Pantnagar University: उन्नत कृषि में क्या है गोविंद बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय की भूमिका
दलहन उत्पादन में भारत को कैसे आत्मनिर्भर बना सकती हैं पंतनगर में विकसित नई किस्में?
पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय (Pantnagar University) में विकसित उड़द, मूंग, मसूर, चना और सोयाबीन की नई किस्मों के बारे में जानिए।
कृषि विकास और अनुसंधान को समर्पित देश के पहले विश्वविद्यालय के रूप में उत्तराखंड के पंतनगर स्थित गोविंद बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौदियोगिकी विश्वविद्यालय की एक विशिष्ट पहचान है। ये पहचान न सिर्फ़ इसके छह दशक से भी ज़्यादा पुराना होने की वज़ह से है, बल्कि इस दौरान कृषि विकास में लगातार हासिल की गई उपलब्धियों की वजह से भी है। इस संस्थान ने न सिर्फ़ उत्तराखंड, बल्कि देश के अलग-अलग हिस्सों की ज़रूरतों के मुताबिक अलग-अलग फसलों की उन्नत किस्में विकसित की हैं। ये सिलसिला हरित क्रांति से शुरूहुआ था, जो बदस्तूर जारी है। इसके साथ ही बागवानी, मवेशी पालन, मत्स्य पालन और कृषि तकनीकी अनुसंधान और विकास के क्षेत्र में भी उपलब्धियां हासिल की हैं। इसे पंतनगर यूनिवर्सिटी (Pantnagar University) के नाम से भी जाना जाता है।
1960 में गोविंद बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय राष्ट्र को समर्पित किया गया था। स्थापना के एक दशक के भीतर ही उन्नत किस्म के बीजों को विकसित करने, कृषि प्रौद्योगिकी के विकास और हस्तांतरण के केंद्र के रूप में गोविंद बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय ने खुद को स्थापित कर लिया। पंतनगर सीड्स इसी विश्वविद्यालय की देन है, जिसने एक ब्रांड के रूप में स्थापित होकर पूरे देश में कृषि उत्पादकता बढ़ाने में योगदान दिया। उस दौर के मशहूर मैक्सिन गेहूं की किस्मों का परीक्षण गोविंद बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में ही किया गया था। विभिन्न फसलों की 276 से ज़्यादा किस्में विकसित करने, सोयाबीन को फसल के रूप में स्थापित करने, ज़ीरो टिलेज संसाधन संरक्षण तकनीक विकसित करने, मुर्गीपालन में साल्मोनेलोसिस टीका और मवेशियों के लिए गर्भावस्था निदान किट परीक्षण जैसी उपलब्धियां पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय के खाते में ही हैं। रोग रहित उच्च उत्पादकता वाली किस्मों और तकनीकी टूल्स के विकास से उन्नत कृषि की राह दिखा रही Pantnagar University को तीन बार साल 1997, 2005 और 2019 में प्रतिष्ठित सरदार वल्लभ भाई पटेल बेस्ट इंस्टीट्यूशन अवॉर्ड से सम्मानित किया जा चुका है।

दलहन उत्पादन में बड़ा बदलाव लाएंगी पंतनगर में विकसित मूंग और उड़द की नई प्रजातियां
भारत में दलहन की औसत सालाना मांग 30 मिलियन टन है, जबकि इसका औसत सालाना उत्पादन 23 मिलियन टन के आसपास होता है। साल 2019-20 में भारत में कुल 23.15 मिलियन टन दलहन का उत्पादन हुआ था। ये कुल वैश्विक उत्पादन का 23.62 फीसदी ज़रूर है, लेकिन भारत चूंकि दलहन का सबसे बड़ा उत्पादक होने के साथ-साथ सबसे बड़ा उपभोक्ता भी है, इसलिए दाल की कीमतें लगातार ऊंची बनी रहती है। मांग और उत्पादन के अंतर को घटाने और ज़्यादा उत्पादन कर कीमतों में कमी लाने की दिशा में कृषि अनुसंधान केंद्र लगातार नई-नई किस्मों के विकास में जुटे हैं। इसी कड़ी में गोविंद बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय ने पंत उड़द 6, पंत मूंग 7 और पंत मूंग 8 किस्में ईज़ाद की हैं।
अभी इन नई किस्मों को उत्तराखंड में उगाने के लिए विकसित किया गया है। दरअसल, उत्तराखंड में उड़द और मूंग की पहले की किस्मों में रोग लगने और कीटों का प्रकोप बढ़ने से उत्पादकता घटती जा रही थी। रोगों की रोकथाम के लिए कीटनाशकों के ज़्यादा इस्तेमाल से गुणवत्ता भी कम हो रही थी। दलहन उत्पादक किसानों की लागत बढ़ने और आय घटने की आशंका को महसूस करते हुए Pantnagar University ने तीन साल तक परीक्षण के बाद इन नई किस्मों को विकसित करने में सफलता हासिल की है।
पंत उड़द 6 किस्म की उपज किसानों के खेतों में किए गए परीक्षणों में 1976 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर पाई गई है। इसके दाने आकार में बड़े और रंग में काले हैं। उड़द 6 प्रजाति उड़द दाल की प्रमुख बीमारियों मूंगबीन पीला मोजेक, चूर्णी फफूंदी रोगों, सर्कोस्पोरा लीफ स्पॉट, सफेद मक्खी, जेसिड कीटों के लिए अवरोधी हैं। तीन महीने में ये नई किस्म तैयार हो जाती है। गोविंद बल्लभ पंत विश्वविद्यालय में विकसित ये नई प्रजाति उड़द की पंत उड़द 19, पंत उड़द 30, पंत उड़द 35, पंत उड़द 40 और पंत उड़द 31 की जगह उपजाई जाएगी, जिससे दलहन उत्पादक किसानों को दलहन उत्पादन बढ़ाने और कीटनाशकों का इस्तेमाल घटाने में मदद मिलेगी।
