Table of Contents
राजस्थान के जैसलमेर ज़िले के रामगढ़ गांव में जन्मे और पले-बढ़े चतर सिंह जाम ने ये साबित कर दिया कि प्राकृतिक संसाधनों के अभाव में भी अद्वितीय प्रयासों और पारंपरिक ज्ञान के बल पर खेती को सफल बनाया जा सकता है। देश के सबसे कम वर्षा वाले क्षेत्रों में से एक में प्राकृतिक खेती (खड़ीन खेती) के जरिए उन्होंने कृषि को एक नई पहचान दी है।
खड़ीन खेती का महत्व और सफलता
रामगढ़ क्षेत्र में खड़ीन खेती एक पारंपरिक तकनीक है, जिसमें बरसाती पानी को संग्रहित कर फसल उगाई जाती है। यह तकनीक सैकड़ों वर्षों से क्षेत्र में प्रचलित है। चतर सिंह बताते हैं,
“हमारे पूर्वजों ने यह ज्ञान दिया कि कैसे बरसात के पानी का संग्रह कर बिना किसी सिंचाई, रासायनिक उर्वरक या कीटनाशक के गेहूं, चने और सरसों की खेती की जा सकती है।”
आज उनकी प्रेरणा से लगभग 500 हेक्टेयर भूमि पर खड़ीन खेती की जा रही है। आदिवासी भील समुदाय के 100 परिवार भी उनकी इस मुहिम से जुड़ चुके हैं और हर वर्ष अच्छी उपज ले रहे हैं। उनकी अपनी खड़ीन में प्रति हेक्टेयर 6 से 16 क्विंटल तक उत्पादन होता है, जो इस शुष्क क्षेत्र में अद्वितीय है।
जल संरक्षण और पुनर्भरण के प्रयास
चतर सिंह न केवल खेती करते हैं, बल्कि जल संरक्षण के क्षेत्र में भी अग्रणी भूमिका निभाते हैं। उन्होंने अपने क्षेत्र में लगभग 200 रेजवानी कुएं, तालाब और पाताल कुएं बनवाए हैं। ये संरचनाएं न केवल वर्षा के पानी को संग्रहित करने में सहायक हैं, बल्कि आसपास के इलाकों में खेती और पीने के पानी की समस्या को भी काफी हद तक हल कर रही हैं। उनके प्रयासों से न केवल जलस्तर बढ़ा है, बल्कि सूखाग्रस्त इलाकों में हरियाली भी लौटी है।
“हमारे गांव में पानी सबसे बड़ी चुनौती है। मैंने देखा कि अगर पानी को संरक्षित किया जाए तो फसलें भी बेहतर होंगी और जीवन भी,” वे कहते हैं।
इन प्रयासों के चलते रामगढ़ और आसपास के इलाकों में न केवल खेती के लिए पानी की समस्या कम हुई है, बल्कि लोगों को पीने का पानी भी उपलब्ध हुआ है।
समुदाय के लिए प्रेरणा
चतर सिंह ने अपनी सफलता को सीमित न रखते हुए अपने ज्ञान को गांव और आदिवासी समुदाय तक पहुंचाया।
“मैंने आदिवासी भील परिवारों को खड़ीन खेती की तकनीक सिखाई। आज वे भी आत्मनिर्भर बन गए हैं। इससे उनकी आजीविका में सुधार हुआ है,” वे गर्व से कहते हैं।
उन्होंने यह भी सुनिश्चित किया कि स्थानीय किसान पारंपरिक खेती के साथ-साथ जैविक तरीकों को अपनाएं। वे किसानों को जैविक खाद, वर्मी कम्पोस्ट और जीवामृत के उपयोग के लिए प्रेरित करते हैं।
जैविक खेती में सफलता
खड़ीन खेती के साथ-साथ चतर सिंह ने अपने खेतों को पूरी तरह जैविक बनाया है। बिना रासायनिक उर्वरकों के उपयोग से न केवल उनकी भूमि की उर्वरता बढ़ी है, बल्कि उत्पादन भी टिकाऊ हुआ है। उनकी जैविक खेती से उत्पादों की गुणवत्ता में सुधार हुआ है, जिससे उन्हें बेहतर बाजार मूल्य मिलता है। इसके साथ ही, उनकी खेती पर्यावरण के लिए भी लाभदायक साबित हो रही है। वे इसे भविष्य के लिए एक स्थायी समाधान मानते हैं।
वे कहते हैं,
“रासायनिक उर्वरक और कीटनाशक हमारे खेत और स्वास्थ्य दोनों को नुकसान पहुंचाते हैं। जैविक खेती ही हमारे भविष्य का रास्ता है।”
सम्मान और उपलब्धियां
चतर सिंह के प्रयासों को समाज और सरकार दोनों ने सराहा है। उन्हें कई पुरस्कारों से नवाजा गया, जिनमें प्रमुख हैं:
• मारवाड़ रत्न पुरस्कार (2021)
• महारावल जैतसिंह जल संरक्षण पुरस्कार
• जल प्रहरी का खिताब
ये सम्मान उनके जल संरक्षण और जैविक खेती में दिए गए योगदान का प्रमाण हैं।
चुनौतियां और उनका समाधान
चतर सिंह के सफर में चुनौतियां भी कम नहीं थीं। रेगिस्तान में खेती करना अपने आप में एक मुश्किल कार्य है। वे बताते हैं,
“शुरुआत में जल संग्रहण के लिए साधन जुटाना और किसानों को खड़ीन खेती की तकनीक सिखाना आसान नहीं था। लेकिन धीरे-धीरे सबने इसे समझा और अब हम सभी मिलकर इसे आगे बढ़ा रहे हैं।”
भविष्य की योजनाएं
चतर सिंह का सपना है कि राजस्थान का हर किसान खड़ीन खेती और जैविक पद्धतियों को अपनाए। वे कहते हैं,
“अगर हम अपने पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक तकनीक को मिलाएं, तो रेगिस्तान में भी खेती के नए आयाम स्थापित किए जा सकते हैं।”
उनका अगला लक्ष्य जल संरक्षण के लिए और अधिक संरचनाएं बनाना और जैविक उत्पादों को बड़े बाजारों तक पहुंचाना है।
सरकारी योजनाओं और मदद का अभाव
हालांकि चतर सिंह ने अभी तक किसी सरकारी योजना का लाभ नहीं लिया है, लेकिन उनका मानना है कि अगर सरकारी मदद मिले तो उनके प्रयासों को और अधिक गति दी जा सकती है।
“हमारे जैसे किसानों को तकनीकी और आर्थिक मदद की जरूरत है। इससे हम अपने क्षेत्र में और अधिक बदलाव ला सकते हैं।”
चतर सिंह जाम का जीवन और उनका कार्य न केवल राजस्थान के किसानों के लिए बल्कि पूरे देश के लिए प्रेरणा है। उनकी मेहनत और समर्पण ने यह दिखा दिया कि अगर संकल्प मजबूत हो तो कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी सफलता पाई जा सकती है। उनकी खड़ीन खेती की तकनीक, जल संरक्षण के उपाय और जैविक खेती का मॉडल आने वाले समय में सतत कृषि विकास का आधार बन सकते हैं।
उनके शब्दों में-
“खेती सिर्फ आजीविका का साधन नहीं, यह हमारी संस्कृति, पर्यावरण और समाज की आधारशिला है। इसे संरक्षित करना और आगे बढ़ाना हमारा कर्तव्य है।”