डेयरी सेक्टर की एक बड़ी समस्या का हल है Artificial Insemination, डॉ. गजेन्द्रसिंह बामनिया कर रहे नस्लों में सुधार और बढ़ाया कारोबार

गुजरात के रहने वाले डॉ. गजेन्द्रसिंह बामनिया ने 2012 में Xcell Breeding की नींव रखी थी। वो खुद पेशे से वेटरनरी डॉक्टर हैं। इस लिहाज़ से वो पशुपालकों की समस्या से अच्छे से वाकिफ़ थे। उन्होंने न सिर्फ़ डेयरी सेक्टर के भविष्य की सोची, बल्कि रोज़गार के अवसर भी पैदा किए।

Artificial Insemination डेयरी सेक्टर dairy sector

डॉ. गजेन्द्रसिंह बामनिया पेशे से वेटरनरी डॉक्टर हैं। 2004 में गुजरात के पशु चिकित्सा विज्ञान और पशुपालन महाविद्यालय से Bachelor of Veterinary Sciences & Animal Husbandry विषय में ग्रेजुएट होने के बाद उन्होंने करीबन साढ़े 3 साल काम किया। डॉ. गजेन्द्रसिंह कहते हैं कि वो गुजराती परिवार से आते हैं, तो हमेशा से कुछ अपना करने की ललक थी। बिज़नेस करने के उद्देश्य से इंटरनेशनल एग्री-बिज़नेस मैनेजमेंट से MBA(International Agribusiness) की डिग्री हासिल की। फिर डेयरी सेक्टर में कुछ नया और प्रभावी करने के मकसद से वो रिसर्च में लग गए। कैसे उन्होंने अपना बिज़नेस मॉडल तैयार किया? Artificial Insemination के जुड़े हर पहलू पर डॉ. गजेन्द्रसिंह बामनिया ने विस्तार से जानकारी दी। 

डेयरी सेक्टर ही क्यों चुना?

डॉ. गजेन्द्रसिंह ने बताया कि उन्हें किताबें पढ़ना बहुत पसंद है। लेखक शिव खेड़ा की एक किताब ‘यू कैन विन’ का ज़िक्र करते हुए वो कहते हैं कि उसमें एक लाइन है, “Every problem comes with an equal or greater opportunity for success.” यानी हर समस्या अपने साथ सफलता के समान या कई अधिक अवसर लेकर आती है। उन्होंने पशुपालन के क्षेत्र की समस्याओं के बारे में रिसर्च की। डॉ. गजेन्द्रसिंह बताते हैं कि हमारे देश में 20 करोड़ के आसपास गायें हैं और करीबन 10 करोड़ भैंसों की संख्या है। इन 20 करोड़ गायों में से 80 फ़ीसदी देसी और अज्ञात नस्ल की गायें हैं। इनका औसतन दूध का उत्पादन ढाई लीटर रहता है। बाकी 20 फ़ीसदी में विदेशी नस्ल की गायें जैसे होल्सटीन फ़्रिसियन (Holstein Friesian, HF cows), जर्सी (Jersey Cows) और क्रॉस ब्रीड नस्ल की गायें आती हैं। इनका प्रतिदिन औसतन दूध का उत्पादन 5 लीटर रहता है। हमारे यहां मवेशियों की संख्या दुनिया में सबसे ज़्यादा है, लेकिन उत्पादन में हम पीछे है। डॉ. गजेन्द्रसिंह आगे कहते हैं कि हमारे देश में प्रजनन योग्य जीतने मवेशी हैं, उनकी 50 फ़ीसदी भी ब्रीडिंग नहीं हो पाती। ये डेयरी सेक्टर की सबसे बड़ी समस्या है। इसलिए उन्होंने ब्रीडिंग के ज़रिए मवेशियों की आने वाली पीढ़ियों में सुधार करने के उद्देश्य से 2012 में Xcell Breeding & Livestock Services Private Limited के नाम से फ़र्म की शुरुआत की। 

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तस्वीर साभार: Xcell Breeding (facebook)

Xcell Breeding किस तरह से कर रही पशुपालकों की मदद?

Xcell Breeding मुख्य तौर पर पशुपालकों को हाई क्वालिटी के फ़्रोज़न सीमन डोज़ उपलब्ध कराती है। इस आर्टिफ़िशियल इनसेमिनेशन प्रोग्राम में सीमन की बिक्री, मवेशियों की बिक्री, मवेशियों के प्रजनन से जुड़ी सलाह दी जाती है। मवेशियों की टैगिंग की जाती है और सभी ज़रूरी जानकारियां रिकॉर्ड की जाती है। Xcell Breeding के पास सभी डेयरी नस्लों के सीमन उपलब्ध हैं।

कैसे पहुंचाए जाते हैं सीमन डोज़?

