मध्य प्रदेश में अस्पतालों की तर्ज़ पर अब ‘कृषि ओपीडी’

मध्य प्रदेश में अब किसानों को व्हाट्सएप टेक्नोलॉज़ी से कृषि विज्ञान केन्द्र से सम्पर्क करने की अतिरिक्त सुविधा भी दी जा रही है। इसके ज़रिये जो किसान किसी भी वजह से कृषि विज्ञान केन्द्र तक पहुँचने में असमर्थन हैं वो व्हाट्सएप के ज़रिये फसल की तस्वीरें विशेषज्ञों के पास भेजकर और फिर उन्हें फ़ोन करके अपनी समस्या का निदान पा सकते हैं।

मध्य प्रदेश में अस्पतालों की तर्ज़ पर अब ‘कृषि ओपीडी’

मध्य प्रदेश में किसानों की मदद के लिए सरकार ने अस्पतालों के तर्ज़ पर ‘कृषि ओपीडी’ का संचालन शुरू किया है। इसका मुख्य उद्देश्य फसलों के रोगों की पहचान करने और किसानों को उसका सही उपचार बताना है। दरअसल, अक्सर देखा जाता है कि किसानों को अपनी फसल में लगे रोग और कीड़ों की सही पहचान नहीं होती।

फसलों के रोगों के इलाज़ के लिए किसान आमतौर पर कीटनाशक बेचने वाले दुकानदारों की काबलियत पर या औरों की देखा-देखी करके ग़लत दवाई का इस्तेमाल कर लेते हैं। इससे कई बार किसानों को फ़ायदा नहीं बल्कि नुकसान उठाना पड़ता है। इसीलिए सरकार ने कृषि ओपीडी के रूप में ऐसी योजना बनायी जहाँ किसानों को आसानी से कृषि विशेषज्ञों की सलाह मिल जाएगी और उनकी फसलों को कम से कम खर्च में तथा तेज़ी से सुरक्षित किया जा सकेगा।

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कैसे काम करती है कृषि ओपीडी?

·       अभी तक ज़िले के कृषि विज्ञान केन्द्र में तैनात विशेषज्ञों से मिलने, उनसे मशविरा करने या उन्हें अपनी रोगग्रस्त फसल का नमूना दिखाने के लिए किसानों को ख़ुद वहाँ पहुँचना पड़ता था। ये प्रक्रिया अब भी जारी है। लेकिन अब किसानों को व्हाट्सएप टेक्नोलॉज़ी से कृषि विज्ञान केन्द्र से सम्पर्क करने की अतिरिक्त सुविधा भी दी जा रही है। इसके ज़रिये जो किसान किसी भी वजह से कृषि विज्ञान केन्द्र तक पहुँचने में असमर्थन हैं वो व्हाट्सएप के ज़रिये फसल की तस्वीरें विशेषज्ञों के पास भेजकर और फिर उन्हें फ़ोन करके अपनी समस्या का निदान पा सकते हैं।

·       दरअसल, कृषि विज्ञान केन्द्र में खेती-किसानी से जुड़े हर पहलू के विशेषज्ञ या तो तैनात रहते हैं या फिर उनके पास अपने भी वरिष्ठ सहयोगियों से मशविरा करने का मौका रहता है। इस तरह कृषि ओपीडी के ज़रिये किसानों की सही विशेषज्ञों तक पहुँच वैसे ही बन जाती है जैसा इंसानों के मामले में अस्पतालों में होता है। इस तरह किसानों की कई समस्याओं का एक साथ समाधान हो जाता है।

·       कृषि ओपीडी में किसानों का पूरा ब्यौरा रखा जाता है। मसलन, उसका परिचय, उसके गाँव का नाम, उसने कौन सी फसल बोई, कौन सा बीज इस्तेमाल किया, कौन सी खाद या कीटनाशक का प्रयोग किया, उसकी ज़मीन की प्रकृति क्या है, उसे किन समस्याओं का सामना करना पड़ा है और उसका भविष्य में किस फसल की खेती करना का इरादा है। ताकि उसे भविष्य में भी सही सलाह मिलती रहे।

·       कृषि ओपीडी के ज़रिये विशेषज्ञों को जो जानकारियाँ मिलती हैं, उसकी बदौलत वो रबी तथा खरीफ की फसलों में लगने वाली बीमारियों और उनके निदान का एक कैलेंडर भी तैयार करते हैं। इसके अलावा वो हफ़्ते में एक दिन गाँवों का दौरा भी करते हैं। ताकि फसल का मौके पर पहुँचकर मुआयना किया जा सके। इससे किसानों को मिट्टी की स्थिति, फसल चक्र, बीज, खाद और रोगों के निदान से जुड़ी कई अन्य बातें भी जानने-सीखने को मिल जाती है।

·       सारी क़वायद के आधार पर विशेषज्ञ अपनी रिपोर्ट भी बनाते हैं और इसे सम्बन्धित विभागों को भेजेते हैं। ताकि भविष्य में खेती-किसानी से जुड़ी रणनीतियाँ बनाते वक़्त आला विशेषज्ञों और अधिकारियों को सहुलियत हो।

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कहाँ-कहाँ होंगे कृषि ओपीडी?

कृषि ओपीडी की योजना की शुरुआत दिसम्बर 2020 में मध्य प्रदेश के जबलपुर से हुई। वहाँ इसे पायलट प्रोजेक्ट की तरह चलाया गया। इसके उत्साहजनक नतीज़े मिलने के बाद योजना को हरदा ज़िले में भी शुरू किया गया। जल्द ही बैतूल, बड़गांव, छिन्दवाड़ा, छतरपुर, डिंडौरी, दमोह, कटनी, मंडला, नरसिंहपुर, पन्ना, रीवा, सागर, सिवनी, शहडोल, सीधी, सिंगरौली, टीकमगढ़ और उमरिया के ज़िला कृषि विज्ञान केन्द्रों पर भी कृषि ओपीडी को चालू कर दिया जाएगा। कृषि ओपीडी का लाभ उठाने के इच्छुक किसानों में वहाँ सम्पर्क करके व्हाट्सएप नम्बर हासिल करना होगा।

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