भारत का मछली पालन क्षेत्र (Fisheries Sector) कर रहा है सबसे तेज़ ग्रोथ! क्या कहते हैं आकंड़े?

समंदर से तालाब तक, भारत का मत्स्य पालन (Fish Farming) क्षेत्र ग्रामीण भारत की नई आशा बन रहा है। भारत का मत्स्य और तटीय क्षेत्र न केवल देश की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करता है, बल्कि लाखों ग्रामीण और तटीय परिवारों के लिए रोज़गार का मुख्य साधन भी है।

भारत का मछली पालन क्षेत्र (Fisheries Sector)

भारत, जिसकी गिनती दुनिया के प्रमुख मत्स्य उत्पादक देशों में होती है, एक विशाल और विविधतापूर्ण मत्स्य संसाधनों वाला देश है। भारत का मछली पालन क्षेत्र समुद्री और अंतर्देशीय (इनलैंड) दोनों तरह के संसाधनों पर आधारित है, जिनकी भरपूर उपलब्धता ने इसे न सिर्फ़ आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्र बनाया है, बल्कि करोड़ों लोगों की आजीविका का भी प्रमुख स्रोत है।

भारत का मछली पालन क्षेत्र साल 2014 से लगातार तेज़ी से आगे बढ़ रहा है। मत्स्यपालन, पशुपालन एवं डेयरी मंत्रालय के जारी आंकड़ों के अनुसार, इसने लगभग 9.08% की वार्षिक वृद्धि दर हासिल की है, जो कि कृषि और उससे जुड़े सभी क्षेत्रों में सबसे तेज़ है। ये तेज़ बढ़त दिखाती है कि कैसे मछली पालन एक मज़बूत और तेजी से बढ़ता हुआ क्षेत्र बन चुका है, जो किसानों, मछुआरों और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़े बदलाव का ज़रिया बन रहा है।

समुद्री मत्स्य संसाधन (Marine fishery resources)

भारत का समुद्री क्षेत्र इसके मत्स्य उत्पादन का एक अहम हिस्सा है। देश के पास 11,099 किलोमीटर लंबा समुद्र तट है, जो नौ तटीय राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों से होकर गुजरता है। इसके अलावा भारत का विशेष आर्थिक क्षेत्र (EEZ) लगभग 20.20 लाख वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है, जो समुद्री मछली पकड़ने की अपार संभावनाएं रखता है।

भारत का महाद्वीपीय शेल्फ क्षेत्र लगभग 5.30 लाख वर्ग किलोमीटर है, जिसमें मछलियों की कई प्रजातियां पाई जाती हैं। तटीय इलाकों में 3,477 मछुआरा गांव, 1,547 फिश लैंडिंग सेंटर्स, और 72 फिशिंग हार्बर (मछली पकड़ने के बंदरगाह) हैं, जो मत्स्य उद्योग के संचालन और व्यापार में सहायक हैं।

अंतर्देशीय (इनलैंड) मत्स्य संसाधन (Inland fisheries resources)

भारत के इनलैंड जल संसाधन भी मछली पालन के लिए अत्यंत उपयुक्त हैं। देश में 1.90 लाख किलोमीटर लंबी नदियां और नहरें हैं। इसके अलावा, भारत के पास कई प्रकार के जल संसाधन हैं जैसे:

  • ब्रैकिश वॉटर (नमकीन पानी): 14.12 लाख हेक्टेयर

  • बील/ऑक्सबो झीलें: 7.43 लाख हेक्टेयर

  • तालाब और टैंक: 22.12 लाख हेक्टेयर

  • जलाशय (रिजर्वायर): 31.50 लाख हेक्टेयर

इन संसाधनों का प्रयोग करके भारत ने इनलैंड फिश कल्चर को बड़े पैमाने पर विकसित किया है।

तटीय राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की भूमिका (Role of coastal states and union territories)

भारत के तटीय राज्य और केंद्र शासित प्रदेश मत्स्य उत्पादन में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं। इन क्षेत्रों का कुल मत्स्य उत्पादन 132.17 लाख टन है, जिसमें:

  • इनलैंड कल्चर (पालन): 87.22 लाख टन

  • समुद्री कैप्चर (मछली पकड़ना): 44.95 लाख टन

ये भारत के कुल मछली उत्पादन का लगभग 72% है, जो दर्शाता है कि तटीय क्षेत्रों की भूमिका कितनी अहम है।

भारत का कुल मत्स्य और जलकृषि उत्पादन (Total fish and aquaculture production of India)

देश का कुल मत्स्य और एक्वाकल्चर (जलकृषि) उत्पादन 184.02 लाख टन है, जिसमें:

  • इनलैंड कल्चर: 139.07 लाख टन

  • समुद्री मछली पकड़ना: 44.95 लाख टन

जब जल संसाधनों के अनुसार विभाजन करें तो ये उत्पादन विभिन्न स्रोतों से आता है:

  • तालाब और टैंक से: 58%

  • ब्रैकिश वॉटर से: 41%

  • जलाशयों से: 37%

  • नदियों और नहरों से: 34%

  • बील/ऑक्सबो झीलों से: 24%

इससे पता चलता है कि इनलैंड संसाधन भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं जितने समुद्री क्षेत्र।

देश के अग्रणी मत्स्य उत्पादक राज्य (India’s Leading fish producing states)

भारत के कुल मछली उत्पादन का 57% से अधिक हिस्सा अकेले  5 राज्यों से आता है:

  1. आंध्र प्रदेश

  2. पश्चिम बंगाल

  3. कर्नाटक

  4. ओडिशा

  5. गुजरात

इन राज्यों ने आधुनिक तकनीकों को अपनाया है और इससे लोगों को अच्छा रोज़गार भी मिला है।

भारत के मत्स्य क्षेत्र में संभावनाएं और सरकारी प्रयास (Prospects & Government Efforts in Fisheries Sector of India)

भारत का मत्स्य और तटीय क्षेत्र न केवल देश की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करता है, बल्कि लाखों ग्रामीण और तटीय परिवारों के लिए रोज़गार का मुख्य साधन भी है। इन संसाधनों का सही और टिकाऊ तरीके से प्रबंधन करके भारत आने वाले सालों में वैश्विक मत्स्य निर्यातक के रूप में और भी मज़बूत हो सकता है।

सरकार की कई योजनाएं, जैसे प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना (PMMSY), मछली पालकों को आर्थिक मदद, तकनीकी प्रशिक्षण और बाज़ार से जोड़ने में अहम भूमिका निभा रही हैं। अगर इन संसाधनों का वैज्ञानिक तरीके से इस्तेमाल किया जाए, तो ये क्षेत्र भारत की अर्थव्यवस्था को और मज़बूत बना सकता है।

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