Drip and Sprinkler Technology: ड्रिप और स्प्रिंकलर तकनीक के प्रयोग से हरियाणा के किसान रमेश कर रहे हैं बंपर उत्पादन

हिसार के किसान रमेश ने ड्रिप और स्प्रिंकलर तकनीक (Drip and sprinkler technology) से सिंचाई कर पानी की बचत और 14 एकड़ खेत में बंपर फ़सल उत्पादन हासिल किया।

Drip and Sprinkler Technology: ड्रिप और स्प्रिंकलर तकनीक के प्रयोग से हरियाणा के किसान रमेश कर रहे हैं बंपर उत्पादन

अच्छी खेती के लिए सिंचाई की उचित व्यवस्था बहुत ज़रूरी है, क्योंकि बिना पानी के फ़सलों का अच्छा उत्पादन हो ही नहीं सकता। ऐसे में जिन इलाकों में पानी की कमी है, वहां के किसान चाहकर भी अच्छी खेती नहीं कर पाते हैं, मगर उनकी ये समस्या सिंचाई की आधुनिक तकनीकी से दूर हो सकती है। ड्रिप और स्प्रिंकलर जैसी सिंचाई तकनीक न सिर्फ़ पानी की बचत करती है, बल्कि इससे फ़सलों का उत्पादन भी अच्छा होता है।

हरियाणा के हिसार जिले के बुड़ाक गांव के प्रगतिशील किसान रमेश अपने 14 एकड़ खेत में ड्रिप और स्प्रिंकलर तकनीक (Drip and sprinkler technology) से सिंचाई का इस्तेमाल कर रहे हैं, जिससे पानी की बचत होने के साथ ही उन्हें बंपर उत्पादन भी मिल रहा है। किसानों के लिए क्यों फ़ायदेमंद है सिंचाई की ये आधुनिक तकनीक इस बारे में उन्हें चर्चा की किसान ऑफ इंडिया के संवाददाता सर्वेश बुंदेली से।

दलहनी और तिलहनी फ़सलों में भी ड्रिप का इस्तेमाल (Drip is also used in pulse and oilseed Crops)

आमतौर पर फल और बागवानी फ़सलों में ड्रिप इरिगेशन का इस्तेमाल अधिक होता है, मगर हरियाणा के हिसार जिले के प्रगतिशील किसान रमेश सरपंच अनाज, दलहनी और तिलहनी फ़सलों में भी ड्रिप और स्प्रिंकलर तकनीक (Drip and sprinkler technology) का इस्तेमाल कर रहे हैं और इससे उन्हें दोगुना उत्पादन मिल रहा है।

वो बताते हैं कि वो कुल 30 एकड़ में खेती करते हैं, जिसमें 14 एकड़ में ड्रिप और स्प्रिंकलर तकनीक (Drip and sprinkler technology) से सिचांई कर रहे हैं। वो धान, गेहूं, नरमा, चना, सरसों और मूंग जैसी फ़सलों में इस तकनीक का इस्तेमाल करते हैं। उनका कहना है कि ड्रिप और स्प्रिंकलर तकनीक (Drip and sprinkler technology) के उपयोग से पानी की बचत होने के साथ ही उनका उत्पादन भी लगभग दोगुना हुआ है।

सिर्फ़ 7 घंटे में 14 एकड़ की सिंचाई (Irrigation of 14 Acres in just 7 hours)

ड्रिप और स्प्रिंकलर तकनीक (Drip and sprinkler technology) से पानी की बचत तो होती ही है, साथ ही सिंचाई बहुत जल्दी हो जाती है, जिससे समय की भी बचत होती है। रमेश बताते हैं कि 14 एकड़ खेत की सिंचाई सिर्फ़ 7 घंटे में ही पूरी हो जाती है। वो इस तकनीक का इस्तेमाल मूंग, नरमा, ग्वार, गेहूं, सरसों और चना जैसी फ़सलों में कर रहे हैं।

चने में ड्रिप तकनीक से सिंचाई (Irrigation in Chickpea using drip Technology)

रमेश बताते हैं कि वो पिछले दो साल से चने के खेत में ड्रिप सिंचाई का इस्तेमाल कर रहे हैं। वो कहते हैं कि चने से पहले उन्होंने नरमा की फ़सल लगाई हुई थी, तो जब नरमा की फ़सल खड़ी थी तभी उन्होंने ड्रिप लगा दिया। फिर नरमा को काटकर, चने की बुवाई करके दोबारा ड्रिप लगा दिया। चने के खेत में उन्होंने दो फुट की दूरी पर क्यारियां बनाई है और चार फुट की दूरी पर ड्रिप लगाया है। 2 एकड़ के चने के खेत में 94 ड्रिप लगाया है। चने की फ़सल में 3 बार पानी देने की ज़रूरत होती है। रमेश का कहना है कि ड्रिप सिंचाई से उनके चने का उत्पादन बढ़ा है।

क्यों चुना ड्रिप/स्प्रिंकलर सिंचाई को (Why choose drip/sprinkler Irrigation) 