तरल नाइट्रोजन और तरल नाइट्रोजन कंटेनर, सीमन डोज़ को रखने के लिए उपयोग किये जाते हैं। कंटेनरों में सीमन डोज़ रखने से उनकी गुणवत्ता बनी रहती है। डॉ. गजेन्द्रसिंह ने बताया कि वो गुजरात की पाँच बड़ी कंपनियों से हाई क्वालिटी का सीमन लेते हैं और फिर फ्रीज़ करके पशुपालकों तक सुरक्षित पहुंचाते हैं। साथ ही कंपनी टैग, दस्तानों सहित कई ज़रूरी चीज़ें भी उपलब्ध कराती है। अगर कोई  डेयरी फ़ार्म खोलना चाहता है तो उसको कंसल्टेंसी भी देते हैं। बैल, बछिया और गायों को खरीदने या बेचने के लिए मवेशी चयन में भी सहायता करते हैं।

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तस्वीर साभार: Xcell Breeding (facebook)

डॉ. गजेन्द्रसिंह ने बताया कि वो एक गैर-लाभकारी संगठन (Non-Profit Organization, NGO) भी चलाते हैं। कोशिश सेवा फाउंडेशन NGO के तहत युवकों को Artificial Insemination की ट्रेनिंग दी जाती हैं। ये तीन महीने का कोर्स होता है। इस सेंटर से ट्रेनिंग लिए प्रतिभागी फिर कंपनी के साथ ही जुड़ जाते हैं। इस तरह से डॉ. गजेन्द्रसिंह रोज़गार के अवसर पैदा करने का भी काम कर रहे हैं। कंपनी के पास 400 से अधिक अनुभवी एआई टेक्निशियंस हैं। Xcell Breeding की सेवाएं पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सभी क्षेत्रों और गुजरात के कच्छ में उपलब्ध हैं। इसके अलावा, कंपनी पशु आहार और पशु बीमा सेवा भी देती है। 

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तस्वीर साभार: Xcell Breeding (facebook)

डेयरी सेक्टर की एक बड़ी समस्या का हल है Artificial Insemination, डॉ. गजेन्द्रसिंह बामनिया कर रहे नस्लों में सुधार और बढ़ाया कारोबारइनसेमिनेशन को लेकर ज़रूरी जानकारी

डॉ. गजेन्द्रसिंह ने बताया कि मवेशियों में भी मद चक्र होता है। मवेशी जब गर्मी में आते हैं तो उनका 16 से 18 घंटे में इनसेमिनेशन करना होता है। वहीं गाय एक से दो दिन तक गर्मी में रहती है। इस बीच इनका इनसेमिनेशन कर सकते हैं। गर्मी के दौरान इनसेमिनेशन करने से मवेशियों के गर्भधारण की संभावना कई ज़्यादा हो जाती है। मवेशी के गर्मी में आने के लक्षणों के बारे में भी डॉ. गजेन्द्रसिंह ने जानकारी दी। बार-बार पेशाब आना, पीछे का भाग लाल हो जाना, बेचैन होना, डिस्चार्ज निकलना, ये सब मवेशी के गरम होने का संकेत देते हैं। 

 इनसेमिनेशन करने के बाद ढाई से तीन महीने में चेक करना होता है कि मवेशी गर्भवती है या नहीं। मैन्युअली या फिर सोनोग्राफी के ज़रिए इसकी जांच की जाती है। डॉ. गजेन्द्रसिंह ने बताया कि गाय की गर्भावस्था करीबन 9 महीने 9 दिन की होती है। वहीं भैंस की 10 महीने 10 दिन के आसपास होती है। इसलिए मवेशी गर्भवती है या नहीं, उसकी डिलीवरी कैसी रही और बछड़ा हुआ या बछिया, इसका डाटा कंपनी रखती है। 

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तस्वीर साभार: Xcell Breeding (facebook)

लिया लोन, मुश्किल आई लेकिन हार नहीं मानी

डॉ. गजेन्द्रसिंह के पास बिज़नेस शुरू करने के लिए पैसे नहीं थे, लेकिन उनका लक्ष्य साफ था। उन्हें मैनेज हैदराबाद के अंतर्गत AC&ABC स्कीम के तहत फंडिंग मिली। उन्हें 20 लाख रुपये का लोन मिला। इस लोन के लिए उनके ससुर ने अपना घर गिरवी रखा। डॉ. गजेन्द्रसिंह कहते हैं कि ये उनके लिए बड़ी बात थी। उन्हें अपने परिवारवालों से पूरा सपोर्ट मिला। लेकिन अड़चन उस वक़्त आई जब उन्हें सब्सिडी नहीं मिली। डॉ. गजेन्द्रसिंह कहते हैं कि लोगों का विश्वास और भरोसा उनके साथ था। उनका बिज़नेस मॉडल की वजह से कई लोग उनके साथ जुड़ चुके थे। इसी ने उनके मनोबल को मज़बूत किया और उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। आज उनकी कंपनी Artificial Insemination के क्षेत्र में एक अलग पहचान बना चुकी है। अब तक ये कंपनी तकरीबन 7 लाख किसानों को अपनी सेवाएं दे चुकी है। TATA AIG General Insurance जैसी कंपनियों के साथ भी Xcell Breeding काम कर चुकी है। 

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तस्वीर साभार: Xcell Breeding (facebook)

डेयरी सेक्टर की एक बड़ी समस्या का हल है Artificial Insemination, डॉ. गजेन्द्रसिंह बामनिया कर रहे नस्लों में सुधार और बढ़ाया कारोबारडॉ. गजेन्द्रसिंह बामनिया ने एक बायोमेट्रिक टेक्नोलॉजी विकसित की है। जल्द ही वो इसका पेटेंट कराने वाले हैं। डॉ. गजेन्द्रसिंह ने इस टेक्नोलॉजी के बारे में बात करते हुए बताया कि पशुपालन और डेयरी सेक्टर से जुड़ी ये टेक्नोलॉजी सरकार के सालाना 400 करोड़ रुपये बचाएगी। दिल्ली स्थित पुसा कृषि ने उन्हें इस टेक्नोलॉजी के लिए 5 लाख रुपये की फंडिंग भी दी है।

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