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जैविक खेती आज के समय की ज़रूरत है, क्योंकि रसायानिक खेती ने न सिर्फ़ भूमि की उर्वरता को कम किया है, बल्कि इसका लोगों की सेहत पर भी बुरा प्रभाव साफ नज़र आने लगा है। फ़सलों और फलों में इस्तेमाल होने वाला रसायन कई जानलेवा बीमारियों का कारण बन रहा है, इसलिए अब बहुत से प्रगतिशील किसान जैविक यानी जैविक खेती का रुख कर रहे हैं, साथ ही अपने आपसपास जागरुकता भी फैला रहे हैं, ताकि ज़्यादा से ज़्यादा किसान प्राकृतिक खेती की अहमियत को समझें और उसे अनपाएं।
ऐसा ही एक प्रयास है प्रगतिशील किसान विज्ञान शुक्ला का। जो न सिर्फ़ खुद जैविक तरीके से फ़सलों और बीज का उत्पादन कर रहे हैं, बल्कि फ़सल बेचने में किसानो की मदद भी कर रहे हैं। वैदिक ऑर्गेनिक फार्म के मैनजेर विज्ञान शुक्ला किन फ़सलों का उत्पादन करते हैं और अपने ऑर्गेनिक फार्म के ज़रिए कैसे किसानो की मार्केटिंग में मदद कर रहे हैं, इन सभी मुद्दों पर उन्होंने चर्चा की किसान ऑफ इंडिया के संवाददाता सर्वेश बुंदेली से।
जैविक खेती को दे रहे बढ़ावा (Promoting organic farming)
प्रगतिशील किसान विज्ञान शुक्ला बांदा जिले के वैदिक ऑर्गेनिक फार्म के मैनेजर हैं। ये फार्म पूरी तरह से प्राकृतिक खेती और पशुपालन का काम कर रहा है। विज्ञान शुक्ला कहते हैं कि इस फार्म में अनाज, दलहनी और मसाले वाली फ़सलो का उत्पादन हो या पशुपालन, सब कुछ प्राकृतिक तरीके से होता है।
किन-किन चीज़ों का करते हैं उत्पादन (What things do you produce)
विज्ञान शुक्ला का कहना है कि वो किसानों के खाने में उपयोग आने वाले सभी तरह के अनाज का करीब 90 फीसदी उत्पादन करते हैं और वो भी पूरे प्राकृतिक तरीके से। अनाज के साथ ही वो जैविक बीजों का भी उत्पादन करते हैं। उनके साथ किसान लगातार जुड़ते जा रहे हैं और अब तो उनकी संख्या 6 हज़ार से भी ज़्यादा हो चुकी है। वो कहते हैं कि उनके साथ जुड़ने वाले किसानों की संख्या में लगातार बढोतरी हो रही है।
अपने साथ जुड़े किसानों को वो जैविक रूप से तैयार बीज उपबल्ध कराते हैं। इतना ही नहीं उनके पास कुछ फ़सलों को बेचने के लिए अच्छा बाज़ारा है, ऐसे में वो किसानों से अच्छी कीमत पर उनकी फ़सल खरीदकर उसे अपने फार्म के ज़रिए उचित मूल्य पर बेचते हैं, जिससे किसानों की आमदनी में बढ़ोतरी होती है। जैविक खेती में उत्कृष्ट काम के लिए विज्ञान शुक्ला को 2020 में जगजीवन राम अभिनव पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।
कैसे हुई शुरुआत? (How did it start?)
