Table of Contents
उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले के कलिकन गांव में रहने वाले युवा किसान सलीकराम वर्मा ने अपने समर्पण और मेहनत से जैविक खेती को एक नई पहचान दी है। मात्र 23 वर्ष की उम्र में उन्होंने यह साबित कर दिया कि छोटे संसाधनों और सीमित भूमि के साथ भी सफलता हासिल की जा सकती है। सलीकराम का खेती के प्रति समर्पण और जैविक पद्धतियों को अपनाने का जज्बा उनके गांव और आसपास के किसानों के लिए प्रेरणा बन चुका है।
शुरुआती सफर और खेती की शुरुआत
सलीकराम का जन्म 26 सितंबर 2000 को एक सामान्य किसान परिवार में हुआ। उनके परिवार की भूमि सीमित थी और पारंपरिक खेती से होने वाली आय भी कम थी। बचपन से ही उन्होंने खेतों में काम करते हुए खेती के बुनियादी पहलुओं को सीखा।
सलीकराम बताते हैं:
“मैंने हमेशा देखा कि पारंपरिक खेती से न केवल उपज कम होती थी, बल्कि लागत भी अधिक आती थी। इससे मिट्टी की उर्वरता भी धीरे-धीरे खत्म हो रही थी।”
यहीं से उन्होंने जैविक खेती की ओर रुझान बढ़ाया और इसे अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया।
जैविक खेती की शुरुआत
2019 में, सलीकराम ने जैविक खेती के बारे में गहराई से अध्ययन करना शुरू किया। उन्होंने विभिन्न कार्यशालाओं में भाग लिया और इंटरनेट के माध्यम से नई तकनीकों की जानकारी प्राप्त की। उन्होंने समझा कि जैविक खेती न केवल पर्यावरण को संरक्षित करती है, बल्कि उत्पाद की गुणवत्ता को भी बेहतर बनाती है।
अपने खेत में उन्होंने रासायनिक खाद और कीटनाशकों का उपयोग बंद कर दिया और गोबर खाद, वर्मी कंपोस्ट, नीम खली और अन्य जैविक उर्वरकों का इस्तेमाल शुरू किया।
सलीकराम कहते हैं:
“जैविक खेती के जरिए न केवल उत्पाद का स्वाद बेहतर होता है, बल्कि यह स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद है।”
कम भूमि में अधिक उत्पादन का मॉडल
सलीकराम के पास केवल 1 एकड़ से कम भूमि है। इतनी कम भूमि पर खेती करना और लाभ कमाना एक चुनौती थी। लेकिन उन्होंने सह-फसली खेती और बेहतर तकनीकों का सहारा लिया।
उनके खेत में दालें, सब्जियां और हल्दी जैसी फसलें उगाई जाती हैं। उन्होंने सह-फसली खेती को अपनाया, जिससे मिट्टी की गुणवत्ता बनी रहती है और लागत भी कम आती है।
वे बताते हैं:
“कम भूमि होने के बावजूद, मैंने सह-फसली खेती के माध्यम से अधिक लाभ कमाना सीखा। हर इंच भूमि का सही उपयोग करना सफलता का राज है।”
पर्यावरण संरक्षण में योगदान
सलीकराम की जैविक खेती न केवल उनके परिवार के लिए लाभदायक है, बल्कि पर्यावरण के लिए भी एक वरदान है।
- उन्होंने अपने खेत में पानी की खपत को कम करने के लिए ड्रिप सिंचाई प्रणाली लागू की।
- मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखने के लिए वे जैविक खाद और कीटनाशकों का ही उपयोग करते हैं।
- उनकी खेती से जल स्रोत और आस पास का पर्यावरण प्रदूषित नहीं होता।
स्थानीय समुदाय के लिए प्रेरणा
सलीकराम न केवल अपने लिए खेती कर रहे हैं, बल्कि अपने गांव और आसपास के किसानों को भी जैविक खेती के लिए प्रेरित कर रहे हैं।
वे बताते हैं:
“मैं चाहता हूं कि मेरे गांव के हर किसान जैविक खेती को अपनाए। इससे न केवल उनकी आय बढ़ेगी, बल्कि हमारे पर्यावरण को भी बचाया जा सकेगा।”
वे अपने अनुभव और ज्ञान को साझा करने के लिए नियमित रूप से स्थानीय किसान समूहों के साथ चर्चा करते हैं। उन्होंने अपने गांव में जैविक खेती के फायदे और तकनीकों को समझाने के लिए कई कार्यशालाएं आयोजित की हैं।
सरकार की योजनाओं का लाभ
अब तक सलीकराम ने किसी सरकारी योजना का सीधा लाभ नहीं लिया है। हालांकि, वे आगे की योजनाओं के लिए कृषि विभाग से जुड़ने और समर्थन प्राप्त करने की योजना बना रहे हैं।
वे कहते हैं:
“सरकार की कई योजनाएं हैं जो जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए चलाई जा रही हैं। मेरी कोशिश है कि मैं इन योजनाओं का लाभ उठाकर अपने काम को और भी बेहतर बना सकूं।”
भविष्य की योजनाएं
सलीकराम का सपना है कि उनका गांव जैविक खेती का एक मॉडल बने। वे अपनी उपज को स्थानीय और राष्ट्रीय बाजारों तक पहुंचाना चाहते हैं।
वे कहते हैं:
“मैं चाहता हूं कि जैविक खेती केवल एक विकल्प न रहकर हर किसान की प्राथमिकता बने। मेरा सपना है कि मैं अपनी खेती को एक ऐसा मॉडल बनाऊं, जिसे देखकर अन्य किसान प्रेरित हों।”
वे जल्द ही अपनी फसलों के प्रसंस्करण और ब्रांडिंग की भी योजना बना रहे हैं, जिससे उन्हें बेहतर बाजार मूल्य प्राप्त हो सके।
कठिनाइयों के बावजूद सफलता का सफर
सलीकराम के इस सफर में कई बाधाएं आईं। सीमित संसाधन, कम भूमि और शुरुआती अनुभव की कमी जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ा। लेकिन उनके दृढ़ संकल्प और मेहनत ने उन्हें हर चुनौती को पार करने में मदद की।
उनका मानना है कि:
“किसी भी काम में सफलता पाने के लिए धैर्य और समर्पण सबसे जरूरी है।”
निष्कर्ष
सलीकराम वर्मा की कहानी बताती है कि यदि सही सोच और मेहनत हो, तो खेती न केवल एक पेशा, बल्कि एक समर्पित सेवा भी बन सकती है। जैविक खेती के माध्यम से उन्होंने यह साबित कर दिया कि कम संसाधनों के साथ भी बड़े लक्ष्य हासिल किए जा सकते हैं।
उनकी मेहनत और समर्पण आज उन्हें उनके गांव और क्षेत्र में एक प्रेरणा के रूप में स्थापित कर चुके हैं। जैविक खेती के प्रति उनका यह योगदान न केवल उनके व्यक्तिगत जीवन को बेहतर बना रहा है, बल्कि उनकी इस पहल से पर्यावरण संरक्षण और स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी सकारात्मक बदलाव आ रहा है।
“सलीकराम वर्मा की मेहनत और समर्पण जैविक खेती को नई ऊंचाइयों पर ले जाने का प्रतीक है।”
ये भी पढ़ें: जैविक खेती के जरिए संजीव कुमार ने सफलता की नई राह बनाई
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।