दयानंद जांगिड़ का परंपरागत तकनीक से कृषि उत्पादों की प्रोसेसिंग में शानदार इनोवेशन

दयानंद ने किसानों के लिए परंपरागत और कोल्ड प्रोसेसिंग तकनीक पर आधारित मशीनें विकसित की हैं। इन मशीनों की मदद से किसान अपने गांव में ही अपनी फसल को प्रोसेस कर सकते हैं।

दयानंद जांगिड़ का परंपरागत तकनीक से कृषि उत्पादों की प्रोसेसिंग में शानदार इनोवेशन

राजस्थान के जयपुर जिले के किसान दयानंद जांगिड़ ने कृषि के क्षेत्र में तकनीकी नवाचार कर एक नई दिशा दिखाई है। वे मानते हैं कि किसानों की आय बढ़ाने का सबसे प्रभावी तरीका उनके उत्पादों को सीधे बाजार में बेचने के बजाय उन्हें प्रोसेस करके बेचना है।

कृषि उत्पादों की प्रोसेसिंग: क्यों है यह महत्वपूर्ण?

दयानंद बताते हैं, “जब किसान अपनी फसलों को सीधे बाजार में बेचते हैं, तो उन्हें उनके वास्तविक मूल्य का केवल एक छोटा हिस्सा मिलता है। वहीं, यदि उन उत्पादों को प्रोसेस कर बाजार में उतारा जाए, तो उनकी कीमत कई गुना बढ़ सकती है।”

उनके अनुसार, उदाहरण के तौर पर सरसों की फसल को बिना प्रोसेसिंग के बेचने पर किसान को मात्र ₹40-₹50 प्रति किलो मिलते हैं। जबकि, अगर वही सरसों को कोल्ड प्रेस विधि से तेल में परिवर्तित कर बेचा जाए, तो उसकी कीमत ₹150-₹200 प्रति किलो तक हो सकती है।

दयानंद की तकनीकी पहल

दयानंद ने किसानों के लिए परंपरागत और कोल्ड प्रोसेसिंग तकनीक पर आधारित मशीनें विकसित की हैं। इन मशीनों की मदद से किसान अपने गांव में ही अपनी फसल को प्रोसेस कर सकते हैं।

दयानंद कहते हैं, “हम ऐसी मशीनें बनाते हैं जो कम ऊर्जा का उपयोग करती हैं और आसानी से संचालित की जा सकती हैं। इन मशीनों की मदद से किसान तेल, आटा, मसाले, और दूसरे उत्पाद घर पर ही बना सकते हैं। इससे उन्हें बाजार मूल्य का बेहतर हिस्सा मिलता है और उनकी आय स्थिर रहती है।”

किसानों के साथ संवाद

दयानंद ने अपने अनुभव और ज्ञान को साझा करने के लिए क्षेत्र के किसानों से संवाद का सिलसिला शुरू किया। वे किसानों को कोल्ड प्रोसेसिंग तकनीक की उपयोगिता और इसे अपनाने के फायदे समझाते हैं। एक किसान रमेश यादव ने बताया, “दयानंद जी ने मुझे कोल्ड प्रोसेसिंग मशीन के बारे में बताया। मैंने इसे अपनाया और अब मेरी आय लगभग दोगुनी हो गई है।”

सरकारी योजनाओं का अभाव

दयानंद को अब तक किसी सरकारी योजना का लाभ नहीं मिला है। हालांकि, वे उम्मीद करते हैं कि सरकार छोटे किसानों के लिए प्रोसेसिंग यूनिट लगाने पर अनुदान और प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू करेगी।

सरकार की पहलें

भारत सरकार ने किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्य के तहत “प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना” और “मिशन फार्मर प्रोड्यूसर ऑर्गनाइजेशन” जैसी योजनाएं शुरू की हैं। ये योजनाएं किसानों को संगठित तरीके से काम करने और बेहतर मूल्य प्राप्त करने में मदद करती हैं।

दयानंद कहते हैं, “यदि कोल्ड प्रोसेसिंग जैसी तकनीकों को इन योजनाओं में जोड़ा जाए, तो किसानों को काफी फायदा हो सकता है।”

आर्थिक लाभ और रोजगार सृजन 

दयानंद जांगिड़ द्वारा विकसित कोल्ड प्रोसेसिंग तकनीक न केवल किसानों की आय को बढ़ाने में मददगार है, बल्कि यह ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार सृजन का भी एक प्रमुख साधन बन रही है। उनकी मशीनों का उपयोग करने वाले किसान अब अपनी फसलों को अपने गांव में ही प्रोसेस कर स्थानीय और क्षेत्रीय बाजारों में बेचने में सक्षम हैं। यह प्रक्रिया न केवल किसानों की आय बढ़ा रही है, बल्कि इससे जुड़ी दूसरी गतिविधियों जैसे पैकेजिंग, वितरण और विपणन में भी रोजगार के नए अवसर उत्पन्न हो रहे हैं।

