हाइड्रोपोनिक यूनिट और वर्टिकल खेती में माहिर अनिल थडानी किसान का सफ़र

अनिल थडानी, जयपुर के आधुनिक किसान, हाइड्रोपोनिक यूनिट और वर्टिकल खेती के माध्यम से किसानों को जैविक खेती की नई तकनीक और प्रशिक्षण दे रहे हैं।

हाइड्रोपोनिक यूनिट और वर्टिकल खेती Hydroponic Units and Vertical Farming

कृषि अब खुले खेतों तक ही सीमित नहीं रह गई है, बल्कि इसका दायरा बहुत विस्तृत हो गया है और आज के इनोवेटिव युवा किसानों ने खेती को भी बहुत आधुनिक बना दिया है। ऐसे ही एक आधुनिक किसान हैं जयपुर के अनिल थडानी। जिन्होंने घर की छत से अपने नर्सरी बिज़नेस की शुरुआत की थी और आज उनके साथ करीब ढाई हज़ार किसान जुड़ चुके हैं।

वो न सिर्फ किसानों को पौधों बेचते हैं, बल्कि उन्हें जैविक खेती की आधुनिक तकनीक के बारे में भी बताते हैं। वो किसानों को हाइड्रोपोनिक और वर्टिकल खेती का भी प्रशिक्षण देते हैं। अनिल ने हाइड्रोपोनिक और आधुनिक खेती के तरीकों पर विस्तार से चर्चा की किसान ऑफ इंडिया के संवाददाता अक्षय दुबे के साथ।

हाइब्रिड हाइड्रोपोनिक मॉडल (Hybrid Hydroponic Models)

कृषि विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर रह चुके अनिल थडानी ने घर की छत से नर्सरी का व्यवसाय शुरू किया था और आज राजस्थान के कई शहरों में पौधशालम नाम से उनकी नर्सरी है। अनिल थंडानी किसानों के लिए सैंपलिंग बनाने के साथ ही उन्हें हाइड्रोपोनिक यूनिट बनाकर भी देते हैं। यही नहीं वो उन्हें हाइड्रोपोनिक और वर्टिकल खेती का प्रशिक्षण भी देते हैं।

अनिल थडानी अपनी हाइड्रोपोनिक यूनिट के बारे में जानकारी देते हुए कहते हैं कि उन्होंने हाइड्रोपोनिक की दोनों तकनीकों NFT और EBB का इस्तेमाल करके अपनी हाइब्रिड यूनिट को डिज़ाइन किया है। इस यूनिट में अगर कभी मोटर बंद हो जाती है और पानी रुक जाता है, तब भी इसमें न तो पौधा मरेगा और न ही फंगस लगेगा। NFT तकनीक में पानी फ्लो होता रहता है और मोटर खराब हो गई तो पौधे सूखने लगते हैं। ऐसे ही ABB तकनीक में फंगस लगने का खतरा रहता है, मगर अनिल की हाइब्रिड यूनिट में ऐसी कोई समस्या नहीं होती है। 

कैसे काम करता है हाइब्रिड मॉडल (How the hybrid model works)

अनिल बताते हैं कि अगर कोई हाइड्रोपोनिक खेती करना चाहता है तो उन्हें हाइब्रिड मॉडल उनसे ही लेना होगा, क्योंकि इसे वही डिज़ाइन करते हैं और इसमें एंगल का बहुत बड़ा गेम होता है। जिसे समझना मुश्किल होता है। अनिल ये हाइड्रोपोनिक यूनिट इंस्टॉल करके देते हैं, उसके बाद इस्तेमाल किसान को ही करना है। इस हाइड्रोपोनिक यूनिट के अंदर वॉटर मोटर लगी है, जो ब्लैक पाइप की मदद से ऊपर वॉटर सप्लाई करती है और मेन पाइप से होकर सब पाइप में जाती है। इस तकनीक में पानी का इस्तेमाल कम होता है।

दरअसल, हाइड्रोपोनिक तकनीक में बिना मिट्टी के सिर्फ पानी में ही खेती की जाती है, पानी में ही पोषक तत्व डाले जाते हैं। किसानों और स्टूडेंट्स को दिखाने के लिए उन्होंने मनी प्लांट के कुछ पौधे लगाए हैं।

लागत और देखभाल (Cost and care)