ड्रिप और मिनी यानी स्प्रिंकलर सिंचाई के चुनाव के बारे में रमेश सरपंच बताते हैं कि उन्हें इनका ख्याल इसलिए आया क्योंकि उनके इलाके में पानी की कमी है। पहले वो ट्यूबवेल का इस्तेमाल करते थे, मगर ड्रिप और मिनी लगाने के बाद नहर के पानी से ही काम चल जाता है। सामान्य सिंचाई के मुकाबले इसमें पानी की खपत सिर्फ़ एक चौथाई तक ही होती है। जहां तक इसकी लागत का सवाल है तो रमेश कहते हैं कि उन्होंने किसा कॉन्ट्रैक्टर के ज़रिए इसे लगवाया है तो एक एकड़ में ड्रिप लगवाने की लागत 14,000 रुपए आई है।

मूंग का दोगुना उत्पादन (Double the Production of moong) 

रमेश सरपंच किसानों को ड्रिप और मिनी का इस्तेमाल करने की सलाह देते हैं, क्योंकि ये उनके लिए हर लिहाज से फ़ायदेमंद है। उनका कहना है कि ड्रिप के इस्तेमाल से उनके मूंग का उत्पादन दोगुना हो गया है। यही नहीं मूंग के बाद वो जो भी अगली फ़सल लगाएंगे उसका उत्पादन भी अच्छा होगा। उनका कहना है कि फ्लड इरिगेशन और ड्रिप में रात दिन का अंतर है।

एक एकड़ में रिकॉर्ड 65 मन गेहूं का उत्पादन (Record production of 65 man of wheat in one acre) 

रमेश सरपंच ने गेहूं के खेत में स्प्रिंकलर लगाए हैं। उनका कहना हैकि इस तकनीक से गेहूं का उत्पादन अच्छा होता है और पानी की भी बहुत बचत होती है। पिछले साल एक एकड़ में 65 मन (1 मन=40 किलो) गेहूं का उत्पादन हुआ था। 1 एकड़ में सिंचाई के लिए उन्होंने 56 मिनी यानी स्प्रिंकलर लगाए हुए हैं। गेहूं कि फ़सल में आमतौर पर जहां किसान फ्लड इरिगेशन का इस्तेमाल करते हैं, वहीं रमेश ने स्प्रिंकलर लगवाया है।

वो बताते हैं कि इससे फ़सल में 7-8 पानी देने होता है और फ्लड इरिगेशन से एक चौथाई कम पानी का इस्तेमाल होता है इसमें। उन्होंने सरसों के खेत में भी ड्रिप और स्प्रिंकलर तकनीक (Drip and sprinkler technology) दोनों लगाया हुआ है। इसके लिए पहले तो वो नहर के पानी को टैंक में एकत्र करते हैं और फिर ड्रिप और मिनी के ज़रिए खेत में सिंचाई करते हैं।

अच्छी होती है कमाई (Earnings are good) 

रमेश का कहना है कि सिंचाई की इस तकनीक से फ़सल का उत्पादन अच्छा होता है और उन्हें अच्छी कमाई हो जाती है। जहां तक मार्केटिंग का सवाल है तो सरसों को MSP पर बेचते हैं और गेहूं का उत्पादन अपने उपयोग के लिए करते हैं। इसके अलावा मूंग, चना और सरसों उनकी मुख्य फ़सल है जिन्हें वो बेचते हैं। रमेश की सफलता को देखकर इलाके के कई दूसरे किसानों ने भी अपने खेत में ड्रिप और स्प्रिंकलर तकनीक (Drip and sprinkler technology) सिंचाई को अपनाया है।

क्या है ड्रिप सिंचाई? (what is drip Irrigation?)

ड्रिप सिंचाई की आधुनिक तकनीक है जिसमें पानी की बचत होती है। ड्रिप सिंचाई एक ऐसी विधि है जिसमें पानी को बूंद-बूंद करके पौधों की जड़ों तक पहुंचाया जाता है। इससे पानी की बचत होती है और पौधों को सही मात्रा में पानी मिलता है। ड्रिप सिंचाई को टपक सिंचाई या बूंद-बूंद सिंचाई भी कहा जाता है, ये एक सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली हैं।

क्या है स्प्रिंकलर सिंचाई विधि? ( What is a Sprinkler irrigation Method?) 

यह सिंचाई की एक ऐसी विधि है जिसमें पानी को पाइप के नेटवर्क के ज़रिए वितरित किया जाता है और फिर स्प्रिंकलर हेड के जरिए हवा में छिड़काव किया जाता है, जिससे पानी की छोटी-छोटी बूंदों में टूट जाता है और फ़सलों में समान रूप से फैलता है, जिससे सिंचाई अच्छी तरह होती है। इसमें पानी का वितरण समान रूप से होता है जिससे सभी पौधों को एक बराबर पानी मिलता है और पौधों का विकास अच्छा होता है।

ये भी पढ़ें : किसानों के लिए ड्रिप सिंचाई प्रणाली के फ़ायदे और जानकारी

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