नई किस्म पंत मूंग 7, पंत मूंग 4 और पंत मूंग 5 से 10 फ़ीसदी से लेकर 16 फ़ीसदी तक ज़्यादा उत्पादन देती है। पंत मूंग 8 किस्म के परीक्षण में भी पहले विकसित मूंग की किस्मों से ज़्यादा उत्पादन देखा गया है। पंतनगर के कृषि वैज्ञानिकों की विकसित ये नई किस्में दलहन उत्पादन बढ़ाने और रोगरहित फसल उपजाने में मददगार होंगी।
मसूर और मटर की नई प्रजातियां दलहन उत्पादन में करेंगी बढ़ोतरी
पंत मसूर 9 प्रजाति की औसत उपज 14 से 16 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। ये मानक प्रजाति पंत मसूर 406 से 11 फ़ीसदी और पंत मसूर 5 से 23.7 ज़्यादा उपज देती है। मसूर में गेरूई और उकठा यानी रस्ट और विल्ट प्रमुख बीमारियां हैं और पंतनगर में विकसित पंत मसूर 9 किस्म इन रोगों की रोधी है। ये किस्म फली छेदक से भी रोधी है। 120 दिन से लेकर 125 दिन में इस किस्म की मसूर की फसल परिपक्व हो जाती है।
पंत मटर 155 की नई किस्म का औसत उत्पादन भी पहले की किस्मों की तुलना में ज़्यादा है और ये रोग और कीट रोधी भी है। 125 से 130 दिन में तैयार होने वाली ये नई किस्म मटर उत्पादक किसानों के लिए पहले की किस्मों से ज़्यादा फ़ायदेमंद है।

पंत चना 3 और 4 के साथ पंत काबुली चना 2 की नई किस्म विकसित
उत्तर भारत में चने की उत्पादकता में पिछले कुछ वर्षों में आई कमी को ध्यान में रखते हुए पंतनगर में अनुसंधान चल रहा था। चने की उपलब्ध प्रजातियों में से ज़्यादातर कीटों और रोगों की चपेट में आ गई थीं, जिनसे निपटने में उत्पादक किसानों की लागत बढ़ती जा रही थी। लागत और आय में घटते अंतर को देखते हुए चने की बुवाई का रकबा सिमटता जा रहा था, ऐसे में Pantnagar University के लिए रोगरोधी नई किस्मों का विकास करना एक बेहद ज़रूरी कदम था।
पंत चना 3 किस्म के 850 (एलएम) X अवरोधी के संकरण से वंशावली विधि के जरिये विकसित की गई है। चने की प्रमुख बीमारी उकठा रोग और फली छेदक कीट दोनों के लिए ये नई किस्म अवरोधी है। चने की इस किस्म का दाना आकार में बड़ा होता है और परीक्षण में ये सामने आया है कि पंत 186 और पूसा 256 की तुलना में ज़्यादा उपज होती है। पंतनगर में विकसित पंत चना 3 किस्म की परिपक्वता अवधि 150 दिन है।
पंत चना 4 किस्म की बात करें तो इसकी औसत उपज 1837 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है। किसानों के खेतों में पंत चना 4 का औसत उत्पादन 1705 किलोग्राम है। पंत चना की पुरानी प्रजातियों पंत चना 186 और पंत चना 114 की तुलना में ये नई किस्म ज़्यादा उपज देने के साथ-साथ उकठा रोग और फली छेदक कीट रोधी है।
पंत काबुली चना 2 एक और नई विकसित किस्म है। ये किस्म साढ़े चार महीने से लेकर पांच महीने के बीच में पूरी तरह तैयार होती है। पंत काबुली चना 1 की तुलना में इस किस्म की उपज 16 फीसदी ज़्यादा है।
Pantnagar University में विकसित हुईं सोयाबीन की चार रोगरोधी नई किस्में
सोयाबीन की खेती को फसल के रूप में स्थापित करने में जीबी पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय की भूमिका सबसे अहम है। इस विश्वविद्यालय ने हाल ही में चार और किस्में विकसित की हैं। पंत सोयाबीन 20 PS 1475, पंत सोयाबीन 21 PS 1480, पंत सोयाबीन सोयाबीन 22 PS 1505, पंत सोयाबीन 23 PS 1521 को मैदानी, तराई और भावर क्षेत्रों के लिए विकसित किया गया है। वंशावली विधि से विकसित सोयाबीन की इन नई किस्मों की उत्पादन क्षमता प्रति हेक्टेयर 35 क्विंटल से 40 क्विंटल है। ये किस्में रोगरोधी हैं।
गेहूं की तीन नई उन्नत किस्में पंतनगर विश्वविद्यालय में विकसित
यू पी 2748, यू पी 2784, यूपी 2785 की तीन नई गेहूं किस्में विकसित की गईं हैं। गेहूं की नई प्रजाति यू पी 2748 सिंचित दशा में देर से बुआई यानी दिसंबर में बुआई के उपयुक्त है। उत्तराखंड में इस नई प्रजाति की औसत उपज प्रति हेक्टेयर 44 क्विंटल पाई गई है। सुनहरे रंग का सुडौल दाना है और रतुआ रोग रोधी ये प्रजाति रोटी और ब्रेड दोनों के लिए उपयुक्त है। यू पी 2784 और यूपी 2785 किस्मों की नवंबर में बुवाई कर सकते हैं। परीक्षणों में इसकी उपज यू पी 2748 से भी ज़्यादा पाई गई है।
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