इसलिए भी परेशान हैं आंदोलन कर रहे पंजाब-हरियाणा के किसान

पंजाब में गेहूं और धान की फसलों पर एमएसपी मिलती है और सरकारी खरीद की गांरटी भी। किसी तीसरी फसल की सही कीमत नहीं मिलने के कारण किसान उसकी खेती करना पसंद नहीं करते।

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भारत सरकार 60 और 70 के दशक में दूसरे देशों से अनाज आयात करता था। देश को अनाज के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिए पंजाब-हरियाणा के किसानों को गेहूं-धान की खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया गया। हरित क्रांति आने के बाद 70 के दशक में पंजाब में 3.9 लाख हेक्टेयर में धान की खेती होती थी, जो पांच दशक में 8 गुना बढ़ गई। इतने ही अंतराल में गेहूं की खेती में भी डेढ़ गुना बढ़ गई।

कुछ ऐसा ही हाल हरियाणा के किसानों का भी है, लेकिन इस मोनोकल्चर (किसी विशेष क्षेत्र में एक ही फसल की खेती) ने अब उन्हें संकट में डाल दिया है। दिल्ली के तमाम बॉर्डर पर आंदोलन कर रहे किसानों का कहना है कि आज जब पंजाब-हरियाणा के किसानों की वजह से अनाज के मामले में देश आत्मनिर्भर बन गया है तो अब उन्हें फसल में विविधता के लिए कहा जा रहा है।

पंजाब में गेहूं और धान की फसलों पर एमएसपी (MSP) मिलती है और सरकारी खरीद की गांरटी भी। इसके अलावा किसी तीसरी फसल की सही कीमत नहीं मिलने के कारण किसान उसकी खेती करना पसंद नहीं करते।

मोनोकल्चर से नुकसान

2017-18 के आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक मोनोकल्चर (monoculture) की वजह से पंजाब में अब फसलों की पैदावर कम हो रही है। गेहूं में खाद और कीटनाशकों का ज्यादा इस्तेमाल होने से मिट्टी की गुणवत्ता कम हो गई है। इसके अलावा धान की खेती की वजह से पंजाब में भूजल स्तर काफी नीचे चला गया है।

गेहूं-धान को बढ़ावा देना पड़ा भारी

सीआरआरआईडी चंडीगढ़ में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर आरएस घुमन के मुताबिक जिस तरह हरित क्रांंति के समय धान की नई वेराइटी के लिए शोध को प्रोत्साहित किया गया, उसी तरह अन्य फसलों के लिए भी सरकार को कदम उठाना होगा।

हरित क्रांति आने के बाद अच्छी फसल के लिए उच्च गुणवत्ता वाले बीज पर शोध होने लगे। न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के जरिए फसल के दाम सुनिश्चित किए गए। एफसीआई से सरकारी खरीद सुनिश्चित की गई। इसके अलावा सिंचाई के लिए सरकारी सुविधा और मुफ्त बिजली मुहैया कराई गई, जिससे किसान सिर्फ गेहूं-धान की खेती को ही तवज्जो देने लगे।

कृषि में विविधता लाने के उपाय

एसएस जोहल के मुताबिक वोट बैंक की राजनीति से दूर रहकर फ्री बिजली योजना बंद कर यही पैसा किसानों को सब्सिडी के तौर पर दिया जाए। इससे किसानों को पानी और बिजली पर होने वाले खर्च का सही अंदाजा लगेगा।

इस तरह किसान अन्य फसलों को उगाने में भी रुचि दिखाएगा और उसे पता चलेगा कि किस फसल में कितनी कमाई होती है। घुमन के मुताबिक सरकार को दूसरी फसलों के लिए एमएसपी और फसलों की खरीद को भी सुनिश्चित करना चाहिए।

समितियों की रिपोर्ट की गई नजरअंदाज

1986 और 2002 में पंजाब सरकार ने फसलों में विविधता लाने के लिए प्रोफेसर एसएस जोहल की अध्यक्षता में दो समितियां बनाई गईं। इन समितियों ने 20 प्रतिशत खेती में विविधता लाने की सिफारिश की थी और उसके लिए सरकार को करीब 1600 करोड़ रुपए किसानों को नुकसान की भरपाई करने का प्रस्ताव रखा गया था, लेकिन उस रिपोर्ट को राज्य सरकार ने आगे नहीं बढ़ाया।

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