स्थानीय रोजगार की संभावनाएं 

दयानंद बताते हैं, “हमारी मशीनें उपयोग में आसान हैं और इन्हें संचालित करने के लिए अत्यधिक तकनीकी ज्ञान की आवश्यकता नहीं होती। इससे गांव के युवाओं को प्रशिक्षण देकर इन्हें चलाने का मौका मिलता है।”

इसके अलावा, पैकेजिंग और लेबलिंग जैसे कार्यों के लिए स्थानीय महिलाओं को रोजगार दिया जा रहा है। इन यूनिट्स के जरिए न केवल ग्रामीण युवाओं को अपने गांव में ही रोजगार मिल रहा है, बल्कि वे शहरों में पलायन करने की आवश्यकता से भी बच रहे हैं।

आर्थिक स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता 

दयानंद के मुताबिक, “किसानों को अपनी उपज के लिए बाजार तक जाने की जरूरत नहीं पड़ती। वे अपने गांव में ही उत्पादन और प्रोसेसिंग के जरिए उपभोक्ताओं को सीधे सामान बेच सकते हैं। इससे परिवहन लागत कम होती है और उनका लाभांश बढ़ता है।”

ग्रामीण क्षेत्रों में छोटे उद्योगों का विकास 

उनकी पहल ग्रामीण क्षेत्रों में छोटे उद्योगों को बढ़ावा दे रही है। उदाहरण के तौर पर, उनके मॉडल पर काम कर रहे किसान अपने गांव में तेल निकालने, आटा बनाने, और मसाले प्रोसेस करने का काम कर रहे हैं।

आंकड़ों के जरिए प्रभाव 

• एक किसान, जिसने सरसों के तेल की प्रोसेसिंग यूनिट लगाई है, महीने में औसतन 15-20 टन सरसों प्रोसेस करता है। इससे उसे पारंपरिक बिक्री के मुकाबले 2.5 गुना अधिक लाभ हो रहा है।

• उनके उपकरणों से जुड़े गांवों में 30% किसानों ने अपनी प्रोसेसिंग यूनिट्स लगाई हैं, जिससे हर गांव में औसतन 50-100 लोगों को रोजगार मिल रहा है।

स्थानीय ब्रांड के रूप में पहचान 

दयानंद का कहना है कि उनकी मशीनों की मदद से किसान अपने ब्रांड के तहत तेल, आटा, या मसाले जैसे उत्पाद बेच सकते हैं। “जब स्थानीय उत्पाद किसी ब्रांड के तहत बिकते हैं, तो उनकी कीमत और मांग दोनों बढ़ जाती है।”

ग्रामीण महिलाओं की भागीदारी 

उनकी तकनीक ने महिलाओं को भी आर्थिक स्वतंत्रता प्रदान की है। कई महिलाओं ने छोटे पैमाने पर इन मशीनों का उपयोग कर तेल निकालने और मसाले बनाने का काम शुरू किया है। इससे उनके परिवार की आय में इजाफा हुआ है और वे आत्मनिर्भर बनी हैं।

दयानंद कहते हैं, “हमारी कोशिश है कि हर घर में कोई न कोई सदस्य इन मशीनों का उपयोग कर अतिरिक्त आय अर्जित करे।”

सतत और पर्यावरण-अनुकूल दृष्टिकोण 

दयानंद की मशीनें ऊर्जा की खपत कम करती हैं और पर्यावरण के प्रति भी संवेदनशील हैं। उनकी प्रक्रिया में पारंपरिक तरीके अपनाए जाते हैं, जिससे किसी भी प्रकार की हानिकारक गैसों का उत्सर्जन नहीं होता।

वे कहते हैं, “ग्रामीण उद्योगों को बढ़ावा देते हुए हमें यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि हम पर्यावरण को कोई नुकसान न पहुंचाएं। हमारी तकनीक इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।”

भविष्य की योजनाएं

दयानंद की योजना है कि वे आने वाले वर्षों में हर जिले में एक सामुदायिक प्रोसेसिंग यूनिट स्थापित करें। इन यूनिट्स का उद्देश्य किसानों को प्रशिक्षित करना और उनके उत्पादों को बड़े बाजार तक पहुंचाने में मदद करना है।

उनका मानना है कि इस पहल से न केवल किसानों की आर्थिक स्थिति मजबूत होगी, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में छोटे उद्योगों का विस्तार होगा और देश की कृषि अर्थव्यवस्था को नई दिशा मिलेगी। 

दयानंद जांगिड़ ने अपनी मेहनत और नवाचार से यह सिद्ध कर दिया है कि कृषि उत्पादों की प्रोसेसिंग में संभावनाओं की असीमित दुनिया छिपी है। उनकी तकनीक न केवल किसानों की आय बढ़ाने में मददगार है, बल्कि यह ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी सशक्त बना रही है। उनके इस प्रयास से देशभर के किसानों को प्रेरणा मिल रही है और यह मॉडल एक क्रांतिकारी बदलाव का प्रतीक बन रहा है। 

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