विज्ञान शुक्ला कहते हैं कि प्राकृतिक खेती आज के समय की आवश्यकता है। उन्होंने जैविक खेती की शुरुआत 2008 में 25 एकड़ खेत से की। वो बताते हैं कि उन्हें इसकी ज़रूरत इसलिए महसूस हुई क्योंकि रसायनिक उर्वरक और कीटनाशकों का इस्तेमाल करके जो खेती की जा रही है उससे फ़सल की लागत बढ़ रही है। अंधाधुंध कीटनाशकों और यूरिया के इस्तेमाल से ज़मीन की उर्वरा शक्ति घट रही है, फ़सल की लागत बढ़ रही है और किसानों को मुनाफ़ा नहीं हो रहा है।
साथ ही ऐसी फ़सलों की वजह से लोगों में बीमारियां बढ़ रही हैं, इसके अलावा पशु-पक्षी भी इससे प्रभावित हो रहे हैं। इसलिए उन्होंने तय किया कि लोगों को अच्छी गुणवत्ता वाला अनाज, फल-फूल, दूध-घी सब कुछ उचित कीमत पर और प्राकृतिक तरीके से मिले। विज्ञान शुक्ला ने अपने साथ ज़्यादा से ज़्यादा किसानों को जोड़कर एक अभियान शुरू किया जिससे मिट्टी और लोगों की सेहत दोनों का ख्याल रखा जा सके। उनके साथ 5-6 हजार किसान जुड़े हुए हैं जो पूरी तरह से जैविक खेती कर रहे हैं।
किसानों को देते हैं प्रशिक्षण (Provides training to farmers)
विज्ञान शुक्ला कहते हैं कि जिस समय की जो फ़सलें होती हैं, मौसम के हिसाब से उनकी बुवाई से एक महीना पहले किसानों को प्रशिक्षण देते हैं। उन्हें 3-3 महीने के अंतराल पर ट्रेनिंग दी जाती हैं। खेत की तैयारी से पहले किसानों को प्रशिक्षण देने के साथ ही उन्हें अपने फार्म से जैविक बीज भी उपलब्ध करवाते हैं।
विज्ञान शुक्ला का कहना है कि वो पूरी तैयारी और जानकारी के साथ उन्हें आगे बढ़ने के लिए तैयार करते हैं, क्योंकि जानकारी न होने की वजह से भी किसान गलती करते हैं। सही ज्ञान होगा तो किसान सही तरीके से उत्पादन कर पाएंगे। वो किसानों को जैविक खाद और बीज उपलब्ध करवाने के साथ ही किसानों को खाद बनाना भी सिखाते हैं ताकि वो खुद ही अपने खेत में ऑर्गेनिक खाद बना सकें। जिससे फ़सल की लागत कम होगी।
पशुपालन से अच्छी कमाई (Good income from animal husbandry)
विज्ञान शुक्ला का वैदिक फार्म खेती के साथ प्राकृतिक तरीके से पशुपालन का भी काम कर रहा है। उनके पास 50 साहीवाल गाय, 75 गिर गाय, 65 मुर्रा नस्ल की भैंस और एक युवराज भैंसा हैं, जो नस्ल सुधार का काम करता है। विज्ञान शुक्ला कहते हैं कि वो दूध और घी निकालने का काम करते हैं और पनीर भी बनाते हैं जिससे अच्छा मूल्य मिलता है। किसानों को भी इसका प्रशिक्षण देते हैं, जिससे वो दूध-घी और पनीर बनाकर अच्छी कमाई कर रहे हैं।
अगर कोई किसान उचित कीमत पर बीज प्राप्त करना चाहता है, तो वो वैदिक ऑर्गेनिक फार्म से संपर्क कर सकता है। यही नहीं किसान इस फार्म से जुड़ भी सकते हैं, जिसके बाद उन्हें प्रशिक्षण देकर उनकी पूरी मदद की जाती है।अगर आप भी जैविक खेती शुरू करने की सोच रहे हैं, तो उससे जुड़ी कुछ अहम बातों को जान लें।
गोबर की खाद (cow dung Manure)
ऑर्गेनिक या प्राकृतिक खेती में रासायनिक उर्वरको की बजाय बजाय गोबर की सड़ी हुई खाद या फिर वर्मी कंपोस्ट का इस्तेमाल किया जाता हैष वर्मी कंपोस्ट को केंचुआ खाद भई कहा जाता है।
जीवामृत है बहुत ख़ास (Jeevamrut is very special)
जैविक खेती में जीवामृत की अहम भूमिका होती है है। इसे सिंचाई के साथ पानी में घोलकर दिया जाता है। एक एकड़ खेत की सिंचाई में लगभग 200 लीटर जीवामृत का इस्तेमाल किया जाता है। साथ ही कीटों से बचाव के लिए नीम की पत्तियों उबालकर इस घोल में दोगुना पानी मिलाकर पौधों पर छिड़काव किया जाता है।
खाद की सही मात्रा (The right amount of fertilizer)
यदि पहली बार जैविक खेती करने रहे हैं, तो खाद की मात्रा का ध्यान रखें। एक एकड़ के खेत में कम से कम 10 क्विंटल वर्मी कंपोस्ट बुवाई से पहले डालें। उसके बाद फ़सल को पहला पानी देते समय 5 क्विंटल खाद डालें। जरूरत पड़े तो 2 क्विंटल खाद फ़सल में बालियां आने के पहले डाल सकते हैं।
फ़ायदे (Benefits)
जैविक खेती से मिट्टी की उपजाऊ क्षमता बहुत बढ़ जात है। वर्मी कंपोस्ट और जीवामृत के उपयोग से मिट्टी में स्वस्थ बैक्टीरिया की संख्या बढ़ती है जिससे मिट्टी भुरभुरी बनती है और उसकी जलधारण क्षमता भी बढ़ती है। साथ ही जैविक तरीके से उगाई गई फ़सलें कई तरह की हानिकारक बीमारियों से भी बचाव करती है।
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