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मध्य प्रदेश के देवास जिले के धतुरिया गांव की रहने वाली सुमन पटेल और उनका परिवार जैविक खेती और प्राकृतिक खेती के माध्यम से एक प्रेरणादायक कहानी लिख रही हैं। सालों से परंपरागत खेती से जुड़े इस परिवार ने चार साल पहले जैविक और प्राकृतिक खेती की दिशा में कदम बढ़ाया। सुमन पटेल का मानना है कि खेती केवल आजीविका का साधन नहीं, बल्कि यह हमारे पर्यावरण और स्वास्थ्य को बेहतर बनाने का माध्यम भी हो सकती है।
खेती का सफ़र और बदलाव की शुरुआत
सुमन पटेल का परिवार पीढ़ियों से खेती में लगा हुआ है। हालांकि, परंपरागत खेती के साथ आने वाली चुनौतियों और रासायनिक उर्वरकों के बढ़ते उपयोग ने उन्हें खेती के इस नए स्वरूप को अपनाने की प्रेरणा दी।
सुमन पटेल का बेटा, जो वर्तमान में कॉलेज में पढ़ाई कर रहा है, ने जैविक खेती की ओर परिवार का ध्यान आकर्षित किया। परिवार ने गाय और भैंसों के गोबर का उपयोग करके जैविक खाद बनाना शुरू किया।
उनके खेतों में गेहूं और चना प्रमुख फसलें हैं। जैविक खेती के माध्यम से ये फसलें बेहतर गुणवत्ता और अधिक पोषण के साथ तैयार हो रही हैं।
जैविक और प्राकृतिक खेती का अनूठा मिश्रण
सुमन पटेल के परिवार ने जैविक और प्राकृतिक खेती को मिलाकर एक अनोखा मॉडल विकसित किया है।
1. जैविक खाद:
देशी गाय के गोबर से जीवामृत तैयार किया जाता है, जो मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाता है।
2. वर्मी कम्पोस्ट:
भैंस के गोबर को वर्मी कम्पोस्ट में परिवर्तित कर खेतों में इस्तेमाल किया जाता है।
3. फसल विविधता:
गेहूं और चने के साथ-साथ मसालों, जैसे हल्दी की भी खेती की जाती है।
मार्केटिंग और बिक्री का मॉडल
सुमन पटेल का परिवार अपनी उपज को मंडियों में बेचता है। हालांकि, उन्होंने यह महसूस किया कि बिचौलिये किसानों से फसल कम दाम में खरीदकर बाजार में ऊंचे दामों पर बेचते हैं।
सुमन पटेल के अनुसार, “हमें सरकारी योजनाओं और डिजिटल मार्केटिंग प्लेटफॉर्म का सही उपयोग करना चाहिए ताकि किसान अपनी फसल का उचित मूल्य प्राप्त कर सकें।”
पशुपालन का योगदान
उनके परिवार का पशुपालन में भी योगदान है।
1. चार गाय और कुछ भैंसें:
इनसे दूध प्राप्त कर डेयरी को बेचा जाता है।
2. गाय का गोबर:
जैविक खाद और वर्मी कम्पोस्ट बनाने में इस्तेमाल होता है।
पशुपालन से न केवल खेती में मदद मिलती है, बल्कि यह अतिरिक्त आय का भी साधन बनता है।
सरकारी सहायता और योजनाएं
सुमन पटेल के परिवार ने कुछ सरकारी योजनाओं का लाभ उठाया है।
1. उद्यान विभाग से वर्मी कम्पोस्ट यूनिट:
इस यूनिट के माध्यम से वे बड़ी मात्रा में जैविक खाद तैयार कर रहे हैं।
2. बोरवेल और स्प्रिंकलर सिस्टम:
जल प्रबंधन के लिए इन तकनीकों का उपयोग किया जा रहा है।
चुनौतियां और समाधान
हालांकि जैविक खेती के फायदे कई हैं, लेकिन इसे अपनाने के दौरान चुनौतियां भी आती हैं।
1. शुरुआती निवेश:
जैविक खाद बनाने और खेती में बदलाव के लिए शुरुआती निवेश की आवश्यकता थी।
2. मार्केटिंग की समस्या:
स्थानीय बाजारों तक पहुंच और उचित मूल्य प्राप्त करना हमेशा आसान नहीं होता।
3. प्रशिक्षण और जागरूकता:
परिवार ने प्रशिक्षण लेकर और अन्य किसानों से सीखकर इन समस्याओं का समाधान निकाला।
जैविक खेती का प्रभाव
जैविक खेती अपनाने के बाद सुमन पटेल और उनके परिवार को कई फायदे हुए:
1. लागत में कमी:
रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग की आवश्यकता खत्म हो गई।
2. मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार:
जैविक खाद के उपयोग से मिट्टी की उर्वरता बढ़ी।
3. स्वास्थ्य लाभ:
जैविक फसलें पोषण में बेहतर और स्वास्थ्य के लिए लाभकारी हैं।
भविष्य की योजनाएं
सुमन पटेल का परिवार अपनी खेती का विस्तार करना चाहता है।
1. डायरेक्ट मार्केटिंग:
किसान मंडियों और बिचौलियों से परे जाकर ग्राहकों तक सीधे अपनी उपज पहुंचाने की योजना बना रहे हैं।
2. हल्दी और मसाले:
हल्दी का पाउडर बनाकर पैकेजिंग के माध्यम से इसे ब्रांड के रूप में बाजार में उतारने की योजना है।
3. प्रशिक्षण केंद्र:
अन्य किसानों को जैविक खेती के लिए प्रेरित करने के लिए एक प्रशिक्षण केंद्र स्थापित करना चाहते हैं।
किसानों के लिए संदेश
सुमन पटेल का मानना है कि किसानों को जैविक खेती अपनाकर न केवल अपनी आय बढ़ानी चाहिए, बल्कि पर्यावरण संरक्षण में भी योगदान देना चाहिए। उनका संदेश है:
खेती केवल मुनाफे का जरिया नहीं, बल्कि यह प्रकृति और मानव स्वास्थ्य को बेहतर बनाने का माध्यम है।
सुमन पटेल और उनका परिवार आज उन किसानों के लिए प्रेरणा है, जो परंपरागत खेती को छोड़कर जैविक और प्राकृतिक खेती की ओर बढ़ना चाहते हैं। अपने संघर्ष और मेहनत से उन्होंने यह साबित कर दिया कि कम भूमि होने के बावजूद भी अगर सही दृष्टिकोण और तकनीक का उपयोग किया जाए, तो खेती एक सफल व्यवसाय बन सकती है।