जैविक खेती और मत्स्य पालन के माध्यम से आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ने वाले मुकेश धाकड़ की कहानी

मध्य प्रदेश के मुकेश धाकड़ जैविक खेती और मत्स्य पालन के जरिए अपनी आय बढ़ा रहे हैं और पर्यावरण संरक्षण में योगदान दे रहे हैं।

जैविक खेती Organic Farming

मध्य प्रदेश के विदिशा जिले के अलीनगर गांव में रहने वाले मुकेश धाकड़ एक प्रेरणादायक किसान हैं, जो जैविक खेती और मत्स्य पालन के जरिए अपनी आय और पर्यावरण में सुधार लाने की दिशा में प्रयासरत हैं। 16-20 एकड़ जमीन के मालिक मुकेश आधुनिक तरीकों और जैविक खेती की विधियों को अपनाकर खेती की परंपरागत धारणाओं को बदलने की कोशिश कर रहे हैं। उनके पास एक तालाब भी है, जिसे वह मत्स्य पालन के लिए उपयोग में लाना चाहते हैं।

जैविक खेती की शुरुआत (starting of organic farming)

मुकेश बताते हैं,

“खेती में रसायनों का उपयोग बहुत बढ़ गया था, जिससे जमीन की उर्वरता और स्वास्थ्य पर असर पड़ रहा था। मैंने जैविक खेती को इसलिए चुना क्योंकि यह न केवल पर्यावरण के लिए फायदेमंद है, बल्कि इससे फसल की गुणवत्ता और बाजार मूल्य भी बेहतर होता है।”

मुकेश अपने खेतों में जैविक खाद, वर्मी-कम्पोस्ट और जैविक कीटनाशकों का उपयोग करते हैं। उनके खेत में मुख्यतः गेहूं, चना, सोयाबीन और मक्का की जैविक विधियों से खेती की जाती है।

मत्स्य पालन में रुचि (Interest in fishing)

मुकेश का तालाब, जो एक बीघा जमीन में फैला हुआ है, उन्हें मत्स्य पालन की संभावनाओं को तलाशने के लिए प्रेरित करता है। वह कहते हैं,

मत्स्य पालन से न केवल आय में वृद्धि होगी, बल्कि यह कृषि से जुड़े कई अन्य लोगों को भी रोजगार देने का साधन बन सकता है।”

मत्स्य पालन के लिए मुकेश उन्नत तकनीकों और सही प्रजातियों के चयन की योजना बना रहे हैं। वह मत्स्य पालन की प्रक्रिया को जैविक पद्धतियों के साथ जोड़ना चाहते हैं, जिससे जल और मछलियों की गुणवत्ता में सुधार हो।

जैविक खेती के फ़ायदे (Advantages of organic farming)

मुकेश ने जैविक खेती अपनाने के बाद न केवल पर्यावरणीय नुकसान को कम किया, बल्कि उनकी फसल की मांग भी बढ़ी। बाजार में जैविक उत्पादों की उच्च मांग और बेहतर कीमतों ने उनकी आय में वृद्धि की।

मुख्य लाभ:

1.मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार: जैविक खाद और प्राकृतिक विधियों के उपयोग से मिट्टी की उर्वरता बढ़ी।

2.पानी की बचत: फसलों के लिए माइक्रो-इरिगेशन और जैविक तरीकों का इस्तेमाल।

3.स्वास्थ्य कर उत्पाद: रसायन मुक्त फसलों के कारण उपभोक्ताओं में उनके उत्पादों की मांग अधिक है।

संघर्ष और सीख (Struggles and learnings)

मुकेश धाकड़ की जैविक खेती की यात्रा आसान नहीं थी। उन्होंने परंपरागत खेती से हटकर जब जैविक खेती की शुरुआत की, तो उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। सबसे बड़ी समस्या थी रसायन-मुक्त खेती के लिए बाजार का अभाव। जैविक उत्पादों की सही पहचान और उनके लिए स्थायी ग्राहक ढूंढना मुश्किल था। इसके अलावा, शुरुआत में फसल उत्पादन भी अपेक्षाकृत कम था, जिससे उन्हें आर्थिक नुकसान झेलना पड़ा।

मुकेश बताते हैं,

“जब मैंने जैविक खेती शुरू की, तो पारंपरिक खेती से होने वाली आय की तुलना में यह बहुत कम लग रही थी। मैंने कई बार सोचा कि क्या मैंने सही रास्ता चुना है। लेकिन धीरे-धीरे मुझे महसूस हुआ कि जैविक खेती न केवल पर्यावरण के लिए बेहतर है, बल्कि लंबे समय में आर्थिक रूप से भी अधिक फायदेमंद है।”

