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बायोफ्लॉक तकनीक (Biofloc Fish Farming) से कम जगह में बंपर मछली उत्पादन, मत्स्य विशेषज्ञ मुकेश कुमार सांरग ने दी पूरी जानकारी

Biofloc Fish Farming के लिए तालाब की ज़रूरत नहीं

बायोफ्लॉक तकनीक (Biofloc Fish Farming) में कम जगह में मछली का बंपर उत्पादन लेकर अच्छी आय कमा सकते हैं। ये तकनीक क्या है? इसमें कितनी लागत लगती है और मुनाफ़ा कितना रहता है? किसान ऑफ़ इंडिया की उत्तर प्रदेश स्थित मत्स्य विभाग विंध्याचल मंडल मिर्ज़ापुर के उपनिदेशक मुकेश कुमार सांरग से ख़ास बातचीत।

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अगर आप मछली पालन को व्यावसायिक रूप से शुरू करना चाहते हैं तो अब परेशान होने की ज़रूरत नहीं है। अब बड़े क्षेत्र में तालाब बनवाने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। आप मछली पालन की नई तकनीक बायोफ्लॉक (Biofloc Fish Farming) को अपनाकर बहुत कम जगह में मछली का बंपर उत्पादन लेकर अच्छी आय कमा सकते हैं। क्या है बायोफ्लॉक तकनीक? इस बारे में किसान ऑफ़ इंडिया ने उत्तर प्रदेश स्थित मत्स्य विभाग विंध्याचल मंडल मिर्ज़ापुर के उपनिदेशक मुकेश कुमार सांरग से ख़ास बातचीत की।

क्या है बायोफ्लॉक तकनीक? (What is Biofloc fish farming?)

मत्स्य विशेषज्ञ मुकेश कुमार सांरग ने बताया कि बायोफ्लॉक तकनीक के तहत टैंकों में मछली पाली जाती है। इसमें तालाब खोदने की ज़रूरत नहीं पड़ती। जिनके पास कम जगह है, वो बायोफ्लॉक तकनीक से मछली पालन कर सकते हैं।

बायोफ्लॉक तकनीक (Biofloc Fish Farming)

मुकेश कुमार सांरग बताते हैं कि इस तकनीक में पानी की बचत के साथ-साथ मछलियों के फीड यानी कि आहार की भी बचत होती है। मछली जो भी खाती है उसका 75 फ़ीसदी वेस्ट के रूप में बाहर निकालती हैं। ये वेस्ट पानी के अंदर ही रहता है। इसी वेस्ट को शुद्व करने के लिए बायोफ्लॉक तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है।

मछलियां जो वेस्ट निकालती हैं, उसको बैक्टीरिया के द्वारा प्यूरीफाई किया जाता है। यह बैक्टीरिया मछली के मल को प्रोटीन में बदल देता है। मछलियां इस प्रोटीन को खा लेती हैं।इस तरह से 1/3 मछली फीड की बचत होती है। अगर तालाब में मछली फीड की तीन बोरी खर्च होती हैं तो इस तकनीक के इस्तेमाल से दो बोरी ही खर्च होंगी।

बायोफ्लॉक तकनीक (Biofloc Fish Farming)

बायोफ्लॉक तकनीक मे कम जगह में अधिक उत्पादन (Production in Biofloc fish farming)

मत्स्य एक्सपर्ट मुकेश कुमार सांरग आगे बताते हैं कि अगर कोई 10 हज़ार लीटर के एक बायोफ्लॉक टैंक में मछली पालन करता है तो उसको पांच महीने में ही 500 किलो तक मछली का उत्पादन मिल जाएगा। जबकि सामान्य तकनीक से मछली का इतना उत्पादन लेने के लिए एक हेक्टेयर के क्षेत्रफल के तालाब की ज़रूरत पड़ती है। उन्होंने बताया कि बायोफ्लॉक तकनीक में चार महीने में केवल एक ही बार पानी भरा जाता है। टैंक में गंदगी जमा होने पर केवल दस प्रतिशत पानी निकालकर दोबारा साफ करके रखा जा सकता है।

