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राजस्थान के अजमेर जिले के विजयनगर गांव के निवासी कैलाश चंद्र शर्मा ने जैविक खेती के क्षेत्र में एक नई पहचान बनाई है। एक छोटे किसान के रूप में शुरू हुई उनकी यात्रा आज पर्यावरण संरक्षण और टिकाऊ खेती का एक सफल उदाहरण बन गई है। यह लेख उनकी इस प्रेरणादायक कहानी और जैविक खेती से जुड़े उनके अनुभवों पर आधारित है।
शुरुआत में ही किया चुनौतियों का सामना
कैलाश बताते हैं,
“जब मैंने पारंपरिक रसायनिक खेती को छोड़कर जैविक खेती की शुरुआत की, तो शुरुआती कुछ साल मुश्किल भरे थे। खेतों में उत्पादन घटा, रोग और कीटों का प्रकोप बढ़ा। यह सब देखते हुए कई बार मन में निराशा आई, लेकिन मैंने हार नहीं मानी।”
परिवार के साथ मिलकर उन्होंने जैविक खेती को प्राथमिकता दी। जैविक खाद, जीवामृत, गोमूत्र, और वर्मी कम्पोस्ट जैसे प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करके उन्होंने न केवल अपने खेत की उर्वरता को वापस पाया, बल्कि पर्यावरण के लिए भी एक महत्वपूर्ण योगदान दिया।
कैलाश कहते हैं,
“पहले हमारे खेतों से हमें कोई लाभ नहीं होता था। हर साल हमें आर्थिक नुकसान झेलना पड़ता था। लेकिन जब मैंने और मेरे परिवार ने जैविक खेती को पूरी तरह अपनाया, तो धीरे-धीरे परिणाम दिखने लगे।”
जैविक खेती की शुरुआत और सफलता
कैलाश ने जैविक खेती के लिए अपनी रणनीति में मुख्य रूप से निम्नलिखित तत्वों को शामिल किया:
- गोमूत्र और जैविक खाद का उपयोग:
हर सिंचाई के साथ गोमूत्र का प्रयोग करते हुए उन्होंने अपनी मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाया। इसके अलावा वर्मी कम्पोस्ट और बायोचार जैसे प्राकृतिक उर्वरकों का भी उपयोग किया। - जीवामृत और बिस्तर कम्पोस्ट:
कैलाश ने जीवामृत और बिस्तर कम्पोस्ट का नियमित उपयोग किया। इन जैविक साधनों ने उनकी मिट्टी को स्वस्थ बनाया और फसल उत्पादन में स्थिरता लाई। - रोग और कीट प्रबंधन:
जैविक खेती में रोगों और कीटों का प्रबंधन करना एक बड़ी चुनौती होती है। कैलाश ने इस समस्या को जैविक कीटनाशकों और पारंपरिक घरेलू नुस्खों से हल किया।
उनका अनुभव बताता है कि जैविक खेती में धैर्य और समय की आवश्यकता होती है। शुरू में जहां उत्पादन कम था, वहीं कुछ वर्षों बाद उन्होंने न केवल उत्पादन में वृद्धि देखी, बल्कि बाजार में जैविक उत्पादों की मांग भी बढ़ी।
कर्ज़ मुक्त किसान बनने की प्रेरणा
कैलाश ने बताया,
“आज मेरी सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि मैं पूरी तरह से कर्ज़ मुक्त हूं। पहले हर साल कर्ज़ लेना पड़ता था, लेकिन अब मेरा खेत और मेरी फसलें मुझे स्थायी आय देती हैं।”
उनकी खेती से होने वाली आमदनी 1-10 लाख रुपये प्रतिवर्ष के बीच है। इस आय ने न केवल उनके परिवार को आत्मनिर्भर बनाया, बल्कि उनकी जीवनशैली को भी बेहतर किया।
जैविक खेती का सकारात्मक प्रभाव
कैलाश के अनुसार, जैविक खेती न केवल पर्यावरण के लिए लाभकारी है, बल्कि यह किसानों की आर्थिक स्थिति को भी सुदृढ़ बनाती है। उन्होंने अपने खेतों में बायोचार और जैविक खाद का उपयोग करके मिट्टी की संरचना और उर्वरता को बेहतर बनाया।
उनकी फसलें अब टिकाऊ हैं और उन्हें किसी प्रकार के रसायनिक उर्वरकों या कीटनाशकों की आवश्यकता नहीं पड़ती। इसके साथ ही, उनकी फसलों की गुणवत्ता भी पारंपरिक फसलों की तुलना में बेहतर है।
समुदाय को प्रेरणा
कैलाश अपने गांव और आसपास के किसानों के लिए प्रेरणा हैं। वे कहते हैं,
“जैविक खेती सिर्फ एक तकनीक नहीं, बल्कि जीवन जीने का एक तरीका है। मैंने अपनी गलतियों से सीखा है, और अब मैं अपने अनुभवों को अन्य किसानों के साथ साझा करता हूं।”
कैलाश ने जैविक खेती पर कई कार्यशालाओं का आयोजन किया है, जहां वे किसानों को जैविक खाद बनाने, रोग प्रबंधन और टिकाऊ खेती के लिए जागरूक करते हैं।
सरकारी सहायता का अभाव
हालांकि कैलाश ने अभी तक किसी सरकारी योजना का लाभ नहीं लिया है, लेकिन उनका मानना है कि सरकार जैविक किसानों को बढ़ावा देने के लिए और अधिक प्रयास कर सकती है। वे कहते हैं,
“अगर जैविक खेती को सही दिशा में ले जाना है, तो सरकार को किसानों को तकनीकी और वित्तीय सहायता देनी चाहिए।”
भविष्य की योजनाएं
कैलाश का सपना है कि वे अपने खेत को एक मॉडल जैविक फार्म के रूप में विकसित करें। वे अपनी खेती में और अधिक तकनीकी सुधार करना चाहते हैं और आसपास के किसानों को भी जैविक खेती की ओर प्रेरित करना चाहते हैं।
उनका मानना है कि जैविक खेती न केवल पर्यावरण को बचाने का एक तरीका है, बल्कि यह किसानों को आत्मनिर्भर बनाने का एक सशक्त साधन भी है।
निष्कर्ष
कैलाश चंद्र शर्मा की कहानी दिखाती है कि कैसे धैर्य, मेहनत और सही तकनीकों के साथ कोई भी किसान अपनी खेती को लाभकारी बना सकता है। उनकी सफलता इस बात का प्रमाण है कि जैविक खेती, जो कभी एक कठिन रास्ता लगती थी, आज न केवल पर्यावरण के लिए, बल्कि किसानों की आर्थिक स्थिति के लिए भी एक मजबूत समाधान है।
कैलाश का जीवन और उनकी खेती आज के किसानों के लिए एक प्रेरणा है। उनका अनुभव यह संदेश देता है कि अगर हमें टिकाऊ खेती को बढ़ावा देना है, तो हमें जैविक खेती को अपनाने और इसे प्रोत्साहित करने की दिशा में आगे बढ़ना होगा।
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