सेवण घास (Sewan Grass): दुधारू पशुओं और पशुपालकों के लिए लाजबाब

पश्चिमी राजस्थान के जोधपुर, बाड़मेर, जैसलमेर, बीकानेर, श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ ज़िलों में सेवण घास ख़ूब पायी जाती है। वहाँ सालाना 250 मिलीमीटर से कम बारिश होती है। सेवण घास में जड़ तंत्र का बढ़िया विकास होता है। इसीलिए इसमें सूखा को सहन करने की क्षमता होती है। इसे रेगिस्तानी घासों का राजा माना गया है।

सेवण घास

शुष्क इलाकों में दुधारू पशुओं और पशुपालकों के लिए सूखे और हरे चारे की ज़रूरत को पूरा करने के लिहाज़ से सेवण घास का कोई जबाब नहीं है। सेवण घास का पौधा एक बार लगाने के बाद 10 से 15 साल तक हरा चारा मुहैया करवा सकता है। सेवण घास को उगाकर शुष्क और अति शुष्क इलाकों में सूखे और हरे चारे की किल्लत को ख़त्म किया जा सकता है। सेवण घास सूखारोधी होती है। ये कम और ज़्यादा तापमान की दशा में भी आसानी से बढ़ने की क्षमता रखती है। इसीलिए रेगिस्तान इलाकों में इसे आसानी से उगाया जाता है।

सेवण (लसियुरूस सिडीकुस) एक बहुवर्षीय घास है। यह शुष्क, अति शुष्क और रेतीले इलाकों में आसानी से पनपती है। पश्चिमी राजस्थान के जोधपुर, बाड़मेर, जैसलमेर, बीकानेर, श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ ज़िलों में सेवण घास ख़ूब पायी जाती है। वहाँ सालाना 250 मिलीमीटर से कम बारिश होती है। सेवण घास में जड़ तंत्र का बढ़िया विकास होता है। इसीलिए इसमें सूखा को सहन करने की क्षमता होती है। इसे रेगिस्तानी घासों का राजा माना गया है।

पोषक तत्वों से भरपूर है सेवण घास

सेवण घास पशुओं के लिए बहुत पौष्टिक और सुपाच्य होती है। ये ग्रामीण चारागाहों में आसानी से नज़र आती है। अन्य घासों के मुकाबले सेवण घास में स्ट्रार्च और प्रोटीन की मात्रा कहीं ज़्यादा होती है। इसमें 10 से 12 प्रतिशत प्रोटीन और 30 से 35 प्रतिशत रेशा पाया जाता है। सेवण घास का चारा गाय के लिए सबसे अधिक पौष्टिक और उपयुक्त है। गाय के अलावा इसे भैंस, ऊँट और भेड़-बकरी भी बहुत पसन्द करते हैं। पुष्पन के समय भेड़-बकरी सेवण घास को बहुत चाव से खाती हैं। सेवण घास को पशुपालक किसान सूखा चारे की तरह भी इस्तेमाल कर सकते हैं। पश्चिमी राजस्थान में सेवण घास के सूखे चारा को ‘सेवण कुत्तर’ कहते हैं।

सेवण घास की खेती

सेवण घास की खेती वैसे तो सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है, किन्तु अच्छी पैदावार के लिए दोमट मिट्टी बेहतरीन होती है। सेवण घास का तना सीधा और लचीला तथा शाखाओं वाला होता है। इसकी ऊँचाई करीब एक मीटर तक लम्बा, पत्तियाँ रेखाकार, 20 से 25 सेमी लम्बी तथा पुष्प गुच्छ 10 सेमी लम्बा होता है। हरे चारे के लिए इसकी पुष्पित अवस्था सबसे उपयुक्त होती है। यदि मिट्टी में नमी हो तो सेवण घास से लगातार कल्ले निकलते रहते हैं। परिपक्व अवस्था में सेवण घास का तना कठोर हो जाता है। तब इसे पशु कम पसन्द करते हैं।

सेवण घास की बुआई

सेवण घास का चारागाह विकसित करने के लिए बारिश का मौसम सबसे अच्छा होता है। बरसात के मौसम के अलावा फरवरी-मार्च में भी इसकी रोपाई की जा सकती है। बुआई के समय ज़मीन में नमी की उपलब्धता का ख़ास महत्व है। बरसात में बोई गयी सेवण घास बहुत जल्दी पनप जाती है। इसकी तेज़ बढ़वार से पशुओं को समय से चारा मिलने लगता है। सेवण घास की बुआई के लिए 5 से 7 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की मात्रा पर्याप्त होती है।

