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उत्तराखंड के नैनीताल ज़िले के भीमताल के छोटे से गांव लचौना में रहने वाले आनंद मणि भट्ट ने प्राकृतिक खेती और जैविक खेती को एक नई दिशा दी है। 1981 में जन्मे आनंद मणि ने 2013 से खेती की शुरुआत की और आज वे अपने क्षेत्र के किसानों के लिए प्रेरणा स्रोत बन चुके हैं। उनके द्वारा अपनाई गई जैविक खेती की विधियां न केवल पर्यावरण को संरक्षित कर रही हैं, बल्कि मानव स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद हैं।
खेती का सफर: शुरुआत से सफलता तक
आनंद मणि भट्ट ने 2013 में जैविक खेती की शुरुआत की। उनका मानना है कि रासायनिक खेती के अत्यधिक उपयोग ने हमारी थाली को जहरीला बना दिया है। उन्होंने अपने खेतों में गोबर खाद, जीवामृत, और वर्मी कंपोस्ट जैसी तकनीकों को अपनाया। वे कहते हैं:
“अगर हम अपनी खेती को रासायनिक उर्वरकों से मुक्त कर दें, तो न केवल हमारी भूमि उपजाऊ बनेगी, बल्कि हमारे भोजन में शुद्धता भी बनी रहेगी।”
उनकी खेती में गेहूं, दाल, सब्जियों और फलों का उत्पादन किया जाता है। उनके खेत का हर उत्पाद जैविक होता है, जिसे लोग बाजार में हाथों-हाथ खरीदते हैं।
रासायनिक खेती के दुष्प्रभावों पर चिंता
आनंद मणि ने अपने अनुभव से यह समझा कि रासायनिक खेती से न केवल भूमि की उर्वरता घटती है, बल्कि यह मानव स्वास्थ्य के लिए भी खतरा बनती है। वे कहते हैं,
“रासायनिक खाद और कीटनाशकों के उपयोग से शुगर, कैंसर और हार्ट अटैक जैसी बीमारियां बढ़ रही हैं। इनसे बचने का एकमात्र तरीका है जैविक और प्राकृतिक खेती।”
आनंद मणि ने जैविक खेती के जरिए लोगों को यह समझाने की कोशिश की कि स्वस्थ जीवन के लिए रासायनिक मुक्त भोजन कितना जरूरी है।
सरकारी योजनाओं का लाभ
आनंद मणि भट्ट ने सरकारी योजनाओं का लाभ उठाते हुए अपने खेतों में उन्नत तकनीकों को अपनाया। उन्होंने प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के तहत टपक और फव्वारा सिंचाई विधि का उपयोग किया।
वे कहते हैं:
“सरकार की योजनाओं का सही उपयोग करके हम अपनी लागत को कम कर सकते हैं और अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं। इन योजनाओं से मेरे खेतों को लाभ हुआ है।”
प्राकृतिक खेती की तकनीकें
आनंद मणि के खेतों में प्राकृतिक खेती की आधुनिक और पारंपरिक तकनीकों का मिश्रण है। उन्होंने वर्मी कंपोस्ट, गोबर खाद, और हरी खाद जैसी विधियों का इस्तेमाल किया।
उनका मानना है कि खेतों को उपजाऊ बनाए रखने के लिए जैविक विधियों को अपनाना जरूरी है।
उन्होंने बताया,
“जैविक खेती से मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है और फसल की गुणवत्ता भी बढ़ती है। हमारे खेत अब पहले से अधिक उपजाऊ हो गए हैं।”
सामुदायिक भागीदारी और जागरूकता
आनंद मणि ने अपने क्षेत्र में जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए कई कार्यशालाओं का आयोजन किया। उन्होंने छोटे किसानों को जैविक खेती की तकनीकों के बारे में बताया और उन्हें प्रेरित किया।
उन्होंने कहा:
“मेरा सपना है कि हर किसान जैविक खेती को अपनाए। इससे न केवल उनकी आय बढ़ेगी, बल्कि हमारा पर्यावरण भी संरक्षित रहेगा।”
पुरस्कार और सम्मान
आनंद मणि भट्ट के कार्यों को कई मंचों पर सराहा गया है। उन्होंने न केवल उत्तराखंड में बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी कई पुरस्कार जीते हैं।
• 2017: उत्तराखंड सरकार द्वारा किसान भूषण सम्मान।
• 2018: उत्तराखंड सरकार द्वारा दून मेले में उत्कृष्ट कृषक सम्मान।
• 2019: पंत नगर कृषि विश्वविद्यालय द्वारा प्रगतिशील कृषक सम्मान।
• 2022: भारत सरकार की डीबेर संस्था द्वारा सम्मान।
• 2023: किसान श्री सम्मान।
• 2023: भारत सरकार द्वारा स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस के अवसर पर विशिष्ट अतिथि के रूप में आमंत्रित।
इन पुरस्कारों ने न केवल उनके कार्यों को प्रोत्साहन दिया है, बल्कि अन्य किसानों को भी प्रेरित किया है।
भविष्य की योजनाएं
आनंद मणि का लक्ष्य है कि वे जैविक खेती के उत्पादों को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाजार में ले जाएं। वे चाहते हैं कि उनके खेतों के उत्पाद हर घर तक पहुंचें।
वे कहते हैं,
“मेरी कोशिश है कि हर कोई शुद्ध और स्वस्थ भोजन प्राप्त करे। इसके लिए मैं अपनी खेती को और अधिक उन्नत बनाना चाहता हूं।”
प्रेरणा का स्रोत
आनंद मणि भट्ट की कहानी ये दिखाती है कि कैसे एक साधारण किसान अपनी मेहनत और संकल्प से समाज में बड़ा बदलाव ला सकता है। उनका जीवन अन्य किसानों के लिए प्रेरणा है, और उनका काम यह साबित करता है कि जैविक खेती न केवल आर्थिक रूप से फायदेमंद है, बल्कि यह पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य के लिए भी जरूरी है।
उनकी यह यात्रा हमें सिखाती है कि यदि सही दिशा में प्रयास किए जाएं, तो खेती न केवल आजीविका का साधन बन सकती है, बल्कि समाज में बदलाव का माध्यम भी बन सकती है।