हाइड्रोपोनिक यूनिट की लागत और मेंटेनेंट के बारे में अनिल का कहना है कि इसकी मेंटेनेंस कुछ खास नहीं है। जब वो लोग हाइड्रोपोनिक यूनिट लगाते हैं तो 1-2 बार उसे चेक करने आते हैं जो बिल्कुल मुफ्त होता है। हाइड्रोपोनिक यूनिट में अगर किसी तरह की खामी नहीं है, तो उनके चेक करने के बाद किसान उसे इस्तेमाल कर सकते हैं। इस हाइड्रोपोनिक यूनिट को 3-4 महीने के एक बार साफ करना होता है। इसके लिए हाइड्रोपोनिक यूनिट के सारे ग्लास निकालकर एक साइड से प्रेशर वाले पाइप से किनारे पानी अंदर डालकर साफ करें।

उसके बाद नए पौधे लाकर इसमें इंस्टॉल कर दे। इसमें मुख्य लागत पाइप, मजदूरी, एंगल, लोहा आदि की ही आती है। आमतौर पर एक हाइड्रोपोनिक यूनिट 21-22 हजार में बनती है और ये 5 साल तक चलती है। किसानों को बस सैंपलिंग खरीदनी होती है और उसमें लिक्विड डालना होता है, इसके अलावा कोई ज़्यादा खर्च नहीं है। अनिल थडानी कहते हैं कि वो ऑर्गेनिक खेती करते हैं इसलिए पौधो में जीवामृत, बीजामृत, दशपर्णी अर्क, निमास्त्र और वर्मीवॉश डालते हैं।

स्टूडेंट्स को दे रहे ट्रेनिंग (Providing training to the students)

अनिल थडानी नर्सरी का बिज़नेस करने के साथ ही दूसरों को हाइड्रोपोनिक खेती के तरीके और जैविक दवाइयां बनाना भी सिखा रहे हैं। यश जो अनिल के साथ ही एग्रीकल्चर में मास्टर डिग्री ले चुके हैं, फिलहाल 3 महीने से उनके साथ ट्रेनिंग कर रहे हैं और खुद सीखकर स्टूडेंट्स को भी सिखा रहे हैं। यश का कहना है कि यहां उन्होंने एडवांस खेती सीखी है। उन्होंने यहां जैविक दवाइयां बनाना और पौधों के बारे में बहुत कुछ सीखा है।

नर्सरी बिज़नेस के लिए ज़रूरी बातें (Important things for nursery business)

अनिल कहते हैं कि नर्सरी बिज़नेस में मुख्य रूप से पौधो को विकसित करना और उन्हें बेचना होता है। इसके लिए कुछ डेकोरेविट प्लांट बनाना भी ज़रूरी होता है। उनके पास भी फल, फूल के साथ ही है और भी ढेर सारे पौधे हैं। उन्होंने बताया कि उन्होंने मदर कल्चर प्लांट लगा रखा है, इसे ज़मीन में गाड़ दिया जाता है और बारिश में इसमें ग्राफ्टिंग करके नए पौधे तैयार किए जाते हैं, जिसे अंदर हाइड्रोपोनिक मॉडल में लगाया जाता है। मदर कल्चर का मतलब है कि अच्छी किस्म का एक पौधा जिससे आगे और पौधे तैयार किए जाते हैं यानी उन पौधों में भी मदर प्लांट के ही गुण आएंगे।

कितने तरह के पौधे हैं (How many types of plants are there)

अनिल बताते हैं कि उनका मकसद राजस्थान की जलवायु सहन करने वाले पौधों को एकत्र करने का है जिसके लिए वो लगातार काम कर रहे हैं। फिलहाल उनके पास 174 तरह के पौधे हैं, जिसमें बहुत से पौधों को उन्होंने खुद ही विकसित करते हैं, जैसे देसी कॉटन, गुलाब, आंवला, बेलपत्र, लेमनग्रास, हल्दी, कैनेडियम आदि। वो अलग-अलग तरह के पौधों को जमा कर रहे हैं। अब तक की उनकी रिसर्च में उन्हें पता चला है कि कुल 372 तरह के पौधे राजस्थान की जलवायु में विकसित हो सकते हैं, उनकी प्लानिंग इस सभी पौधों को एकत्र करने की है।

अखंड बेलपत्र (Unbroken Belpatra)