पश्चिमी राजस्थान में मॉनसून की पहली बारिश के बाद सेवण घास की बुआई का बेहतरीन वक़्त होता है। बुआई के लिए बीज की मात्रा से पाँच गुना ज़्यादा वजन वाली खेत की गीली मिट्टी अच्छी तरह से मिला लेना चाहिए। इसके बाद बीजों को खेत में छिड़ककर या पंक्तिबद्ध बुआई की जा सकती है। बुआई ऐसे करें, ताकि बीजों पर मिट्टी कम से कम आये। जहाँ मिट्टी कठोर हो, वहाँ बुआई से पहले खेत में आड़ी-तिरछी जुताई करना चाहिए तथा खेत से खरपतवार हटा देना चाहिए।

सेवण घास की उम्दा किस्में

स्वामी केशवानन्द राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय, जैसलमेर के विशेषज्ञों के अनुसार, गुणवत्तापूर्ण चारा लेने के लिए सेवण घास की उम्दा किस्मों का चयन करना चाहिए। काज़री (Central Arid Zone Research Institute), जोधपुर की ओर से विकसित काज़री-305, काज़री-317 और काज़री-319 को सेवण घास की उम्दा किस्में का दर्ज़ा हासिल है। सेवण घास का बीज आकार में बहुत छोटा और हल्का होता है। यदि इसका चारागाह एक बार विकसित हो जाए तो फिर ये वर्षों तक बना रहता है। सेवण घास से मिट्टी का कटाव रोकने में भी मदद मिलती है।

सेवण घास का उर्वरक प्रबन्धन

सेवण घास की अच्छी फसल के लिए 40 किग्रा नाइट्रोजन और 20 किग्रा फॉस्फोरस प्रति हेक्टेयर (चार बीघा) की दर से देना बहुत फ़ायदेमन्द होता है। नाइट्रोजन की आधी मात्रा खेत में बुआई के समय देनी चाहिए। देसी सड़ी गोबर की खाद आठ से दस टन प्रति हेक्टेयर की दर से देने पर सेवण घास की शानदार पैदावार मिलती है।

सेवण घास का चारा कटाई चक्र

यदि बरसात में सेवण घास की बुआई की गयी हो तो इसके 90 दिनों बाद पहली कटाई अगस्त के आख़िर तक करनी चाहिए। दूसरी कटाई के लिए नवम्बर का महीना सही होता है। यदि सेवण घास को शीतकालीन बारिश का पानी मिल जाए तो मार्च-अप्रैल में तीसरी कटाई करनी चाहिए और यदि सेवण घास के खेत में सिंचाई की सुविधा हो तो जून के अन्त में चौथी कटाई भी की जा सकती है। अनियमित और बेहद कम वर्षा से सेवण घास का पैदावार प्रभावित होती है।

सेवण घास की चराई में सावधानी

सेवण घास लगाने के बाद पहले वर्ष में खेत में पशुओं को नहीं चराना चाहिए। पहले साल तो खेत से घास काटकर खिलाना ही अच्छा रहता है। सेवण घास का सूखा चारा ज़्यादा पाने के लिए चारे की साल में तीन से चार कटिंग की जा सकती है। दूसरे वर्ष से नियंत्रित चराई, एकांतर चराई या बाधित चराई पद्धति से चराई होनी आवश्यक है। घास की चराई करवाते समय खेत के एक हिस्से की घास को बीज उत्पादन के लिए रखना चाहिए ताकि बार-बार बुआई पर होने वाले खर्च कम हो।

सेवण घास की पैदावार

सेवण घास का उत्पादन वर्षा, भूमि की प्रकृति और चराई-कटाई के चक्र पर निर्भर करता है। उपजाऊ रेतीली ज़मीन और सामान्य बारिश की दशा में सेवण घास से 100 क्विंटल/हेक्टेयर तक सूखा चारा की पैदावार हासिल की जा सकती है। आमतौर पर इससे प्रति हेक्टेयर 50 से 75 क्विंटल सूखा चारा प्राप्त होता है। वर्षा की विषमता होने पर इसकी औसत उपज 35 से 40 क्विंटल सूखा चारा और 20 से 25 किग्रा बीज प्रति हेक्टेयर तक हो सकती है। बीज उत्पादन के लिहाज़ से देखें तो अनुकूल माहौल में 250 किग्रा प्रति हेक्टेयर की पैदावार मिल सकती है।

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