ट्रेनिंग और वैज्ञानिक तरीके से खेती-किसानी के क्या हैं फ़ायदे, पढ़िए तमिलनाडू की एस. लक्ष्मी की कहानी

वैज्ञानिक तकनीक अपनाकर न सिर्फ लक्ष्मी ने अपने जीवन स्तर में सुधार किया, बल्कि समय के साथ उनका डेयरी उद्योग भी विकसित होता जा रहा है। जानिए लक्ष्मी ने किस तरह से तकनीक से तकदीर बदली।

वैज्ञानिक तरीके से खेती dairy farming

कृषि के साथ ही यदि डेयरी उद्योग में भी वैज्ञानिक तकनीक अपनाई जाए, तो अच्छा-खासा लाभ कमाया जा सकता है। यह साबित कर दिया तमिलनाडू के डिंडीगुल जिले के पी.कोसावापट्टी गांव की रहने वाली श्रीमती एस. लक्ष्मी ने। वैज्ञानिक तकनीक अपनाकर न सिर्फ लक्ष्मी ने अपने जीवन स्तर में सुधार किया, बल्कि समय के साथ उनका डेयरी उद्योग (Dairy Business) भी विकसित होता जा रहा है।

कौन है श्रीमती एस. लक्ष्मी?

श्रीमती लक्ष्मी एक छोटे पैमाने की किसान हैं जिनके पास सिर्फ 5 एकड़ ज़मीन है। जिसमें से 3 एकड़ में आंवले की खेती करके वह साल 2016 के पहले तक सालाना मात्र 24000 रुपए ही कमा पाती थीं। यह रकम उनकी पारिवारिक ज़रूरतें पूरी करने लिए पर्याप्त नहीं थी। आर्थिक तंगी के चलते वह अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देने में भी असमर्थ थीं। इसीलिए वह अपने जीवन स्तर में सुधार लाने और सालाना आमदनी बढ़ाने के लिए नए मौके तलाश रहीं थीं।

डेयरी फार्मिंग प्रशिक्षण ने बदली ज़िंदगी (Dairy Farming Training)

श्रीमती लक्ष्मी ने डिंडिगुल के कृषि विज्ञान केंद्र व गांधीग्राम के गांधीग्राम रुरल इंस्टीट्यूट द्वारा ‘डेयरी फार्मिंग’ पर आयोजित प्रशिक्षण कार्यक्रम में हिस्सा लिया। यहां  उन्होंने डेयरी फार्मिंग के विभिन्न पहलुओं के बारे में सीखा। ट्रेनिंग में उन्हें  दुधारू पशुओं का चुनाव, उनका आवास, भोजन, प्रजनन और दुधारू गाय के वैज्ञानिक तरीके से प्रबंधन के बारे में बताया गया। यह प्रशिक्षण लक्ष्मी के लिए टर्निंग पॉइंट साबित हुआ। इसके बाद 2017 में 2 दुधारु पशुओं के साथ उन्होंने अपने खेत में ही एक छोटी डेयरी यूनिट (इकाई) खोली। डेयरी इकाई खोलने के बाद उन्होंने प्रशिक्षण कार्यक्रम में सीखी हुई वैज्ञानिक पद्धित को अपनाकर ही व्यवसाय किया, जिससे कुछ ही समय में उनके व्यापार ने रफ्तार पकड़ ली और उनकी प्रति माह आमदनी बढ़ने लगी।

वैज्ञानिक तरीके से खेती dairy farming
तस्वीर साभार: agricoop

ट्रेनिंग और वैज्ञानिक तरीके से खेती-किसानी के क्या हैं फ़ायदे, पढ़िए तमिलनाडू की एस. लक्ष्मी की कहानीआमदनी बढ़ने से मिली प्रेरणा

आमदनी बढ़ने पर उन्हें अपने कृषि व्यवसाय को आगे बढ़ाने की प्रेरणा मिली। कृषि विज्ञान केंद्र के विशेषज्ञों की सलाह पर उन्होंने कई तरह की मशीनें  खरीदीं।  इनमें  भूसा काटने, ब्रश कटर और मिल्किंग मशीन आदि शामिल हैं। उनकी प्रगति को देखते हुए डिंडिगुल के कृषि विज्ञान केंद्र में चारे पर फ्रंटलाइन प्रदर्शन के लिए एक एकड़ कृषि योग्य भूमि का चुनाव किया गया। यहाँ उन्होंने कुम्बू नेपियर घास (CO-5) और  हैमिल घास/गिनी घास (CO-GG3) की खेती की थी और सिंचाई के लिए स्प्रिंकलर का उपयोग किया था, ताकि पानी की बचत हो सके। फिलहाल श्रीमती लक्ष्मी के पास 10 दुधारु पशु हैं और वह एक सफल डेयरी उद्यमी हैं। वह रोज़ाना 80 लीटर दूध की बिक्री करती हैं। 25 रुपए प्रति लीटर के हिसाब से दूध की बिक्री करने पर महीने में उनकी आमदनी 60,000 रुपए तक हो जाती है। इसके अलावा खाद, चारा और चारा बीज की बिक्री से उन्हें अतिरिक्त कमाई होती है। फिलहाल सारी लागत निकालने के बाद डेयरी उद्योग से वह सालाना 3,60,000 रुपए तक कमाई कर लेती हैं।

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दूसरों के लिए बनीं मिसाल

उन्होंने अपने खेत में एकीकृत कृषि प्रणाली मॉडल को स्थापित किया व 5 और गायें खरीदें। चारे की खेती के लिए हाइड्रोफोनिक्स तकनीक का सहारा लिया। उनका खेत अन्य डेयरी उद्यमियों के लिए एक मॉडल बन गया। इससे दूसरे किसान भी उनकी तरह ही तकनीक का इस्तेमाल करने और ICAR-कृषि विज्ञान केंद्र, डिंडुगुल द्वारा आयोजित प्रशिक्षण में हिस्सा लेने के लिए प्रेरित हुए। आप भी खेती और डेयरी उद्योग में वैज्ञानिक तकनीक का इस्तेमाल करके अपनी कमाई बढ़ा सकते हैं।

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