बेलपत्र के बारे में तो सब जानते हैं, मगर अखंड बेलपत्र के बारे में शायद ही कोई जानता होगा। अनिल थडानी ने तमिलनाडू से ये खास और अनोखा पौधा मंगवाकर अपनी नर्सरी में लगाया है। उनका कहना है कि अखंड बेलपत्र को विकसित करना थोड़ा मुश्किल है, क्योंकि इसे बहुत पानी की ज़रूरत नहीं होती है और ज़्यादा गर्म हवा भी इसके लिए ठीक नही है। इसलिए उन्होंने बेलपत्र के पौधे को दूसरों पौधों के बीच में लगाया है। इन अनोखे नाम के बारे में अनिल बताते हैं कि इस बेलपत्र में एक साथ 13 पत्तियां लगी हुए है इसलिए इसे अखंड बेलपत्र कहा जाता है।

चुनौतियां (Challenges)

रेगिस्तान में नर्सरी बनाने में जिन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है उसके बारे में अनिल का कहना है कि सबसे बड़ी समस्या तो है गर्मी का बहुत बढ़ना और दूसरी समस्या है पानी की कमी। इनसे निपटने के लिए के लिए ही उन्होंने पौधों के लिए ग्रीन हाउस जैसा स्ट्रक्चर बनाया है। साथ ही वो कई तरह के वॉटर प्लांट भी उगा रहे हैं जिसमें कमल की कई किस्में है और लिली शामिल है।

रोग और कीट (Diseases and pests)

वॉटर प्लांट विकसित करने में भी किसानों को रोग व कीटों की समस्या का सामना करना पड़ता है। अनिल बताते हैं कि अगर पानी में एलगी बन रही है तो इसका मतलब है कि इसमें ऑक्सीजन कम है, ऐसे पानी में मछलियां नहीं पनपेगी। इसलिए पहले एलगी को खत्म करना होगा। इसकी तरह कमल जैसे वॉटर प्लांट लगाने पर एफिड की समस्या होती है, जिसे आमतौर पर केमिकल के इस्तेमाल से रोका जाता है। मगर अनिल जैविक चीज़ों का इस्तेमाल करने की सलाह देते हैं, वो खुद गोमूत्र, लहसुन और हरीमिर्च को गरम करके उस दवा का स्प्रे के रूप में उपयोग करते हैं। इसके अलावा करते हैं।

इसके अलावा पीएच बैलेंस को बनाए रखना बहुत ज़रूरी है क्योंकि ये फ्लावरिंग और फ्रूटिंग में मदद करता है। पीएच के साथ ही ईसी को भी मेंटेन रखना होता है। अगर ईसी (electrical conductivity) और पीएच दोनों ज़्यादा है, तो इसका मतलब है कि पानी में नमक बहुत ज़्यादा है जिसे एसिड का इस्तेमाल करके कम किया जा सकता है। अमिनो एसिड या फॉलिक एसिड का इस्तमाल किया जा सकता है। ये एसिड चावल और गोबर से बनाए जा सकते हैं।

पौधशाला से बना पौधशालम

अनिल थडानी पहले एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर थे, वहां भी एक हाइड्रोपोनिक यूनिट थी जहां वो छात्रों को सिखाते थे, मगर उन्हें वो एक्सपोज़र नहीं मिला जो वो चाहते थें। फिर उन्होंने पौधशाला नाम से नर्सरी शुरू किया जिसमें उन्हें कई एनजीओ का सहयोग मिला। जल्द ही वो किसानों को सैंपलिंग बनाकर देने लगे, मगर कोविड आने के बाद काम की गति धीमी पड़ गई।

एक लाख रुपए से जिस नर्सरी बिज़नेस की उन्होंने शुरूआत की थी उसमें उन्होंने 2 लाख रुपए तक के पौधे बना लिए और फिर पौधशाला के पौधों को बेचकर उन्होंने नई शुरुआत की। अब उनकी नर्सरी पौधशालम नाम से जानी जाती है। जयपुर के साथ ही अजमेर और जालंधर में भी कई हाइड्रोपोनिक यूनिट बनाने का काम पौधशामल ने किया है।

आपके पास अगर बजट कम है, लेकिन जानकारी पूरी है तो आप नर्सरी बिज़नेस में ज़रूर सफल होंगे और अनिल थडानी इसकी बेहतरीन मिसाल हैं।

ये भी पढ़ें: हाइड्रोपोनिक तकनीक से पेस्टिसाइड फ्री सब्ज़ियां उगा रहे हैं भोपाल के अमन संधू

सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top