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उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले के छोटे से गांव समथल में रहने वाले 79 वर्षीय रघुपत सिंह भारतीय कृषि के लिए एक प्रेरणास्त्रोत हैं। एक किसान के रूप में उन्होंने 50 वर्षों से भी अधिक समय तक बीजों का संरक्षण और उन्नयन किया है। उनकी इस अथक मेहनत ने उन्हें कई राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय पुरस्कार दिलाए हैं।
बीज संरक्षण और नई प्रजातियों का विकास (Seed conservation and development of new varieties)
रघुपत सिंह ने परंपरागत खेती के तरीकों को वैज्ञानिक सोच के साथ जोड़कर कृषि क्षेत्र में क्रांति लाई। उन्होंने राजमा, तुरई, लोबिया, करेला, लोकी, और अन्य देशी प्रजातियों की 32 किस्मों का न केवल संरक्षण किया, बल्कि उनकी उन्नत किस्में भी विकसित कीं। उनकी विकसित लोकी की प्रजाति, जो 1.5 मीटर लंबी होती है, किसानों के लिए एक अनोखी और लाभदायक खोज साबित हुई है।
संरक्षित खेती के नवाचार (Innovations in protected cultivation)
रघुपत सिंह ने संरक्षित खेती (Protected cultivation) के तहत बीज संरक्षण की एक नई दिशा दिखाई। उन्होंने पारंपरिक बीजों को सुरक्षित रखने के लिए विशेष तकनीक विकसित की, जिसमें बीजों को सूखाकर गाय के गोबर के उपलों की राख में मिलाकर लंबे समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है। यह तकनीक खासतौर पर छोटे किसानों के लिए मददगार साबित हुई, जिनके पास महंगे भंडारण साधन नहीं होते।
बीज शोधन और फसल की गुणवत्ता (Seed treatment and crop quality)
इसके अलावा, रघुपत ने बीज शोधन की नई विधियों को भी प्रोत्साहित किया, जिससे न केवल फसल की गुणवत्ता बढ़ी, बल्कि फसल उत्पादन में भी सुधार हुआ। फसल बुवाई के समय उन्होंने शुक्ल पक्ष के दिनों में बीज बोने का वैज्ञानिक सत्यापन किया, जिससे कीटों का प्रकोप कम हुआ और फसल की पैदावार बेहतर हुई।
संरक्षित खेती की सफलता (Success of protected cultivation)
इन नवाचारों के कारण, उन्होंने स्थानीय किसानों को उन्नत खेती के महत्व को समझाया और उन्हें इन प्रजातियों को अपनाने के लिए प्रेरित किया। उनके प्रयासों का नतीजा यह हुआ कि इन उन्नत प्रजातियों ने न केवल किसानों की आय में वृद्धि की, बल्कि उन्हें बाजार में प्रतिस्पर्धा करने के लिए भी तैयार किया। उनके इन योगदानों को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराहा गया है, और उन्होंने संरक्षित खेती (Protected cultivation) के क्षेत्र में नई मिसाल कायम की है।
संरक्षित खेती के क्षेत्र में अनोखी विधि (Unique method in the field of protected cultivation)
रघुपत सिंह ने संरक्षित खेती (Protected cultivation) के क्षेत्र में एक अनोखी और किफायती विधि विकसित की है। वे बीजों को सुखाकर गाय के गोबर के उपलों की राख में मिलाते हैं, जिससे बीज लंबे समय तक संरक्षित रहते हैं और उनकी गुणवत्ता भी बनी रहती है। इस तकनीक ने छोटे और सीमांत किसानों को महंगे भंडारण विकल्पों की आवश्यकता से मुक्त कर दिया है। भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी ने उनके इस योगदान को 2016 में स्वर्ण पदक से सम्मानित किया।
सम्मान और पुरस्कार (Honours and Awards)