मुकेश ने इस दौरान कई कृषि वैज्ञानिकों और स्थानीय कृषि अधिकारियों से संपर्क किया। उन्होंने जैविक खेती की नई तकनीकों और बाजार की संभावनाओं के बारे में जानकारी जुटाई। उन्होंने खेतों में गोबर और वर्मी कंपोस्ट खाद का उपयोग शुरू किया, जिससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ी और उत्पादन में सुधार हुआ। इसके साथ ही, उन्होंने स्थानीय किसानों के साथ मिलकर एक छोटा समूह बनाया, जो जैविक खेती के उत्पादों को सामूहिक रूप से बाजार में बेचता है।

अनुभवों से मिली सीख (learning from experiences)

मुकेश कहते हैं,

“जैविक खेती में धैर्य और मेहनत दोनों की जरूरत होती है। शुरुआत में परिणाम धीमे आते हैं, लेकिन लंबे समय में इसका लाभ स्पष्ट होता है। मैंने यह सीखा कि जैविक उत्पादों का सही मूल्यांकन तभी हो सकता है, जब हम उपभोक्ताओं को इसके फायदे समझा पाएं।”

उनकी सबसे बड़ी सीख थी कि उत्पादों की गुणवत्ता को सुधारने के साथ-साथ उपभोक्ताओं को उनके महत्व के बारे में जागरूक करना भी जरूरी है। उन्होंने स्थानीय और ऑनलाइन दोनों प्रकार के बाजारों में अपने उत्पादों को बेचने के लिए प्रयास किए। उनकी मेहनत का नतीजा यह हुआ कि उन्होंने अपने जैविक उत्पादों के लिए एक स्थायी बाजार बना लिया। अब उनके ग्राहक न केवल स्थानीय बाजार से आते हैं, बल्कि बड़े शहरों से भी उनके उत्पादों की मांग बढ़ रही है।

मुकेश की यह यात्रा दिखाती है कि संघर्ष के बिना कोई भी नई पहल सफल नहीं होती। जैविक खेती में उनकी सफलता इस बात का प्रमाण है कि दृढ़ संकल्प और कड़ी मेहनत से किसी भी चुनौती को पार किया जा सकता है। 

सरकारी योजनाओं का लाभ (Benefits of government schemes)

हालांकि मुकेश ने अभी तक किसी सरकारी योजना का लाभ नहीं उठाया है, लेकिन वह “प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि” और “मिशन ऑर्गेनिक वैल्यू चेन डेवलपमेंट” जैसी योजनाओं से जुड़ने की योजना बना रहे हैं। इसके साथ ही, वह मत्स्य पालन के लिए “प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना” का लाभ लेने की दिशा में भी काम कर रहे हैं।

समुदाय को प्रेरणा (inspire the community)

मुकेश ने अपने प्रयासों से किसानों को दिखाया है कि कम जमीन में भी जैविक खेती और मत्स्य पालन के जरिए आत्मनिर्भरता संभव है। उनकी कार्यशालाओं और अनुभव-साझा सत्रों ने कई किसानों को अपने तरीकों में बदलाव लाने के लिए प्रेरित किया है। मुकेश का मानना है,

“अगर हम पर्यावरण के अनुकूल खेती करेंगे, तो हमारी अगली पीढ़ी के लिए एक स्वस्थ भविष्य सुनिश्चित होगा।” 

भविष्य की योजनाएं (future plans)

मुकेश की योजना अपने तालाब में उन्नत मत्स्य पालन तकनीकों को लागू करने और जैविक उत्पादों के लिए एक बड़ा बाजार विकसित करने की है। वह कहते हैं,

“मैं चाहता हूं कि मेरे उत्पाद न केवल स्थानीय बाजारों में, बल्कि देश के अन्य हिस्सों में भी पहुंचे। जैविक खेती और मत्स्य पालन का संयोजन निश्चित रूप से किसानों की आय में वृद्धि करेगा।” 

निष्कर्ष (conclusion)

मुकेश धाकड़ की कहानी उन सभी किसानों के लिए प्रेरणा है जो पारंपरिक खेती से बाहर निकलकर जैविक और प्राकृतिक तरीकों को अपनाना चाहते हैं। उनका दृष्टिकोण, मेहनत और नए प्रयोग कृषि क्षेत्र में सकारात्मक बदलाव लाने का संकेत हैं। उनकी यात्रा यह दर्शाती है कि कैसे जैविक खेती और मत्स्य पालन जैसे टिकाऊ विकल्प न केवल पर्यावरण को बचा सकते हैं, बल्कि किसानों की आर्थिक स्थिति को भी सुधार सकते हैं। 

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सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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