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क्या आप जानते हैं कि झींगा शेल यानि झींगा कचरा जिसे Shrimp Shell भी कहते हैं, जिसे अब तक बेकार समझा जाता था, करोड़ों की कमाई और पर्यावरण सुधार का ज़रिया बन सकता है? महाराष्ट्र में लॉन्गशोर टेक्नोलॉजीज प्राइवेट लिमिटेड ने ऐसा कर दिखाया है। यहां भारत का पहला झींगा शेल बायोरिफाइनरी प्लांट (Shrimp Shell Biorefinery Plant) स्थापित हुआ है, जो कचरे से अमूल्य उत्पाद बनाने की अनोखी मिसाल पेश करता है।
इस पहल को तकनीकी सहायता आईसीएआर-केंद्रीय मत्स्य प्रौद्योगिकी संस्थान (ICAR-CIFT), कोच्चि ने दी है। ये परियोजना केवल उद्योग को नई दिशा नहीं देती, बल्कि भारत की ‘नीली अर्थव्यवस्था’ को भी मजबूत करती है।
झींगा कचरे से खजाना निकालने का सफर
झींगा उद्योग हर साल हजारों टन कचरा पैदा करता है। ये कचरा न सिर्फ जगह घेरता है, बल्कि पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचाता है। लेकिन, आईसीएआर-सीआईएफटी ने इसे बदलने का रास्ता खोजा। ICAR-CIFT के निदेशक, डॉ. जॉर्ज निनन का कहना है कि वैज्ञानिक अनुसंधान और उद्योग में तालमेल कैसे टिकाऊ समाधान दे सकता है, ये हमने कर दिखाया है।
झींगा कचरे से बने बहुमूल्य उत्पाद
इस बायोरिफाइनरी प्लांट में झींगा शेल से चिटिन, चिटोसन, और प्रोटीन हाइड्रोलाइज़ेट जैसे उत्पाद बनाए जाते हैं।
1.चिटिन और चिटोसन: कृषि, फार्मास्यूटिकल्स और सौंदर्य प्रसाधनों में इनकी बड़ी मांग है।
2.प्रोटीन हाइड्रोलाइज़ेट: ये पशु चारे और पोषण उत्पादों में इस्तेमाल होते हैं।
इन उत्पादों की भारत और ग्लोबल मार्केट में भारी मांग है। और ये सब एक ऐसा कचरा है, जिसे अब तक कोई नहीं देखता था।
सफलता की कहानी: अमेय नाइक का योगदान
2020 में गुजरात के EDII के ग्रेजुएट, अमेय नाइक, ने झींगा शेल कचरे की इस ताकत को पहचाना। उन्होंने ICAR-CIFT के साथ पार्टनरशिप की और इसे व्यवहारिक रूप दिया। ICAR-CIFT के वैज्ञानिकों ने उन्हें झींगा कचरे को चिटिन और चिटोसन जैसे प्रोडक्ट्स में बदलने की पर्यावरण-अनुकूल तकनीक विकसित करने में मदद की।
टेक्नोलॉजी इनोवेशन और सर्कुलर अर्थव्यवस्था
ICAR-CIFT ने झींगा शेल से उत्पाद निकालने के लिए ऐसी तकनीक विकसित की है जो पर्यावरण के लिए सुरक्षित है। ये तकनीक झींगा प्रसंस्करण (Shrimp Processing) कचरे को दोबारा इस्तेमाल में लाकर Circular Economy का एक शानदार उदाहरण पेश करती है। हर साल 400 टन झींगा कचरे को संसाधित करने की क्षमता वाले इस प्लांट से 25 लाख रुपये का कारोबार होने की उम्मीद है।
वैज्ञानिकों और टीम का योगदान
2022 से 2023 तक, डॉ. बिंदु जे. और डॉ. इलावरसन के. के नेतृत्व में वैज्ञानिकों की टीम ने अथक प्रयास किया। उन्होंने झींगा कचरे से उत्पाद बनाने की प्रक्रिया को पायलट स्तर पर सफल बनाया। इस दौरान, एमपीईडीए और अन्य उद्योग साझेदारों के साथ भी सहयोग किया।
रोजगार और पर्यावरण के लिए फायदे
इस परियोजना से सिर्फ पर्यावरणीय कचरे में कमी नहीं आई, बल्कि रोजगार के अवसर भी बढ़े। इस प्लांट में फिलहाल 7 लोग काम कर रहे हैं। भविष्य में यह संख्या और भी बढ़ सकती है।