भारत में खेती-बाड़ी का दृश्य हमेशा से ही पशुओं, खासकर डेयरी के लिए गायों (Cow-based economy) से जुड़ा रहा है। गाय सिर्फ एक पशु नहीं है, बल्कि गांव के जीवन और खेती का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। डेयरी किसान आमतौर पर दूध बेचकर कमाई करते हैं, लेकिन अगर वो सिर्फ दूध पर निर्भर रहते हैं, तो इससे उनकी आर्थिक कमाई सीमित हो जाती है। अब जब टिकाऊ खेती और गांवों के विकास पर ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है, तो गाय आधारित अर्थव्यवस्था का विचार सामने आ रहा है। ये तरीका गोबर से बने बायोगैस और जैविक खाद जैसे उत्पादों का उपयोग करता है, जिससे किसानों को अतिरिक्त कमाई का मौका मिलता है और पर्यावरण के अनुकूल तरीके भी बढ़ावा पाते हैं।
गाय आधारित अर्थव्यवस्था (Cow-based economy) को समझना ज़रूरी है
गाय आधारित अर्थव्यवस्था का मतलब है कि किसान गाय के हर उत्पाद जैसे गोबर, मूत्र और अपशिष्ट फ़ीड का इस्तेमाल करके अतिरिक्त आमदनी कमा सकते हैं। ये सिर्फ़ दूध पर निर्भर रहने की बजाय, गाय के सभी पहलुओं का फायदा उठाने की बात करता है। इसका मुख्य उद्देश्य सामान का समझदारी से उपयोग करना और उसे लाभदायक उत्पादों में बदलना है।
ये अर्थव्यवस्था तीन मुख्य हिस्सों पर निर्भर करती है:
1. गोबर से बायोगैस बनाना
2. खेती के लिए जैविक खाद
3. पंचगव्य उत्पाद, जिनमें गोबर, मूत्र, दूध, घी और दही का इस्तेमाल होता है।
इनमें से हर एक हिस्सा न सिर्फ आर्थिक फायदे देता है, बल्कि पर्यावरण के लिए भी फायदेमंद होता है।
1. गोबर आधारित बायोगैस उत्पादन: एक अक्षय ऊर्जा समाधान
गोबर आधारित बायोगैस उत्पादन का मतलब है गाय के गोबर से गैस बनाना, जो एक तरह की अक्षय ऊर्जा है। ये ऊर्जा हमें बार-बार मिल सकती है और इससे पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं होता। इस गैस का इस्तेमाल गाँवों में लकड़ी जैसे पारंपरिक ईंधन की जगह किया जा सकता है। गोबर से बनने वाली इस गैस में मीथेन होता है, जो रसोई में खाना पकाने, घर को गर्म रखने और बिजली बनाने में काम आता है।
बायोगैस कैसे बनाई जाती है?
बायोगैस को बनाने के लिए गोबर को ऑक्सीजन के बिना बंद जगह में रखा जाता है, जिसे एनारोबिक पाचन कहते हैं। इस प्रक्रिया में खास प्रकार के बैक्टीरिया गोबर को तोड़कर गैस बनाते हैं। ये काम विशेष डिजाइन किए गए बायोगैस प्लांट में होता है जो घरों या छोटे समुदायों के लिए बनाए जाते हैं।
बायोगैस उत्पादन के फायदे:
1. लागत में कमी: किसान रसोई गैस और दूसरी ऊर्जा की जरूरतों के लिए पैसे की बचत कर सकते हैं।
2. पर्यावरण पर अच्छा असर: इससे मीथेन जैसी प्रदूषण फैलाने वाली गैसों का उत्सर्जन कम होता है, जो खुले में गोबर छोड़ने से निकलती हैं।
3. उप-उत्पाद: बायोगैस बनाने के बाद बचे गोबर को जैविक खाद के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है, जो मिट्टी की गुणवत्ता बढ़ाता है।
जैविक खाद से मिट्टी के स्वास्थ्य को सुधारना
भारतीय खेती में बहुत समय से गाय के गोबर और मूत्र का उपयोग जैविक खाद के रूप में होता आ रहा है। 20वीं सदी के मध्य में जब रासायनिक खादों का चलन बढ़ा, तो इस प्रथा को कम महत्व दिया गया। लेकिन अब, रासायनिक खादों के मिट्टी और पर्यावरण पर बुरे असर को देखकर, किसान फिर से जैविक तरीकों की ओर ध्यान दे रहे हैं। इससे गोबर से बनी खाद और अन्य जैविक खादों में फिर से रुचि बढ़ी है।
मूल्य-वर्धित जैविक खाद के प्रकार
गोबर और अन्य प्राकृतिक चीजों से बनी मूल्य-वर्धित जैविक खाद, टिकाऊ खेती में बदलाव ला रही है। ये खाद न सिर्फ मिट्टी की गुणवत्ता सुधारती है, बल्कि उसमें सूक्ष्मजीवों की गतिविधि भी बढ़ाती है, पौधों की वृद्धि को बढ़ावा देती है और रासायनिक खादों के उपयोग को कम करती है। यहाँ कुछ मुख्य प्रकार की जैविक खादों के बारे में बताया गया है:
