पॉलीहाउस में जरबेरा की खेती से लाखों की कमाई कर रहे हैं युवा किसान गुरजीत सिंह

गुरजीत सिंह जरबेरा की जैविक खेती से लाखों कमा रहे हैं। उनकी मेहनत और पारंपरिक खेती से हटकर नई दिशा में कदम बढ़ाने की प्रेरणा, किसानों के लिए लाभकारी साबित हो रही है।

जरबेरा की खेती gerbera cultivation

फूलों की खुशबू और सुंदरता किसानों को भी आकर्षित कर रही है, क्योंकि इससे वो मोटी कमाई कर सकते हैं। जरबेरा की खेती भी एक ऐसा ही आकर्षक विकल्प है, जिसकी मदद से किसान अच्छी कमाई कर सकते हैं। इन फूलों की खासियत है कि ये लंबे समय तक तरोताज़ा रहते हैं। जी हां, ये फूल एक हफ्ते तक मुरझाते नहीं हैं, और इसलिए शादी-विवाह या अन्य खास मौकों पर इन्हें सजावट के लिए उपयोग किया जाता है।

पारंपरिक खेती से हटकर कुछ नया करने की चाह रखने वाले किसान जरबेरा फूल की खेती कर सकते हैं, जैसा कि उत्तराखंड के ऊधम सिंह नगर के युवा किसान गुरजीत सिंह कर रहे हैं। किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाले गुरजीत सिंह जरबेरा की चार अलग-अलग प्रजातियों की खेती करके लाखों कमा रहे हैं। अपने इस सफऱ के बारे में उन्होंने बात की किसान ऑफ इंडिया के संवाददाता सर्वेश बुंदेली से।

दिमाग में पहला ख्याल खेती का ही आया (The first thought that came to my mind was farming)

अपनी खेती की शुरुआत के बारे में गुरजीत सिंह का कहना है कि उनके दिमाग में प्लान बी में खेती ही आई। दरअसल, उन्होंने पंत नगर यूनिवर्सिटी से पोस्ट ग्रैज्युएशन किया है, और उसी दौरान वो पंत नगर एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के सेमिनार में जाते थे। वहां प्रोफेसर और रिसर्चर से मिलने के दौरान ही उन्हें प्रोटेक्टेड एग्रीकल्चर के बारे में पता चला कि कैसे पॉलीहाउस में पारंपरिक खेती से अलग दूसरी फ़सलें उगाई जा सकती हैं।

यहां ऐसी फ़सलें उगाई जा सकती हैं जो खुले खेतों में नहीं उगाई जा सकतीं, यानी ऐसी फ़सलें जिन्हें एक निश्चित तापमान की ज़रूरत होती है, उसे यहां आसानी से उगाया जा सकता है। गुरजीत सिंह बताते हैं कि उन्होंने कॉलेज के बाद 2-3 साल सरकारी नौकरी की तैयारी की और कुछ दिनों तक प्राइवेट नौकरी भी की, मगर उन्हें लगा कि प्राइवेट नौकरी में वो ज़्यादा दिनों तक सर्वाइव नहीं कर सकते। फिर खेती ही उनका प्लान बी बन गया, और उन्होंने जरबेरा की खेती जैसे लाभकारी विकल्प को अपनाया। उनका पैतृक व्यवसाय ही खेती था, इसलिए सबसे पहले दिमाग में यही आइडिया आया कि खेती में क्या किया जा सकता है।

मिट्टी की खास तैयारी (Special preparation of the soil)

जरबेरा की खेती (gerbera cultivation) के लिए रेतीली, भूरभूरी मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती हैं। गुरजीत सिंह मिट्टी की तैयारी प्राकृतिक तरीके से करते हैं। वो गोबर की खाद, धान की भूसी और नीम खली को मिलाकर मिट्टी तैयार करते हैं। जिससे मिट्टी उपजाऊ बनती है। जरबेरा के पौधों को बेड्स बनाकर लगाया जाता है। वो बताते हैं कि जरबरे की दो पंक्तियों के बीच 2 फुट की दूरी होती है। जबकि पौधों से पौधों के बीच एक फीट की दूरी रखी जाती है। एक बेड में दो पंक्ति बनाई जाती है।

सेमी ऑर्गेनिक (Semi Organic)

गुरजीत सिंह पॉलीहाउस में जरबेरा की खेती कर रहे हैं, और उनका कहना है कि वो शुरुआत में ड्रिंचिंग प्रोसेस का ही इस्तेमाल करते हैं। करीब एक महीने तक पौधों को ड्रिंचिंग के ज़रिए ही जड़ों में फर्टिलाइज़र और न्यूट्रिशन दिया जाता है, क्योंकि पौधे बहुत छोटे होते हैं। इसके बाद ड्रिप से फर्टिलाइज़र दिया जाता है। उनका कहना है कि वे पूरी तरह से ऑर्गेनिक खेती नहीं करते, मगर इसे सेमी ऑर्गेनिक कहा जा सकता है, क्योंकि वे फर्टिलाइज़र का इस्तेमाल कम से कम करने की कोशिश करते हैं। बहुत ज़रूरी होने पर ही फर्टिलाइज़र का उपयोग करते हैं, वरना वर्मी कंपोस्ट और दूसरे ऑर्गेनिक उत्पादों का ही प्रयोग करते हैं।

