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रवि प्रसाद ने केले के कचरे से खड़ा कर दिखाया ग्रामीण उद्योग, जानिए कैसे रोज़गार का ज़रिया बनी केले की खेती

केले की फ़सल से निकले कचरे से बनाया कुटीर उद्योग

उत्तर प्रदेश के कुशीनगर ज़िले के रवि प्रसाद ने रोज़गार के अवसर विकसित करने की सराहनीय उपलब्धि हासिल की है। वो केले के रेशे से कालीन, चप्पल, टोपी, बैग और डोरमैट वग़ैरह बनाते हैं। अपने इस व्यवसाय से उन्होंने कइयों को रोज़गार दिया है।

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उत्तर प्रदेश के कुशीनगर ज़िले के हरिहरपुर गाँव के रवि प्रसाद ने केले के किसानों के अलावा ग्रामीण इलाके के बेरोज़गारों को एक नयी रौशनी दिखायी है। उन्होंने केले की फ़सल की कटाई के बाद कचरे के रूप में फेंके जा रहे इसके हिस्सों को अपने ग्रामीण उद्योग का कच्चा माल बना दिया।

कुछ वर्ष पहले तक ऐसे कचरे का निपटान किसानों के लिए ख़ासा मुश्किल भरा काम हुआ करता था। लेकिन रवि प्रसाद ने केले के फ़ाइबर से कालीन, चप्पल, टोपी, बैग और डोरमैट वग़ैरह बनाने की ठानी और इसी काम को अपने सिवाय 35-40 लोगों के लिए रोज़गार का ज़रिया बना दिया।

केले के कचरे banana agriculture waste
कुशीनगर ज़िले के हरिहरपुर गाँव के रवि प्रसाद – तस्वीर साभार: ruralmarketing

कोयम्बटूर से ली ट्रेनिंग

गोरखपुर के दिग्विजय नाथ पीजी कॉलेज से अर्थशास्त्र में बीए पास करने के बाद तमाम ग्रामीण युवाओं की तरह रवि प्रसाद ने भी रोज़गार के लिए दिल्ली का रुख़ किया। राजधानी के प्रगति मैदान में लगने वाली एक प्रदर्शनी को देखने के लिए दो साल पहले रवि प्रसाद भी अपने दोस्तों के साथ जा पहुँचे। प्रदर्शनी में उन्होंने तमिलनाडु के कोयम्बटूर से आये एक उद्यमी के केले के पेड़ से निकले उत्पादों को देखा।

तब रवि प्रसाद को लगा कि कुशीनगर में उनके इलाके में भी क़रीब 5,000 हेक्टेयर पर केले की खेती की जाती है। यदि वो भी फ़ाइबर (रेशे) से भरपूर केले के कचरे से सामान बनाने की तकनीक सीख लें तो अपने इलाके में काफ़ी बदलाव लाया जा सकता है।

बस, फिर क्या था! रवि ने प्रदर्शकों से आग्रह किया कि वो उन्हें प्रशिक्षित करने में मदद करें। इसके लिए उन्हें कोयम्बटूर आने को कहा गया। प्रदर्शनी के बाद रवि जा पहुँचे कोयम्बटूर। वहाँ महीने भर का प्रशिक्षण लेकर रवि प्रसाद, दिल्ली नहीं बल्कि अपने गाँव लौट गये। रवि के पास अपना कारोबार शुरू करने के लिए पूँजी नहीं थी, लेकिन हौसले बुलन्द थे।

इसलिए लिखा-पढ़ी की ज़रूरतें पूरी करके उन्होंने प्रधानमंत्री रोज़गार सृजन कार्यक्रम (PMEGP) के तहत यूनियन बैंक ऑफ़ इंडिया से 5 लाख रुपये का कर्ज़ हासिल किया।

केले के कचरे banana agriculture waste
केले के रेशे से बने डोरमैट और बास्केट (तस्वीर साभार: exportersindia)

35 महिलाओं को मिला रोज़गार

इसके बाद, दो साल के सफ़र के बाद अब तक, रवि प्रसाद ने अपने उद्योग के लिए न सिर्फ़ बुनियादी ढाँचा तैयार किया, बल्कि गाँव की महिलाओं को आवश्यक प्रशिक्षण देकर केले के रेशे से तरह-तरह की चीज़ों को बनवाना शुरू किया। क़रीब 35 महिला कारीगर हस्तनिर्मित केले के फाइबर से कालीन और अन्य सामानों का उत्पादन कर रही हैं। इस तरह, रवि प्रसाद की उद्यमिता ने स्वरोज़गार के अलावा गाँव में रोज़गार के अवसर विकसित करने का सराहनीय काम किया।

केले के कचरे banana agriculture waste
केले के रेशे से तैयार कालीन (तस्वीर साभार: exportersindia)

जैविक खाद से भी आमदनी

पहले केले की फ़सलों की कटाई के बाद इसके पेड़ का बाक़ी बचा हिस्सा किसानों के लिए बोझ बन जाता था। अब रवि ने उसे बहुउद्देशीय उपयोगिता वाली खेती बना दी है। बक़ौल रवि, “एक मशीन के ज़रिये मैं केले का पानी और उसके तने तथा पत्तियों से बनने वाले कचरे को अलग-अलग तरीके से इस्तेमाल कर लेता हूँ। तरह-तरह का सामान बनाने के अलावा केले के पानी से कपड़ों की रंगाई वाला रंग बनाया जाता है। कचरे का उपयोग भी जैविक खाद बनाने के लिए किया जाता है। इससे भी आमदनी होती है।”

केले के कचरे banana agriculture waste
केले के रेशे से तैयार चप्पलें (तस्वीर साभार: trishulnews)

प्रदर्शनी का बने आकर्षण

अपने उद्यम के बदौलत रवि प्रसाद ने अपनी ऐसी पहचान बनायी है कि उन्हें अक्सर प्रदर्शनियों में आमंत्रित किया जाता है। इसमें वो अपने उत्पाद लेकर पहुँचते हैं। उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से रवि प्रसाद को हरेक प्रदर्शनी में शामिल होने के लिए 10 हज़ार रुपये भी मिलते हैं। आमतौर पर ऐसी प्रदर्शनी 15 दिनों की होती है।

रवि प्रसाद को प्रदेश सरकार की ओर से लखनऊ में एक स्थायी आउटलेट संचालित करने का भी काम मिला। रवि की कहानी शिक्षित युवाओं को प्रेरणा देने वाली है, क्योंकि देश में 7.7 लाख हेक्टेयर ज़मीन पर केले की खेती होती है। यानी, इस क्षेत्र में काफ़ी सम्भावनाएँ हैं।

केले के कचरे banana agriculture waste
तस्वीर साभार: 30stades

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