i) वर्मीकम्पोस्ट:
इसमें केंचुओं की मदद से गोबर को उच्च गुणवत्ता वाली खाद में बदला जाता है। इसमें गोबर और जैविक कचरे को गड्ढे में डालकर उसमें केंचुए छोड़े जाते हैं। केंचुए इस कचरे को खाकर पोषक खाद बनाते हैं।
प्रक्रिया:
– गोबर को भूसे, सूखे पत्तों और रसोई के कचरे के साथ मिलाकर 15 दिन तक सड़ने देते हैं।
– इसके बाद केंचुए डाले जाते हैं।
– 45-60 दिनों में ये मिश्रण वर्मीकम्पोस्ट में बदल जाता है।
लाभ:
– इसमें नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम अधिक होते हैं।
– मिट्टी की संरचना और जड़ों की वृद्धि में सुधार होता है।
– रासायनिक खादों की जरूरत कम होती है।
ii) समृद्ध जैविक खाद:
ये खाद गोबर के साथ अन्य प्राकृतिक चीजें मिलाकर बनाई जाती है, जिससे इसकी पोषकता बढ़ती है। ये फसलों की खास जरूरतों को पूरा करने में मदद करती है।
संरचना:
– गोबर में गोमूत्र, अस्थि चूर्ण, रॉक फॉस्फेट, नीम केक और जिप्सम मिलाते हैं।
– इसे 2-3 महीने तक सड़ने दिया जाता है।
मुख्य लाभ:
– ये खाद संतुलित पोषण देती है।
– नीम केक और गोमूत्र प्राकृतिक कीटनाशक का काम करते हैं।
– ये मिट्टी के स्वास्थ्य को बेहतर बनाती है।
3. पंचगव्य मिश्रण
पंचगव्य मिश्रण एक पारंपरिक जैविक उपाय है, जिसमें गाय से प्राप्त पाँच चीजें होती हैं: गोबर, मूत्र, दूध, दही और घी। इसे जैविक खेती में फसलों की अच्छी वृद्धि, कीटनाशकों से सुरक्षा और मिट्टी को बेहतर बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है। इस मिश्रण की तैयारी का तरीका प्राचीन भारतीय कृषि पद्धतियों से लिया गया है और अब इसे आधुनिक जैविक किसान फिर से इस्तेमाल कर रहे हैं।
कैसे बनाएं:
इन सभी चीजों को अच्छी तरह मिला लें और इसे किसी छायादार जगह पर 15-20 दिनों के लिए छोड़ दें ताकि यह अच्छे से किण्वित हो सके। ताकि हवा ठीक से आ-जा सके, मिश्रण को रोज दो बार हिलाएं।
कैसे इस्तेमाल करें:
1. पत्तियों पर छिड़काव: फसलों की बढ़ोतरी और कीटों से बचाव के लिए पतले पंचगव्य को पौधों की पत्तियों पर छिड़क सकते हैं।
2. मिट्टी पर प्रयोग: इसे मिट्टी में डालकर सूक्ष्मजीवों की गतिविधि और पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ाई जा सकती है।
फायदे:
शोध से पता चला है कि पंचगव्य पौधों की गतिविधि जैसे जड़ का विकास, पत्तियों का क्षेत्र और फलों की गुणवत्ता को बढ़ाता है। आंध्र प्रदेश में, इसका उपयोग करने वाले किसान 30% अधिक उत्पादन प्राप्त कर रहे हैं।
नीतिगत समर्थन और भविष्य की संभावनाएं:
भारत सरकार ने गाय आधारित अर्थव्यवस्था की ताकत को पहचाना है और इसी वजह से डेयरी किसानों की मदद के लिए कई योजनाएँ चलाई जा रही हैं। कृषि मंत्रालय ने राष्ट्रीय गोकुल मिशन की शुरुआत की है, जिसका मकसद देशी गायों की नस्लों को बचाना और इनके उत्पादों का विकास करना है। यह मिशन दिसंबर 2014 से चल रहा है।
इसी के साथ, गोबरधन योजना भी चलाई जा रही है, जिसका उद्देश्य गोबर से बायोगैस और जैविक खाद बनाना है। इसका मुख्य लक्ष्य गाँवों को स्वच्छ रखना, ग्रामीण परिवारों की आय बढ़ाना और मवेशियों के अपशिष्ट से ऊर्जा और खाद बनाना है।
गाय आधारित अर्थव्यवस्था
गाय आधारित अर्थव्यवस्था में ग्रामीण इलाकों की जिंदगी में बदलाव लाने की बहुत अधिक संभावना है। डेयरी किसान सिर्फ दूध पर निर्भर रहने की बजाय नए कमाई के रास्ते खोल सकते हैं, बाहरी चीजों पर निर्भरता कम कर सकते हैं और पर्यावरण को भी सुरक्षित रख सकते हैं। इन सफलताओं के लिए सरकार की नीति, लोगों की भागीदारी और किसानों में जागरूकता की जरूरत है।
गोबर से बायोगैस और जैविक खाद जैसे उत्पादों को बढ़ावा देना सिर्फ आय बढ़ाने के लिए नहीं है। इसका उद्देश्य एक ऐसी कृषि प्रणाली बनाना है जो आत्मनिर्भर हो और जिसमें गाय से जुड़ी हर चीज का सही उपयोग हो सके, ताकि आगे की पीढ़ियों के लिए गाय समृद्धि का प्रतीक बनी रहे।