वर्तमान में देश में लगभग 12.5 करोड़ टन सब्जियों का उत्पादन हो रहा है, जबकि प्रति व्यक्ति प्रति दिन 300 ग्राम की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए आज 13.5 करोड़ टन की ज़रूरत है। देश में फसल की कम उत्पादकता की मुख्य वजह पूरे साल भर वातावरण में तापमान की असमानता है, क्योकि अपने देश में तापमान 05 से लेकर 48 डिग्री सेल्सियस के उच्च स्तर तक रहता है। तापमान में इस तरह की असमानता के कारण साल भर सब्जी की खेती अनकुल नहीं हो पाती। हालांकि, संरक्षित खेती (Protected Farming), सब्जियों की खेती के लिए बेहतर अवसर प्रदान कर रहा है। शुष्क क्षेत्र में प्रोटेक्टेड कल्टीवेशन में पॉलीहाउस और ग्रीनहाउस संरचनाओं में हाईटेक तकनीकों का इस्तेमाल कर गैर-मौसमी सब्जियों को उगाया जा सकता है। इस तकनीक में सब्जियों के विकास और बेहतर उत्पादन के लिए तापमान और नमी को नियंत्रित किया जा सकता है।
बांदा कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के वेजिटेबल डिवीजन के प्रोफेसर राजेश कुमार सिंह कहते हैं कि बुदेंलखंड क्षेत्र बरानी अर्ध-शुष्क क्षेत्र है और इस क्षेत्र की जलवायु बहुत परिवर्तनशील है। इस क्षेत्र में अप्रैल से जुलाई तक गर्म, जुलाई से अक्टूबर तक बरसात और नवंबर से फरवरी तक बहुत ठंडा रहता है। खुले मैदान में सब्जियां उगाना मुश्किल है। लेकिन संरक्षित खेती में जलवायु को फसल के अनुकूल बनाकर उच्च मूल्य वाली फसलों और सब्जियों को आसानी से उगाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि लंबी अवधि की फसलों के बीच एक या दो छोटी अवधि की फसलों को लगा सकते हैं। इस तरह से मल्टीलेयर तकनीक अपनाकर परम्परागत तकनीक की तुलना में पांच से दस गुना अधिक उपज ली जा सकती है।
उच्च मुल्य वाली सब्जियों की खेती के लिए नेचुरल हवादार पॉलीहाउस
प्रोफेसर राजेश कुमार सिंह ने कहा कि बुदेंलखंड क्षेत्र बरानी में नेचुरल हवादार पॉलीहाउस, कीट प्रूफ नेट, ग्रीन शेड नेट और धुंध कक्ष जैसी संरचनाओं ने संरक्षित खेती के उत्साहजनक परिणाम दिए हैं। उन्होंने बताया कि बुंदेलखंड क्षेत्र के लिए संरक्षित कृषि संरचनाओं में विभिन्न सब्जी फसलों को आसानी से उगाया जा सकता है। डॉ. सिंह कहते हैं कि नेचुरल हवादार पॉलीहाउस में 9 से 10 महीने तक की फसलें जैसे बीजरहित खीरा, टमाटर, खरबूजे, और रंगीन शिमला मिर्च की खेती की जा सकती है। नेचुरल हवादार पॉलीहाउस, मैन्युअल रूप से संचालित होता है, जो मध्यम लागत में तैयार हो जाता है। इसकी कीमत एक हाई-टेक पॉलीहाउस से कम और एक शेडनेड से थोड़ी अधिक होती है।

