खरीफ़ फसलों में लगने वाले खरपतवारों की रोकथाम कैसे करें? जानिए कृषि विशेषज्ञ डॉ. संदीप कुमार सिंह से
खरपतवारों की वजह से फसलों को 15 से 70 फ़ीसदी तक नुकसान पहुंचता है
गाजर घास, धतुरा जैसे कुछ ज़हरीले खरपतवार न केवल फसल उत्पादन की गुणवत्ता को कम करते हैं, बल्कि मनुष्यों और पशुओं के स्वास्थ्य के लिए भी खतरा उत्पन्न करते हैं। इसलिए इनके प्रबंधन पर किसानों को विशेष ध्यान देने की ज़रूरत है। खरपतवारों की रोकथाम कैसे करें किसान, इसपर मध्य प्रदेश स्थित कृषि विज्ञान केन्द्र बुराहनपुर के प्रमुख और एग्रोनॉमी के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉ. संदीप कुमार सिंह से खास बातचीत की।
खरपतवारों की रोकथाम: फसलों में लगने वाले खरपतवार कई प्रकार से फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं। किसानों को खरपतवारों से होने वाला नुकसान दिखता नहीं, क्योंकि ये प्रत्यक्ष रूप से नुकसान न पहुंचाकर अप्रत्यक्ष रूप से फसलों को हानी पहुंचाते हैं। खरपतवारों की रोकथाम के लिए कई तरह के प्रबंधन ज़रूरी हैं।
इसके अलावा, गाजर घास, धतुरा जैसे कुछ ज़हरीले खरपतवार न केवल फसल उत्पादन की गुणवत्ता को कम करते हैं, बल्कि मनुष्यों और पशुओं के स्वास्थ्य के लिए भी खतरा उत्पन्न करते हैं। इसलिए इनके प्रबंधन पर किसानों को विशेष ध्यान देने की ज़रूरत है। मध्य प्रदेश स्थित कृषि विज्ञान केन्द्र बुराहनपुर के प्रमुख और एग्रोनॉमी के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉ. संदीप कुमार सिंह से किसान ऑफ़ इंडिया ने खरीफ़ फसलों में लगने वाले खरपतवार और उनके प्रबंधन पर खास बातचीत की।
खरपतवारों से फसलों को नुकसान
डॉ. संदीप कुमार सिंह कहते हैं कि खरपतवार वे पौधे होते हैं, जिनकी खेत में ज़रूरत नहीं होती यानी ये किसानों के लिए अनचाहे पौधे होते हैं। ये बिना बोए अपने आप उग जाते हैं। ये खरपतवार फसलों को 15 से लेकर 70 फ़ीसदी तक नुकसान पहुंचाते हैं। इसके साथ-साथ खरपतवार और कीटों को भी आश्रय देकर फसलों को हानी पहुंचाते हैं।
डॉ. संदीप कुमार सिंह ने बताया कि खरपतवारों द्वारा फसल में होने वाला नुकसान, फसल, मौसम तथा खरपतवारों के प्रकार और उनकी संख्या पर निर्भर करती है। वहीं फसलों में किसी भी अवस्था में खरपतवार नियंत्रण करने पर समान रूप से लाभ नहीं मिल पाता है। इसलिए प्रत्येक फसल के लिए खरपतवारों की उपस्थिति के कारण सर्वाधिक हानि होने की अवधि निर्धारित की गई है। इस अवस्था को खरपतवार प्रबंधन के लिहाज से क्रांतिक अवस्था कहते हैं।
खरीफ़ फसलों में लगने वाले खरपतवार
कृषि वैज्ञानिक डॉ. संदीप कुमार सिंह ने बताया कि खरीफ़ में उगाई जाने वाली अनाज वाली फसलें धान, बाजरा, ज्वार और मक्का हैं। नकदी फसलों के रूप में ग्वार, कपास और गन्ना लगाया जाता हैं। वहीं तिलहनी फसलों के रूप में मूंगफली, सोयाबीन और तिल को लगाया जाता है। दलहनी फसलों के रूप में किसान मूंग, मोठ, उड़द, लोबिया और अरहर लगाते हैं। साथ ही चारे के लिए किसान ज्वार, बाजरा और लोबिया को मुख्य रूप से उगाते हैं।
बाजरा, ज्वार, मक्का, ग्वार, मूंगफली, कपास और दलहनी फसलों में उगने वाले प्रमुख खरपतवार चौलाई, भंगड़ा, स्ट्राइगा, मकड़ा, विस खपरा, हजारदाना, जंगली जूट, दूधी, हुलहुल, लूनिया और सैंजी हैं। वहीं, धान की फसल को हानि पहुंचाने वाले मुख्य खरपतवार महकुआ, काला भंगरा, डिल्ला, डिल्ली, मोथा, दूब घास, जलकुंभी, बड़ी दुधी, पत्थरचट्टा, हाइड्रिला, लुनिया, मकरा, जंगली नील, बंदरा बंदरी, साठी और कंटीली चौलाई इत्यादि हैं।
खरपतवारों का प्रबंधन कब और कैसे?