सालों साल चलते हैं पौधे (Plants last for years)

गुरजीत सिंह सिंह जरबेरा की चार किस्मों की खेती कर रहे है जिसमें लीबिया और ब्रेकडांस जैसी रंग-बिरंगी प्रजातियां शामिल हैं। वो बताते हैं कि जरबेरा का पौधा बहुत जल्दी विकसित हो जाता है, पौधे लगाने के ढ़ाई से तीन महीने बाद ही फूल निकलने शुरू हो गए जाते हैं। उन्होंने 500 मीटर स्क्वायर एरिया में 3 हजार पौधे लगाए हुए हैं। जरबेरा फूल की खेती करने का सबसे बड़ा फ़ायदा ये है कि एक बार पौधा लगाने के बाद 4-5 साल तक फूल मिलते रहते हैं।

अनुभव से सीखा (Learned from experience)

गुरजीत सिंह का कहना है कि उन्हें शुरुआत में इस विदेशी फूल की खेती में थोड़ी दिक्कत हुई, मगर धीरे-धीरे सब कुछ सीख गए। शुरू-शुरू में फर्टिलाइज़र डालने के लिए चौथे से पांचवे दिन ड्रिंचिंग करनी होती है। मगर जब अनुभव हो जाता है तो फ़सल में घूमते हुए भी आपको समझ आ जाता है कि पौधों में क्या समस्या है। पत्तों के रंग और फूलों की बनावट देखकर ही समझ आ जाता है कि किसी पोषक तत्व की कमी है या फिर कोई और समस्या है। इस तरह, जरबेरा की खेती से जुड़ी चुनौतियां और अनुभव ने उन्हें एक कुशल कृषक बना दिया है।

एक बार की लागत (One time cost)

जरबेरा की खेती (gerbera cultivation) में शुरुआत में थोड़ा खर्च होता है, मगर वो लागत सिर्फ़ एक बार की ही होती है। एक बार खर्च करके आप आराम से 4-5 साल तक कमाई कर सकते हैं। लागत के बारे में वो बताते हैं कि पॉलीहाउस का स्ट्रक्चर उन्होंने 80 प्रतिशत सब्सिडी पर बनाया है यानी जेब से 20 प्रतिशत ही लगा जो करीब 1.25 लाख था।

उसके बाद प्लांटिंग मटीरियल भी करीब एक लाख का पड़ा था। इसके लिए जो कच्चा माल इस्तेमाल किया वो भी एक बार ही खरीदना पड़ता है। . सारे खर्च एक बार में ही आते हैं जो 3.5 से 4 लाख रुपए था। यानी अगर कोई जरबेरा की खेती (gerbera cultivation) शुरू करना चाहता है तो 4 लाख रुपए से इसकी शुरुआत कर सकता है।

कितनी होती है कमाई (How much is the earning)

गुरजीत सिंह कहते हैं कि एक पौधे से सालाना 35-40 फूल मिल जाते हैं। उन्होंने पिछले साल एक प्लांट से 4 लाख रुपए की बिक्री की। उनका कहना है कि शुरुआती 3-4 साल में उत्पादन अच्छा होता है, लेकिन आखिरी साल में उत्पादन कम हो सकता है, जो पौधों की देखभाल और अन्य परिस्थितियों पर निर्भर करता है।

जरबेरा, जिसे अफ़्रीकी डेज़ी के नाम से भी जाना जाता है, एक बहुत ही सुंदर फूल है और इसकी खेती की सफलता का मंत्र है मेहनत, सही मिट्टी और ज़रूरी देखभाल। जरबेरा की खेती से किसान अच्छी कमाई कर सकते हैं, अगर वे इसे सही तरीके से उगाएं और देखभाल में कोई कमी न छोड़ें।

जरबेरा की खेती से जुड़ी अहम बातें (Important things related to gerbera cultivation) 

  • खूबसूरत और ज़्यादा दिनों तक ताज़ा रहने के कारण ही इसकी बहुत मांग है और बाज़ार में इसकी अच्छी कीमत मिल जाती है।
  • इसकी खेती के लिए मिट्टी भुरभुरी और उपजाऊ होनी चाहिए। खेत में गोबर की खाद और नारियल का भूसा डाल सकते हैं।
  • पौधों को 30 से 40 सेमी की दूरी पर लगान चाहिए।
  • जरबरे के पौधों की रोज़ाना सिंचाई करें।
  • जरबेरा की खेती (gerbera cultivation) पॉलीहाउस बनाकर की जानी चाहिए।
  • रोपाई के करीब ढ़ाई-तीन महीने बाद कलियां खिल जाती हैं, जिन्हें तोड़ देना चाहिए ताकि दूसरी कली उस पर खिल सके।
  • एक एकड़ जमीन पर खेती करने के लिए जरबेरा के लगभग 28 हजार बीजों की आवश्यकता होगी।

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सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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