पॉलीहाउस से कम लागत में शेड नेट में करें सब्जियों की खेती
डॉ. राजेश ने कहा कि सूर्य के विकिरण और उच्च तापमान के कारण किसानों के लिए बुदेलखंड क्षेत्र या ड्राई लैंड एरिया में सब्जियों की खेती करना मुश्किल है। किसान सालभर शेड नेट में पुदीना, खीरा, टमाटर, बैगन की खेती कर सकते हैं, जो कम लागत में तैयार हो जाता है। उन्होंने कहा कि बुंदेलखंड जैसे शुष्क क्षेत्रों में यह सूर्य के विकिरण और उच्च तापमान को झेलने में सक्षम है। सामान्य तौर पर शेड नेट-हाउस विभिन्न रंगों के काले, हरे और सफेद रंग के होते हैं। इसमें आप आसानी से सब्जियों और सजावटी फूलों की खेती कर सकते हैं। ग्रीन शेड नेट-हाउस में खीरा अगस्त से नवंबर के अंतिम सप्ताह और फरवरी से मई तक और ककड़ी से लेकर पत्तेदार और जड़ वाली सब्जियों को मई से अगस्त तक उगाया जा सकता है।
कीट प्रूफ नेट-हाउस हेल्दी फल सब्जियां उगाए
डॉ. राजेश कुमार सिंह ने प्रोटेक्टेड कल्टीवेशन के तहत कीट रोधी नेट हाउस यानि कीट प्रूफ नेट-हाउस की जानकारी देते हुए कहा कि इसका उपयोग फसल उत्पादन में कीटनाशकों के प्रयोग को कम करने के लिए किया जाता है। ये हेल्दी सब्जियां और स्वस्थ नर्सरी पौधों को उगाने की एक अच्छी तकनीक है। उन्होंने कहा कि बैंगन, शिमला मिर्च, फूलगोभी, टमाटर, भिंडी, खीरा और पपीते में कीट या वायरस का खतरा अधिक होता है। इन सब्जियों और पौधों के लिए कीट प्रूफ नेट-हाउस एक बेहतर विकल्प है। कीट प्रूफ नेट-हाउस का उपयोग करके कीटों और अन्य वाहक कीटों को प्रभावी ढंग से रोका जा सकता है। कीट प्रूफ नेट-हाउस फसल और खुले वातावरण के बीच एक बीच एक दीवार का काम करती है। अधिकांश उड़ने वाले कीड़ों को नियंत्रित करने के लिए 40 फ़ीसदी शेडनेट हाउस का उपयोग करके कीड़ों को नियंत्रित किया जा सकता है। प्रोटेक्टड कल्टीवेशन की इस संरचना के इस्तेमाल से कीट और रोग प्रबंधन की लागत में काफ़ी कमी आती है।
वॉक इन टनल छोटे किसानों का ग्रीन हाउस
डॉ. राजेश ने बताया कि वॉक इन टनल अस्थायी और कम लागत वाला ढांचा है। 200-माइक्रोन की मोटाई वाली प्लास्टिक को आधे इंच के जीआई पाइप पर खड़ा किया जाता है। इसकी ऊंचाई करीब 2.0-2.5 मीटर और चौड़ाई करीब 4 मीटर होती है। इनके बेड 2 मीटर के बनाए जाते है। वॉक इन टनल सभी प्रकार की फसलों, फूलों और सब्जियों की खेती के लिए उपयुक्त है। ऐसे ढांचे का निर्माण करना कम खर्चीला है। इसलिए इसे आम तौर पर किसानों द्वारा अपनाया जाता है। यह वॉक इन टनल 5 से 6 साल तक आसानी से चल सकता है। अगर जीजीआई पाइप फ्रेम को डिजाइन किया जाए तो यह 20 साल तक चल सकता है। इसमें आमतौर पर टनल में 7 x 30 मीटर या 7 x 36 मीटर की पैदल दूरी होती है। परागण के लिए मधुमक्खियाँ एक सिरे से दूसरे सिरे तक आसानी से उड़ जाती हैं। वॉक-इन टनल का उपयोग सब्जी की खेती की सुरक्षा और गैर-मौसमी खेती के लिए किया जा सकता है। इसमें मुख्य रूप से खीरा, शिमला मिर्च, लेट्यूस, मटर और बीन्स आसानी से उगाए जाते हैं।

लो टनल बेहतर तकनीक
उत्तर भारत में दिसंबर और जनवरी में अधिक ठंडे होती है। तापमान कम होने के कारण बीजों का अंकुरण संभव नहीं हो पाता, जिससे सब्जियों की बुवाई में देरी हो जाती है। इससे किसानों को काफ़ी नुकसान होता है। 2 मिमी एंटी-जंग रॉड जिसे आसानी से घुमाया जाता है या कम तापमान अवरोध का सामना करने के लिए बांस के टुकड़ों पर बनाया जाता है।
इस तकनीक में सबसे पहले नर्सरी बेड बनाए जाते हैं। बांस या लोहे की छड़ों के टुकड़ों को 2-3 फ़ीट ऊंचे अर्धचंद्राकार संरचना बनाकर पारदर्शी पॉलीथीन से ढक दिया जाता है। फसल के शुरुआती चरणों में प्लास्टिक लोटनल बहुत प्रभावी होती हैं, जब फसल में कम तापमान के दबाव को झेलने की ताकत कम होती है। उस समय यह नर्सरी पौधे को सुरक्षा प्रदान करती है। यह पौधों को कठोर जलवायु परिस्थितियों जैसे बारिश, हवा, ओले और बर्फ आदि से बचाती है। मुख्य रूप से नर्सरी के विकास के लिए उपयोग किए जाते हैं और शुरुआती बीज अंकुरण में भी मदद करते हैं। किसान गर्मी के मौसम में टमाटर, मिर्च, खीरा, लौकी, करेला, तरबूज, खरबूजा और ककड़ी सहित गर्मियों की कई सब्जियों को उगा सकते हैं। यह तकनीक भारत के उत्तरी मैदानी इलाकों में रहने वाले किसानों के लिए बेहद उपयुक्त और फ़ायदेमंद है।

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