रघुपत सिंह को उनकी सेवाओं और नवाचारों के लिए अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है:
- जगजीवनराम अभिनव किसान पुरस्कार (2018, 2019)
- पंडित दीनदयाल उपाध्याय अत्योदय कृषि पुरस्कार (2017)
- एन.जी. रंगा पुरस्कार (2019)
- गोल्ड मैडल, भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी (2016)
- कृषि पंडित उपाधि, कृषि विभाग मुरादाबाद (1995)
इन सम्मानों ने उनकी मेहनत और समर्पण को देशभर में मान्यता दिलाई।
संरक्षित खेती के लिए नई विधियां (New methods for protected cultivation)
रघुपत सिंह ने पारंपरिक खेती की सीमाओं से आगे बढ़कर नवीन तकनीकों को अपनाया। उनके सत्यापित तरीकों में फसल बुवाई का समय और बीज शोधन विधियां प्रमुख हैं। उन्होंने बताया:
“मैंने देखा कि शुक्ल पक्ष में फसल की बुवाई करने से कीटों का प्रकोप 40% तक कम हो जाता है। यह केवल अनुभव से सीखी गई बात है।”
संरक्षित खेती के तहत सफलता (Success under protected cultivation)
संरक्षित खेती (Protected cultivation) के तहत रघुपत सिंह ने अपनी 1-5 एकड़ भूमि पर नई प्रजातियों का सफलतापूर्वक परीक्षण किया। उनकी विधियां अन्य किसानों के लिए प्रेरणा बनीं।
सरकारी योजनाओं का लाभ (Benefits of government schemes)
हालाँकि उन्होंने अब तक किसी सरकारी योजना का प्रत्यक्ष लाभ नहीं लिया है, लेकिन उनकी विधियां और नवाचार सरकारी संस्थानों के लिए प्रेरणा का स्रोत रहे हैं। कृषि वैज्ञानिक उनके कार्यों का अध्ययन करते हैं और उनकी विधियों को किसानों तक पहुँचाने का प्रयास करते हैं।
किसान समुदाय को प्रेरणा (Inspiration to the farming community)
रघुपत सिंह ने अपने अनुभव और अनुसंधान के माध्यम से न केवल अपनी खेती को उन्नत किया, बल्कि आसपास के किसानों को भी नई तकनीकों के लिए प्रेरित किया। वे नियमित रूप से किसानों के साथ कार्यशालाएँ आयोजित करते हैं, जहाँ उन्हें बीज संरक्षण, जैविक खाद, और कीट नियंत्रण के पारंपरिक व वैज्ञानिक तरीकों की जानकारी दी जाती है। उनका मानना है कि किसानों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए उन्हें सही ज्ञान और साधन उपलब्ध कराना आवश्यक है। उनके प्रयासों के कारण, क्षेत्र के कई किसान अब उनकी विधियों को अपनाकर अपनी आय बढ़ा रहे हैं और कृषि में नवाचार कर रहे हैं।
बातचीत का सार (The essence of the conversation)
जब हमने उनसे उनके अनुभव और प्रेरणा के बारे में पूछा, तो उन्होंने कहा:
“खेती केवल आजीविका का साधन नहीं है, यह हमारी धरोहर है। यदि हम बीजों और परंपराओं को सुरक्षित नहीं रखेंगे, तो आने वाली पीढ़ियों के लिए कुछ भी शेष नहीं बचेगा।”
भविष्य की योजनाएं (future plans)
रघुपत सिंह का सपना है कि उनकी विधियों को और भी अधिक किसानों तक पहुँचाया जाए। वे चाहते हैं कि उनका अनुभव कृषि विश्वविद्यालयों और सरकारी संस्थानों के माध्यम से साझा किया जाए।
निष्कर्ष (conclusion)
रघुपत सिंह की कहानी एक ऐसे किसान की है, जिसने न केवल खेती को अपनी आजीविका का साधन बनाया, बल्कि इसे एक मिशन के रूप में देखा। उनकी मेहनत और नवाचारों ने यह साबित कर दिया है कि सीमित संसाधनों के बावजूद, यदि दृढ़ संकल्प और ज्ञान का सही उपयोग किया जाए, तो असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है।
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