हरियाणा के सोनीपत ज़िले के खरखौदा गांव के रहने वाले किसान सत्यप्रकाश ने 15 भैंसों से डेयरी व्यवसाय की शुरुआत की। आज उनका 3 मंज़िला डेयरी फ़ार्म देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं।
खेती और पशुपालन तो बहुत से किसान एक साथ करते हैं, लेकिन हरियाणा के किसान सत्यप्रकाश कुछ हटकर कर रहे हैं। वो न सिर्फ़ डेयरी फ़ार्म चलाते हैं, बल्कि डेयरी के साथ ही स्पोर्ट्स स्कूल भी चला रहे हैं। अपने इलाके के सफल पशुपालक सत्यप्रकाश ने अपने अनोखे डेयरी फ़ार्म और स्कूल के बारे में जानकारी साझा की किसान ऑफ़ इंडिया के संवाददाता अर्पित दुबे से। साथ ही उन्होंने डेयरी व्यवसाय में रुचि रखने वालों के लिए ख़ास सलाह भी दी।
कैसे की डेयरी व्यवसाय की शुरुआत?
हरियाणा के सोनीपत ज़िले के खरखौदा गांव के रहने वाले किसान सत्यप्रकाश बताते हैं कि 2000 में उन्होंने अपने पिता के नाम पर स्पोर्ट्स स्कूल खोला। 2003 में इसमें हॉस्टल खुला। जब हॉस्टल खुला तो बच्चों के लिए दूध खरीदकर लाते थे, लेकिन उसकी गुणवत्ता अच्छी नहीं थी। फिर उन्होंने और उनके परिवार ने डेयरी खोलने का फैसला किया ताकि बच्चों की दूध की ज़रूरत पूरी हो सके। सत्यप्रकाश के मुताबिक, उनके पास 4 से 5 गाय और 2 से 3 भैंस पहले से ही थी। इन्हीं से घर की दूध की ज़रूरत पूरी होती थी। फिर 15 भैंस खरीदकर उन्होंने डेयरी व्यवसाय की शुरुआत की।
बिज़नेस बढ़ता गया तो 3 मंजिला डेयरी बना दी
पशुओं की संख्या बढ़ती गई तो फिर रहने के लिए नीचे जगह कम पड़ने लगी। फिर सत्यप्रकाश ने ऊपरी मंजिल पर भी डेयरी बना दी। डेयरी के स्ट्रक्चर पर उन्होंने ख़ास ध्यान दिया।
पानी की बचत
सत्यप्रकाश ने पानी की बचत की भी व्यवस्था कर रखी है। उन्होंने बताया कि पशुओं के नहाने और डेयरी की सफाई के बाद पानी एक जगह इकट्ठा होता है, जिसे वह खेत में सिंचाई के काम में लाते हैं। उनका कहना है कि यह पानी खेतों के लिए अच्छा है। यह पानी सिंचाई में इस्तेमाल करने पर यूरिया और डीएपी डालने की ज़रूरत नहीं पड़ती।
गोबर का इस्तेमाल
सत्यप्रकाश बताते हैं कि वह खाद बनाने के लिए कुछ गोबर पड़ोसियों को बचते हैं, कुछ का इस्तेमाल केंचुआ फ़ार्म में होता है और कुछ गोबर का उपयोग वह खेती में करते हैं।
कई नस्ल की गाय-भैंसें
सत्यप्रकाश कहते है कि उनके पास ज़्यादातर भैंसें मुर्रा नस्ल की है। यह नस्ल दूध अधिक देती हैं, इसलिए पशुपालकों के लिए फ़ायदेमंद है। जहां तक गाय का सवाल है तो उनके पास साहीवाल, जर्सी जैसी कई और नस्लें हैं। उनके पास मिक्स नस्ल की गायें भी हैं।
बाज़ार में नहीं बेचते दूध
सत्यप्रकाश दूध बाहर नहीं बेचते। उनका कहना है कि लॉकडाउन के पहले तक 3000 लीटर दूध का उत्पादन होता था। हॉस्टल में इस्तेमाल के बाद जो दूध बचता है उससे वह अन्य उत्पाद जैसे घी, दही, मक्खन, बर्फी, पेड़ा, रसगुल्ला जैसी मिठाई बनाने में इस्तेमाल करते हैं। कोरोना की वजह से हॉस्टल बंद हो गए तो उन्हें कुछ पशु बेचने पड़ें, क्योंकि दूध की खपत भी कम हो गई थी। आज की तारीख में उनकी डेयरी में 2600 लीटर दूध का उत्पादन हो रहा है।
6 महीने पहले ही करना पड़ता है हरे चारे का इंतज़ाम
दूध का उत्पादन अधिक हो इसके लिए पशुओं को हरा चारा खिलाना ज़रूरी है। सत्यप्रकाश का कहना है कि उनकी डेयरी में करीब 100 क्विंटल हरे चारे की खपत होती है। चारे के लिए उन्हें 6 महीने पहले ही योजना बनानी पड़ती है कि कितना ज्वार, जई, मक्का आदि की ज़रूरत होगी।
सत्यप्रकाश की सलाह
जो लोग खुद का डेयरी फ़ार्म खोलना चाहते हैं या डेयरी व्यवसाय बढ़ाना चाहते हैं उन्हें पहले तो खुद अपनी डेयरी में काम करना चाहिए। पशुओं की सही देखभाल और साफ-सफाई रखें। दूध निकालने के लिए मशीन का इस्तेमाल कर सकते हैं।
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