Hybrid Technology : Taas के संस्थापक डॉ आर.एस परोदा ने बताए हाइब्रिड तकनीक के मिथ और फ़ैक्ट्स

डॉ. आर.एस. परोदा हाइब्रिड तकनीक से जुड़े मिथक और उसकी ज़रूरत के बारे में विस्तार से बताया। डॉ. परोदा एक कृषि वैज्ञानिक होने के साथ ही Taas के संस्थापक अध्यक्ष हैं। वो भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के डायरेक्टर भी रह चुके हैं। किसान ऑफ इंडिया (Kisan Of India) से बातचीत में उन्होंने हाइब्रिड तकनीक (Hybrid Technology) के बारे में विस्तार से जानकारी दी। साथ ही BT cotton, GM सरसों जैसे मुद्दों पर भी जानकारी दी।

Hybrid Technology : Taas के संस्थापक डॉ आर.एस परोदा ने बताए हाइब्रिड तकनीक के मिथ और फ़ैक्ट्स

आजकल हर कोई हाइब्रिड तकनीक (Hybrid Technology) और ऑर्गेनिक यानी जैविक खेती (Organic Farming) की बात कर रहा है, ये दोनों तकनीक कृषि के विकास के लिए अहम है। लेकिन हाइब्रिड तकनीक (Hybrid Technology) के बिना देश की बढ़ती जनसंख्या का पेट भरना संभव नहीं होगा।

ऐसे में डॉ. आर.एस. परोदा हाइब्रिड तकनीक से जुड़े मिथक और उसकी ज़रूरत के बारे में विस्तार से बताया। डॉ. परोदा एक कृषि वैज्ञानिक होने के साथ ही Taas के संस्थापक अध्यक्ष हैं। वो भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के डायरेक्टर भी रह चुके हैं।

किसान ऑफ इंडिया (Kisan Of India) से बातचीत में उन्होंने हाइब्रिड तकनीक (Hybrid Technology) के बारे में विस्तार से जानकारी दी। साथ ही BT cotton, GM सरसों जैसे मुद्दों पर भी जानकारी दी।

हाइब्रिड तकनीक से अधिक पैदावार (Higher Yields From Hybrid Technology)

डॉ. आर.एस. परोदा का कहना है कि आज के समय में किसानों को लागत कम करके पैदावार बढ़ाना है और मार्केट से जुड़ना है ताकि आमदनी बढ़ सके। इसके लिए ऐसी तकनीक की ज़रूरत है जिससे उनकी पैदावार बढ़ सके ताकि दूसरी इनपुट लागत को कम किया जा सके। हाइब्रिड तकनीक उनके लिए फायदेमंद है।

इस तकनीक से पारंपरित तकनीक की तुलना में 20-30 फीसदी अधिक पैदावार होती है। साथ ही सूखे इलाकों में भी ये सफल रही है और अच्छी पैदावार देती है। ज्वार, बाजरा, मक्का, सूरजमुखी, सरसों आदि की हाइब्रिड किस्में कम पानी में भी अच्छी उपज देती है।

उनका कहना है कि अगर किसानों को हाइब्रिड फसलों के अच्छे बीज ठीक तरह से पहुंचाए जाए तो किसानों को तो फायदा होगा ही साथ ही अधिक उपज से देश को भी फायदा होगा।

हाइब्रिड बीज का फायदा (Advantages Of Hybrid Seeds)

डॉ. परोदा बताते हैं कि जब BT कॉटन का हाइब्रिड बीज आया तो इसकी खेती लगभग 7 मिलियन हैक्टेयर में होती थी जो बाद में बढ़कर 12 हेक्टेयर हो गया। BT कॉटन का एरिया करीब 95 प्रतिशत बढ़ा। किसानों ने ज्वार, बाजरा की जगह बीटी कॉटन लगाना शुरू कर दिया। इससे हुआ ये कि पहले हम इसे आयात करते थे, मगर हाइब्रिड किस्म के आने के बाद निर्यात करने लगे ये है, तो ये तकनीक का ही कमाल हुआ न।

डॉ. परोदा आगे बताते हैं कि संकर जाति की मक्का का उत्पादन बिहार में सर्दियों में 7-10 टन हो रहा है, पहले एक टन भी नहीं हो पाता था। वहीं राजस्थान में भी किसान संकर जाति की फसलों की ही खेती करना चाहता है। हाइब्रिड बीज हर साल नए लेने होते हैं जिससे लागत भले ही थोड़ी बढ़ जाती है मगर उपज ज़्यादा होती है तो दूसरी लागत कम हो जाती है।

सभी किसानों तक बीज पहुंचाने की ज़रूरत (Need To Provide Seeds To All Farmers)

डॉ. परोदा कहते हैं कि क्यों न इस तकनीक को बढ़ावा दिया जाए और सभी किसानों तक इसके बीज पहुंचाए जाए। इस तकनीक के तहत मक्के की खेती 60 प्रतिशत क्षेत्र में होती है, बीटी कॉटन 95 प्रतिशत कवर करता है जबकि ज्वार और बाजरा में 40-50 प्रतिशत हाइब्रिड का इस्तेमाल हो रहा है। तो क्यों न इसे बढ़ाकर 100 प्रतिशत कर दिया जाए।

