भारत में किसान अपने दिन की शुरुआत सुबह जल्दी करते हैं। वे खेतों में कड़ी मेहनत करते हैं, अपनी फसलों की देखभाल करते हैं। वहीं कृषि में सुधार के लिए नवाचार और अनुसंधान पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। भारत अपनी समृद्ध कृषि विरासत के लिए जाना जाता है और किसान कृषि क्षेत्र को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वर्षों से, भारत में किसान स्वदेशी तकनीक और स्वदेशी प्रौद्योगिकियां(Indigenous Technologies) विकसित कर रहे हैं जो कृषि उत्पादकता और स्थिरता को बढ़ाने में मददगार साबित हुई है।
किसान ख़ुद अपने ज्ञान और अनुभव के आधार पर स्वदेशी प्रौद्योगिकियां(Indigenous Technologies) विकसित कर रहे हैं। ये प्रौद्योगिकियां अक्सर आसान, लागत प्रभावी और अलग-अलग जगहों के हिसाब से होती हैं। इससे उन्हें छोटे किसानों के लिए सुलभ और लागू करना भी आसान होता है।
स्वदेशी प्रौद्योगिकियां बनाने में आईसीएआर की भूमिका (Role of ICAR in creating indigenous technologies)
स्वदेशी प्रौद्योगिकी को लेकर भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) की प्रमुख भूमिका रही है। कृषि में स्वदेशी प्रौद्योगिकियों के दस्तावेजीकरण और सत्यापन में आईसीएआर सक्रिय रूप से शामिल रहा है। आईसीएआर कृषि के विभिन्न पहलुओं में स्वदेशी प्रौद्योगिकियों की एक लम्बी लिस्ट की पहचान करने और उन्हें बढ़ावा देने में सक्षम रहा है।
मिट्टी और जल संरक्षण से लेकर फसल प्रबंधन और पौधों की सुरक्षा के उपायों तक, स्वदेशी प्रौद्योगिकियां(Indigenous Technologies) कृषि पद्धतियों के बड़े स्पेक्ट्रम को कवर करती हैं। इन प्रौद्योगिकियों को किसानों के सहयोग से विकसित किया जाता है। यहां किसान सक्रिय रूप से सत्यापन और प्रसार की प्रक्रिया में शामिल होते हैं।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद में कृषि विस्तार विभाग के सहायक महानिदेशक डॉ. रंजय के. सिंह बताते हैं कि “स्वदेशी प्रौद्योगिकियां किसानों द्वारा विकसित की जाती हैं और फिर कुछ वैज्ञानिक संस्थानों द्वारा इसे सीखने और मान्य करने का काम किया जाता है।” वर्ष 2000 से ही, आईसीएआर ने किसानों से कृषि में स्वदेशी तकनीकी ज्ञान की खोज और दस्तावेजीकरण पर एक परियोजना शुरु की है। आप ऐसे स्वदेशी ज्ञान के सैकड़ों उदाहरण पा सकते हैं, और उन्हें निम्नलिखित लिंक पर मान्य भी किया गया है: https://www.icar.org.in/ITK)।”
“ये प्रौद्योगिकियां मिट्टी से बनी थीं जैसे पानी; फसल प्रबंधन; पारंपरिक भोजन; पशुपालन; और पौधों की सुरक्षा के उपाय। आईसीएआर ने किसानों के साथ मिलकर लक्षण बताने से लेकर शोधन और सत्यापन तक किया है। इसके बाद इसे आगे कृषि विज्ञान केंद्रों या फार्म विज्ञान केंद्रों को दिया गया और टिकाऊ कृषि को प्रभावित करने के लिए किसानों के साथ साझा किया गया।”
स्वदेशी प्रौद्योगिकियों के लाभ (Advantages of indigenous technologies)
स्वदेशी प्रौद्योगिकियों का एक प्रमुख फायदा ये है कि वो लम्बे समय तक काम आती हैं। स्थानीय रूप से उपलब्ध संसाधनों और पारंपरिक ज्ञान का इस्तेमाल करके, किसान बाहरी इनपुट पर अपनी निर्भरता को कम कर पाते हैं। साथ ही किसानों को पर्यावरण की बदलती परिस्थितियों को लेकर अपने लचीलेपन में सुधार करने में भी मदद मिलती है। स्वदेशी प्रौद्योगिकियां(Indigenous Technologies) जैव विविधता संरक्षण को भी बढ़ावा देती हैं और पारंपरिक कृषि पद्धतियों के संरक्षण में योगदान देती हैं।
