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अरुणाचल प्रदेश के तवांग जिले में रागी (मंडुआ) की खेती का बहुत महत्व है। यहां की 1,260 हेक्टेयर भूमि में रागी की खेती स्थानीय संस्कृति, भोजन और सामाजिक जीवन का अभिन्न हिस्सा है। हालांकि, इस फ़सल की औसत उपज केवल 780 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है, जो राष्ट्रीय औसत 1,747 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर से काफी कम है। इसका मुख्य कारण पारंपरिक, कम उत्पादक किस्मों का इस्तेमाल और पुरानी कृषि पद्धतियां हैं, जो उत्पादन को सीमित करती हैं।
रागी की नई किस्म: VL मंडुआ 376 (New variety of Ragi: VL Mandua 376)
तवांग के किसानों के लिए रागी की नई किस्म VL मंडुआ 376 एक क्रांतिकारी कदम साबित हुई है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) द्वारा विकसित इस नई किस्म ने तवांग के पर्वतीय किसानों के लिए नई उम्मीदें जगाई हैं। VL मंडुआ 376 कम समय में अधिक उत्पादन देने वाली और जल्दी पकने वाली किस्म है, जिससे किसान अपने पारंपरिक खेती के तरीकों को बेहतर बना सकते हैं।
VL मंडुआ 376 की विशेषताएं (Features of VL Mandua 376)
VL मंडुआ 376 की विशेषताएं इसे पारंपरिक किस्मों से बेहतर बनाती हैं:
- अधिक उत्पादन: VL मंडुआ 376 से 35% अधिक उपज प्राप्त होती है, जो पारंपरिक किस्मों की तुलना में ज्यादा लाभकारी है।
- जल्दी पकने वाली किस्म: यह किस्म पारंपरिक किस्मों से 3-4 सप्ताह पहले पक जाती है, जिससे किसानों को अधिक जल्दी फ़ायदा होता है।
- स्थानीय पर्यावरण के अनुकूल: यह किस्म तवांग के कठोर पर्वतीय वातावरण में भी बेहतरीन तरीके से उगाई जा सकती है।
महिलाओं का सशक्तिकरण: रागी की नई किस्म के लाभ
VL मंडुआ 376 ने तवांग की महिलाओं के जीवन में महत्वपूर्ण बदलाव लाए हैं। यहां की महिलाओं को पारंपरिक रागी थ्रेशिंग में शारीरिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था। मैन्युअल थ्रेशिंग के कारण वे शारीरिक रूप से थक जाती थीं और उनके स्वास्थ्य पर भी इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ता था। लेकिन VL मंडुआ 376 की खेती और VL Millet Thresher-cum-Pearler मशीनों के इस्तेमाल से महिलाओं की श्रमिकता में भारी कमी आई है। अब महिलाएं कम समय में ज्यादा काम कर पा रही हैं, जिससे उनका स्वास्थ्य बेहतर हुआ है और शारीरिक श्रम में भी राहत मिली है।
रागी की नई किस्म और थ्रेशिंग की प्रक्रिया में सुधार (New variety of Ragi and improvement in threshing process)
VL मंडुआ 376 के प्रचार के साथ-साथ VL Millet Thresher-cum-Pearler मशीनों का वितरण किया गया है। इन मशीनों के जरिए थ्रेशिंग प्रक्रिया बहुत आसान हो गई है। इन मशीनों की मदद से 77.7% समय की बचत हुई है और महिलाओं के श्रम में भी कमी आई है। यह नई तकनीक महिलाओं के लिए एक बड़ी राहत साबित हुई है, क्योंकि मैन्युअल श्रम से उन्हें शारीरिक तकलीफों का सामना नहीं करना पड़ता।
किसानों की सफलता: रागी की नई किस्म से लाभ (Success of farmers: Benefit from new variety of ragi)
VL मंडुआ 376 की खेती अब तवांग के 34 गांवों में अपनाई जा चुकी है। 362 हेक्टेयर में रागी की नई किस्म की खेती हो रही है, जिससे 387 परिवारों को लाभ हो रहा है। इसके कारण किसानों की आय में संभावित वृद्धि हो रही है और इस नई किस्म के साथ कृषि में नवाचार की दिशा मिल रही है। VL मंडुआ 376 ने तवांग के किसानों को बेहतर उत्पादन और आय की उम्मीद दी है।
बीज उत्पादन और वितरण (Seed production and distribution)
VL मंडुआ 376 के प्रचार और प्रसार के साथ-साथ बीज उत्पादन में भी सुधार हुआ है। किसान अब भागीदारी से बीज उत्पादन कर रहे हैं, जिससे VL मंडुआ 376 के उच्च गुणवत्ता वाले बीज आसानी से उपलब्ध हो रहे हैं। 2022 में 200 किलोग्राम बीज की आपूर्ति हुई थी, जो 2023 में बढ़कर 450 किलोग्राम हो गई। 2024-25 में इसका लक्ष्य 1,000 किलोग्राम बीज का है, जिससे अधिक से अधिक किसानों को यह बीज मिल सके।
तवांग में रागी की नई किस्म का भविष्य (The future of new ragi variety in Tawang)
ICAR, कृषि विज्ञान केंद्र, और राज्य कृषि विभाग की सहायता से VL मंडुआ 376 को अब तवांग जिले के 4 ब्लॉकों में अपनाया जा चुका है। इसके साथ ही तवांग का क्षेत्र रागी बीज उत्पादन का एक प्रमुख केंद्र बनने की दिशा में बढ़ रहा है। जैविक खेती के प्रचार-प्रसार से तवांग के रागी का उत्पादन एक ब्रांड बन सकता है, जो किसानों की आय में स्थिरता लाएगा।
निष्कर्ष (conclusion)
VL मंडुआ 376 ने तवांग जिले में रागी की खेती में एक नया मोड़ दिया है। यह नई किस्म न केवल उत्पादन बढ़ाने में मदद कर रही है, बल्कि इसने महिलाओं की स्थिति में भी सुधार किया है और किसानों की आय में वृद्धि की संभावनाएं प्रदान की हैं। VL मंडुआ 376 की सफलता से यह साबित होता है कि किस तरह पारंपरिक खेती में नई तकनीकों का समावेश करके हम कृषि क्षेत्र को सशक्त बना सकते हैं। इस नई किस्म का यह प्रयोग भारत के अन्य हिस्सों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन सकता है।
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