इस तकनीक में इस बात का ध्यान रखा जाता है कि इसमें 24 घंटे बिजली की व्यवस्था होनी चाहिए। साथ ही इसमें जो बैक्टीरिया पलता है वो ऐरोबिक बैक्टीरिया है, जिसको 24 घंटे हवा की ज़रुरत होती है तभी वह जीवित रहता है।

बायोफ्लॉक तकनीक (Biofloc Fish Farming)

बायोफ्लॉक में पाली जाने वाली मछली प्रजातियां (Species suitable for Biofloc fish farming)

मत्स्य विशेषज्ञ मुकेश कुमार सांरग ने बताया कि बायोफ्लॉक तकनीक में एक एयरेटर की ज़रूरत होती है। ये पानी में ऑक्सीजन की मात्रा को बढ़ाने में सहायक होता है। टैंकों में पानी की सप्लाई के लिए एक इनलेट पाइप लगा होता है। गंदे पानी को निकालने के लिए एक आउटलेट पाइप टैंक के निचले हिस्से में लगा होता है। टैंक में इनलेट, आउटलेट और एयरेटर सिस्टम को चलाने के लिए 2 एचपी पॉवर सप्लाई की ज़रूरत पड़ती है। उन्होंने बताया कि बायोफ्लॉक तकनीक में तिलापिया, मांगूर, केवो, कामनकार्प जैसी मछलियों का पालन किया जा सकता है।

बायोफ्लॉक तकनीक (Biofloc Fish Farming)
तस्वीर साभार: ICAR

10 हज़ार लीटर वाले बायोफ्लॉक टैंक में 28 से 30 हज़ार का खर्च (Biofloc fish farming cost & profit)

मुकेश कुमार सांरग ने बायोफ्लॉक टैंक बनवाने में लगने वाली लागत के बारे में भी विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि लागत इस बात पर निर्भर करती है कि किस साइज़ का बायोफ्लॉक टैंक बनवा रहे हैं। टैंक का साइज़ जितना बड़ा होगा उसमे पलने वाली मछलियों का विकास भी उतना ही अच्छा होगा। बायोफ्लॉक का 10 हज़ार लीटर क्षमता के टैंक को बनाने में लगभग 28 से 30 हज़ार रुपये का खर्चा आता है। इसमें उपकरण और लेबर चार्ज शामिल है।

बॉयोफ्लाक तकनीक में सिर्फ़ एक बार सीमेंट या प्लास्टिक टैंक बनाने में खर्च आता है। उसके बाद बेहतर प्रबंधन करने पर छह महीने के बाद मछलियों का उत्पादन मिलना शूरू हो जाता है। इस तकनीक में एक लाख रुपये खर्च कर हर साल दो से तीन लाख रुपये की कमाई कर सकते हैं।

बायोफ्लॉक तकनीक (Biofloc Fish Farming)
तस्वीर साभार: ICAR

बॉयोफ्लाक टैंक बनवाने पर सब्सिडी (Subsidy for Biofloc fish farming)

मत्स्य एक्सपर्ट मुकेश कुमार सारंग ने जानकरी दी कि इस तकनीक को अपने घर के आसपास या खेतों में 250 स्कवायर फीट से लेकर 1500 स्क्वायर फीट के सीमेंट टैंक बनवाकर मछली पालन शुरू कर लाभ कमा सकते हैं। बॉयोफ्लाक तकनीक को बढ़ावा देने के लिए सरकार सब्सिडी भी दे रही हैं। अगर कोई आठ टैंकों वाला बॉयोफ्लाक का प्रोजेक्ट लगाता है तो उसे लगभग साढ़े सात लाख का खर्चा आएगा। प्रधानमंत्री संपदा योजना के तहत एससी-एसटी महिलाओं के लिए 60 फ़ीसदी सब्सिडी और अन्य के लिए 40 फ़ीसदी की सब्सिडी प्रस्तावित है।

ये भी पढ़ें- मछली पालन व्यवसाय: RAS तकनीक से 30 गुना बढ़ेगा मछली उत्पादन, नीरज चौधरी से जानिए इस तकनीक के बारे में

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