पर्यावरण से जुड़े लाभों के अलावा, स्वदेशी प्रौद्योगिकियों के सामाजिक और आर्थिक लाभ भी हैं। इनकी मदद से किसान आत्मनिर्भर बन रहे हैं। किसानों को उनकी आजीविका में सुधार लाने में मदद मिल रही है। उनके ज्ञान और कौशल का विकास हो रहा है। लिहाज़ा स्वदेशी प्रौद्योगिकियां(Indigenous Technologies) ग्रामीण विकास और खाद्य सुरक्षा को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
आधुनिक प्रौद्योगिकियों की तुलना में स्वदेशी प्रौद्योगिकियों की लागत अक्सर कम होती है। इससे वे छोटे पैमाने के किसानों और हाशिए पर रहने वाले समुदायों के लिए ज़्यादा सुलभ हो जाती हैं। इससे गरीबी को कम करने और ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों के लिए आर्थिक अवसरों में सुधार करने में मदद मिल सकती है।
इसके अलावा, स्वदेशी प्रौद्योगिकियां(Indigenous Technologies) अक्सर सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण होती हैं और पारंपरिक ज्ञान और प्रथाओं को संरक्षित करने में मदद करती हैं। आधुनिक कृषि पद्धतियों में स्वदेशी प्रौद्योगिकियों को शामिल करने से, स्वदेशी समुदायों के लिए सांस्कृतिक पहचान और भूमि से जुड़ाव की भावना बढ़ती है।
स्वदेशी प्रौद्योगिकियों पर अनुसंधान (Research on indigenous technologies)
आईसीएआर – आईएआरआई (भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद – भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान) में भारतीय किसानों की ज़रूरतों को पूरा करने वाली स्वदेशी तकनीकों को विकसित करने पर कई शोध चल रहे हैं। आईसीएआर-आईएआरआई में कई शोध परियोजना टिकाऊ कृषि के लिए स्वदेशी प्रौद्योगिकियों को विकसित करने पर केंद्रित है। इस परियोजना का उद्देश्य रासायनिक आदानों पर निर्भरता को कम करना और जैविक कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देना है। आईसीएआर आईएआरआई के शोधकर्ता ऐसे जैव-उर्वरक और जैव-कीटनाशक विकसित करने पर काम कर रहे हैं जो लागत प्रभावी और पर्यावरण के अनुकूल हैं। ये स्वदेशी प्रौद्योगिकियां(Indigenous Technologies) फसल की पैदावार बढ़ाने में मदद करती हैं। साथ ही मिट्टी के स्वास्थ्य और जैव विविधता को भी बढ़ावा देती हैं।
आईसीएआर आईएआरआई में अनुसंधान का एक और क्षेत्र कृषि के लिए जल प्रबंधन तकनीकों को विकसित करना भी है। देश के कई हिस्सों में पानी की कमी एक बड़ा मुद्दा है। आईसीएआर आईएआरआई के शोधकर्ता कृषि में पानी के कुशल उपयोग के लिए स्वदेशी तकनीक विकसित कर रहे हैं। इन प्रौद्योगिकियों में ड्रिप सिंचाई प्रणाली, वर्षा जल संचयन तकनीक और जल पुनर्चक्रण विधियां शामिल हैं। इन प्रौद्योगिकियों को लागू करने से किसान पानी की बर्बादी को कम कर सकते हैं और फसल उत्पादकता बढ़ा सकते हैं।
इसके अलावा, आईसीएआर आईएआरआई स्वदेशी बीज किस्मों को विकसित करने पर भी काम कर रहा है। ये बीज भारतीय कृषि-जलवायु परिस्थितियों के लिए उपयुक्त हैं। ये बीज अधिक उपज देने वाले, रोग-प्रतिरोधी और सूखा-सहिष्णु हैं, जो इन्हें भारतीय किसानों के लिए आदर्श बनाते हैं। स्वदेशी बीजों के उपयोग को बढ़ावा देकर, आईसीएआर आईएआरआई किसानों को महंगे संकर बीजों और रासायनिक आदानों पर निर्भरता कम करने में मदद कर रहा है।
ये भी पढ़ें: लगातार बढ़ता वायु प्रदूषण और किसानों की उपज पर संकट के बादल, कैसे बचाएं फ़सल?
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।