डॉ. संदीप के अनुसार, आधुनिक कृषि में खरपतवारों की रोकथाम के लिए मुख्य रूप से खरपतवार नाशक दवाईयों से किया जाता है, क्योंकि इसमें समय कम लगता है और इनका प्रयोग भी आसान हैं। लेकिन इन रसायनों का पर्यावरण पर बूरा असर पड़ता है, इसलिए खरपतवार नियंत्रण के दूसरे तरीकों को प्रयोग में लाना लम्बे समय तक ज़्यादा उपयोगी और प्रभावी होता है। इनमें मुख्य रूप से फसल चक्र होता है, क्योंकि खरपतवार नियंत्रण में फसल चक्र सबसे ज़्यादा उपयोगी रहा हैं।
इसके अतिरिक्त ग्रीष्मकाल में गहरी जुताई, फसल की लाइनों में बुवाई, बुवाई का सही समय, फसलों को मिलाकर बोना, फसलों की सघन बुवाई, शीघ्र बढ़ने वाली फसलें बोना, पॉलिथीन या फसल अवशेष की मल्चिंग, खरपतवार बीज मुक्त शुद्ध बीज की बुवाई, समय पर निराई-गुड़ाई करना चाहिए। इन गतिविधियों को अपनाकर खरपतवारों से फसल को बचाया जा सकता हैं और अधिक उत्पादन लिया जा सकता है।
धान की फसल में खरपतवार नियंत्रण के लिए कोनोबीडर का करें इस्तेमाल
कृषि वैज्ञानिक डॉ. संदीप ने बताया कि खड़ी फसल को खरपतवार से बचाने के लिए बुवाई के 20 से 25 दिन पर खुरपी अथवा हैण्ड हो से पहली गुड़ाई करनी चाहिए। इसके बाद आवश्यकता हो तो 40 से 45 दिन पर दूसरी निराई-गुड़ाई कर किसान फसल को खरपतवारों से मुक्त रख सकते हैं। लाइन से रोपी गई धान फसल में कोनोवीडर से खरपतवार को निकालकर नियंत्रण किया जा सकता है।
अगर धान की सीधी बुवाई ड्रम सीडर या सीडड्रील से हुई है तो कोनोवीडर से खरपतवार को असानी से निकाला जा सकता है। कोनोवीडर का प्रयोग धान की फसल में पहली बार रोपाई के 20 दिनों बाद, दूसरी बार रोपाई के 50-60 दिनों के बाद करना चाहिए। ये ध्यान रहे कि यूरिया के ट्राप ड्रेसिंग के पहले किया जाना चाहिए। एक या दो मज़दूर के सहारे कोनोवीडर से कई एकड़ धान की फसल से खरपतवार निकाल सकते हैं।
खरपतवारों की रोकथाम के लिए खरपतवारनाशी रसायनों का प्रयोग
धान की फसल को खरपतवारों से बचाने के लिए रोपाई के समय ब्यूटाक्लोर 1 लीटर प्रति एकड़ सक्रिय तत्व का छिड़काव 200 लीटर पानी में घोलकर करने से लगभग 20 से 25 दिनों तक खरपतवार नहीं उगते हैं। चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों के नियंत्रण के लिए 400 ग्राम 2, 4-D का प्रति एकड़ बुवाई के 30-35 दिन बाद छिड़काव किया जा सकता है। बाजरे में खरपतावार प्रबंधन के लिए बुवाई के बाद 400 ग्राम एट्राजीन को 250 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ में छिड़काव करें या फिर अंकुरण से पहले 300 ग्राम पेंडिमेथालिन का छिड़काव करें।
ज्वार और मक्का के लिए 400 ग्राम एट्राजीन को 250 से 300 लीटर पानी में मिलाकर बुवाई के तुरन्त बाद छिड़काव करें। चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों की रोकथाम के लिए पेंडिमेथालिन 600 से 800 ग्राम प्रति एकड़ का अकुंरण से पहले प्रयोग करें। रेतीली ज़मीन में रसायनों का कम और मध्यम से भारी ज़मीन में अधिक मात्रा का प्रयेाग करना चाहिए। ग्वार में रासायनिक खरपतवार नियंत्रण के लिए फ्लूक्लोरेलिन या ट्रेफ्लान या ट्राईफ्लूरेलिन 300 ग्राम सक्रिय तत्व प्रति एकड़ की दर से फसल की बुवाई से पहले खेत में छिड़क कर मिट्टी में मिला देना चाहिए।
सकरी पत्ती वाले और चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों की रोकथाम के लिए पेंडिमेथालिन 400 से 600 ग्राम प्रति एकड़ सक्रिय तत्व अकुंरण से पहले प्रयोग किया जा सकता है।
कपास में रासायनिक खरपतवार नियंत्रण के लिए फ्लूक्लोरेलिन 400 किलोग्राम सक्रिय तत्व प्रति एकड़ बुवाई से पहले मिट्टी में मिलाएं। पेंडिमेथालिन 400 ग्राम सक्रिय तत्व, डाइयूरान 200 ग्राम सक्रिय तत्व प्रति एकड़ बुवाई के बाद, लेकिन अंकुरण से पहले प्रयोग कर के खरपतवार नियंत्रण किया जा सकता हैं।
दलहनी फसलों को खरपतवारों से बचाने के लिए एलाक्लोर खरपतवार 300 ग्राम सक्रिय तत्व को प्रति एकड़ की दर से 250 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करने पर सभी प्रकार के खरपतवारों को नष्ट किया जा सकता हैं।
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