, ओडिशा, उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में इसकी मृत्यु दर 9.8 से 26.8 प्रतिशत तक दर्ज़ हुई है। भारत में ये रोग सभी राज्यों की बकरियों में व्यापक रूप से नज़र आता है। बकरियों की आबादी के लिहाज़ से भारत का स्थान जहाँ दुनिया में दूसरा है तो भेड़ों की आबादी के मामले में हम तीसरे नम्बर पर हैं। पशु जनगणना 2019 के अनुसार, देश में बकरियों और भेड़ की आबादी क्रमश: 14.89 करोड़ और 74.3 करोड़ है।
कब बढ़ता है संक्रमण का खतरा?
CCPP का प्रकोप मौसमी बदलाव के दौरान ख़ासा बढ़ जाता है, जैसे भारी बारिश के बाद बढ़ी ठंड। कई बार पशुओं के लम्बे परिवहन के दौरान भी वो इस बीमारी से संक्रमित हो जाते हैं। ये संक्रमण उनकी आँख और मूल-मूत्र के ज़रिये फैलता है। पशुपालकों को CCPP का महँगा इलाज़ बहुत अखरता है। यदि पशु मर जाए तो उन्हें बहुत नुकसान होता है। वैसे तो ये बीमारी किसी भी उम्र में हो सकती है, लेकिन युवा और कमज़ोर रोग-प्रतिरोधक क्षमता वाली बकरियाँ इसके चपेट में ज़्यादा आती हैं।
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CCPP के लक्षण
बकरियों में इस संक्रमण के अलग-अलग लक्षण देखे जाते हैं। उनमें 106 डिग्री फॉरेनहाइट या 41 डिग्री सेल्सियस जैसे तेज़ बुखार के साथ ख़ून में सेप्टीसीमियाँ के लक्षण, गम्भीर खाँसी, नाक का बहना, साँस लेने में तकलीफ़, गठिया, थनैला और शरीर के वजन में कमी के लक्षण नज़र आते हैं। संक्रमित पशु को साँस लेने में बहुत तकलीफ होती है और उसके साँस लेने की दर बहुत बढ़ जाती है। संक्रमित पशु अपने अगले दोनों पैर फैला कर चलता है। उसमें चलने-फिरने की ताकत नहीं होती। पीड़ित बकरियों के फेफड़े बहुत कठोर होने लगते हैं और उनका साँस लेना मुहाल हो जाता है।
CCPP का उपचार
ICAR भारतीय पशु चिकित्सा अनुसन्धान संस्थान, बरेली के विशेषज्ञों के अनुसार, ऑक्सीटेट्रासाइक्लिन, एन्रोफ्लोक्सासिन, फ्लोरफेनिकॉल, टायमलिन, डैनोफ्लोक्सासिन, एरिथ्रोमाइसिन, टाइलोसिन, डोक्सीसाइक्लिन तथा टेट्रासाइक्लिन जैसी एंटीबायोटिक दवाइयों के इस्तेमाल से CCPP के संक्रमण का उचित और तेज़ इलाज हो सकता है। लेकिन ऐसी कोई तरकीब अभी विकसित नहीं हुई है, जिसके ज़रिये बकरियों को CCPP से बचाना मुमकिन हो। इसी तरह एक बार संक्रमित होने के बाद बकरियाँ दोबारा इसी बीमारी से पीड़ित नहीं हों, इसके लिए बचाव का कोई पुख़्ता उपाय अभी तक विकसित नहीं हो सका है। अलबत्ता, पशु चिकित्सक एंटीबायोटिक दवाओं का विवेकपूर्ण इस्तेमाल से इलाज़ के खर्च को कुछ घटा ज़रूर सकते हैं।