हाइब्रिड बीज बनाकर किसानों तक पहुंचाने के लिए प्राइवेट सीड सेक्टर को भी प्रमोट करने की ज़रूरत है। साथ ही किसानों को जो बीज मिल रहा है उस पर जीएसटी नहीं लगाना चाहिए ताकि ज़्यादा से ज़्यादा किसान इसे ले सके। उनका कहना है कि जब उनका संस्थान न्यू सीड पॉलिसी लेकर आया था तब प्राइवेट सेक्टर आगे आया।

प्राइवेट सेक्टर को और बीज उत्पादन के लिए प्रमोट करने की ज़रूरत है। इसके अलावा उनका कहना कि कृषि क्षेत्र में क्या नई संभावनाएं है और उसके लिए क्या नई नीतियां होनी चाहिए ये बात सरकार तक पहुंचाने का काम भी उनकी संस्था करती है। साथ ही किसानों तक सही जानकारी पहुंचाना भी ज़रूरी है क्योंकि किसानों को तो कई बार ये पता ही नहीं होता कि उनके लिए क्या अच्छा है।

109 वैरायटी का लोकार्पण प्रधानमंत्री ने किया (Prime Minister inaugurated 109 varieties)

हाल ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 109 हाइब्रिड वैरायटी का लोकापर्ण किया। इस बारे में डॉ. परोदा बताते है कि ये सब बायोफोर्टिफाइड है यानी ये पोषण सुरक्षा के लिए अच्छी है। मगर इसका फायदा तभी मिलेगा जब लोगों को इसके बारे में जानकारी मिलेगी, नई वैरायाटी के बीज बनेंगे और इसके लिए प्राइसिंग पॉलिसी बनेगी। लोगों को भी फसलों की क्वालिटी का फर्क पता होना चाहिए, तभी वो अच्छी क्वालिटी के लिए अधिक खर्च करने के लिए तैयार रहेंगे।

क्या GM वैरायटी स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है? (Are GM Varieties Harmful To Health?)

बहुत से लोगों को लगता है कि ये GM वैरायटीज़ स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होती है। इस बारे में डॉ. परोदा का कहना है कि अगर ऐसा होता तो आज 200 मिलियन हेक्टेयर एरिया पूरी दुनिया में BT क्रॉप्स के तहत नहीं होता। साथ ही ब्राजिल, जापान, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा जैसे देश इसे नहीं ले रहे होते। हमारे यहां BT सोयाबीन मंगाया जा रहा है जिसका तेल इस्तेमाल हो रहा है।

आज तक इसे लेकर किसी की कोई शिकायत नहीं आई है और न ही इसकी कोई रिपोर्ट निगेटिव आई है। बस एक मानसिकता बन गई है कि ये खराब है। उनका कहना है कि अगर आपके पास पैसा है और आप अच्छे ऑर्गेनिक प्रोडक्ट ले सकते हैं तो ठीक है। ऑर्गेनिक में पैदावार कम होती है तो उत्पाद महंगे होते हैं। मगर देश की बहुसंख्य आबादी इसे नहीं ले सकती और नही इसका उत्पादन इतना अधिक होता है।

डॉ. परोदा कहते हैं कि हमारे देश में पैदावार बढ़ानी है, क्योंकि हमारी जनसंख्या तो बढ़ रही है, हर साल हम एक नया ऑस्ट्रेलिया बना रहे हैं ऐसे में खाद सुरक्षा तो सुनिश्चित करनी होगी न, बढ़ती आबादी को कहां से खिलाएंगे।

अगर हम ये कहते कि तो पुरानी तकनीक और वैरायटीज़ से ही खुश है तो क्या हरित क्रांति हुई होती? क्या खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना संभव होता? उस समय भी इसका विरोध हुआ था, मगर आज सब चुप है। हमें ओपन माइंडसेट रखना होगा।

ICAR की वैरायटी किसानों तक नहीं पहुंच पाती (ICAR’s varieties do not reach the farmers)

डॉ. परोदा कहना है कि ICAR तो हर साल कई नई वैरायटीज़ रिलीज करता है लेकिन वो किसानों तक नहीं पहुंच पाती है। इसके लिए प्राइवेट सेक्टर के साथ एक तालमेल की ज़रूरत है। क्योंकि वैज्ञानिक लोग तो अच्छी वैरायटी विकसित कर देंगे, मगर उसे किसानों तक पहुंचाने का काम उनका नहीं है।

ये काम यूनिवर्सिटी या प्राइवेट सेक्टर को करना होगा। इसके लिए पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप को आगे बढ़ाने की ज़रूरत है।

मार्केटिंग के लिए क्या किया जाना चाहिए (What needs to be done for marketing)

अच्छी आमदनी के लिए किसानों को बाज़ार से सीधे जोड़ना ज़रूरी है, वरना बिचौलिए उनका शोषण करते रहेंगे। डॉ परोदा कहते हैं इसके लिए किसानों को  FPO से जुड़ना होगा या सरकार कोई ऐसा उपाय करें ताकि किसान सीधे बाज़ार जुड़ सके।

साथ ही कंपनियों से कहे कि वो बीज उत्पादन करके किसानों तक पहुंचाए। साथ ही किसानों को ये जानकारी देना भी ज़रूरी है कि उनके क्षेत्र के हिसाब से कौन सी वैरायटी उपयुक्त है। डॉ. परोदा कहते हैं कि कृषि क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए युवाओं को इस सेक्टर से जोड़ना बहुत ज़रूरी है।

सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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