Green Fodder Cultivation: हरे चारे की खेती ने कैसे बदली तटीय भारत के डेयरी किसान की ज़िंदगी

हरे चारे की खेती (Green Fodder Cultivation) ने कर्नाटक के डेयरी किसानों को चारे की कमी और उच्च लागत से निजात दिलाई, साथ ही उनकी आय और मवेशियों की सेहत में सुधार किया।

Green Fodder Cultivation हरे चारे की खेती

कर्नाटक के तटीय क्षेत्र में डेयरी किसानों को हरे चारे की भारी कमी का सामना करना पड़ता है। यह समस्या इन किसानों के लिए दिन-ब-दिन बड़ी होती जा रही है, क्योंकि वे मुख्य रूप से आसपास के जिलों से (जो 200 किलोमीटर या उससे अधिक दूर होते हैं) धान की पुआल खरीदने पर निर्भर रहते हैं। चारा प्राप्त करना और उसे सही तरीके से इकट्ठा करना एक बड़ा चुनौतीपूर्ण काम बन जाता है। इसके साथ ही, समय पर चारा पहुंचाना और परिवहन की अधिक लागत भी किसानों के लिए अतिरिक्त कठिनाइयां पैदा करती है।

इस समस्या का सबसे बुरा असर मवेशियों की सेहत और उत्पादकता पर पड़ता है, क्योंकि कमजोर चारा संसाधनों के कारण उनके लिए पर्याप्त पोषण मिलना मुश्किल हो जाता है। यह स्थिति विशेष रूप से उन किसानों के लिए अधिक गंभीर हो जाती है, जिनके पास सीमित भूमि और संसाधन होते हैं। इसी समस्या का सामना कर रहे थे होनावर के एक किसान, जो मलनाड़ गिद्डा नस्ल के दो छोटे स्वदेशी मवेशी पालते थे।

हरे चारे की खेती में सुधार के लिए तकनीकी मदद (Technical help for improving Green Fodder Cultivation)

इन गंभीर समस्याओं का समाधान खोजने के लिए, अप्रैल 2022 में किसान को सीओ-5 (हाइब्रिड नेपियर) की 350 जड़ कलमें दी गईं। इन कलमों को उन्होंने 1000 वर्ग मीटर क्षेत्र में रोपित किया। इससे न सिर्फ़ चारे की समस्या का समाधान हुआ, बल्कि हरे चारे की खेती (Green Fodder Cultivation) में आत्मनिर्भरता की दिशा में भी एक अहम कदम उठाया गया। इसके साथ ही, किसान को हरे चारे की खेती पर वैज्ञानिक तकनीकी मार्गदर्शन भी प्राप्त हुआ, जिससे उन्हें खेती के बेहतर तरीके और अधिक उत्पादन के लिए सही दिशा मिली।

हरे चारे की खेती से आत्मनिर्भरता (Self-reliance through Green Fodder Cultivation)

जुलाई 2022 से, किसान प्रतिदिन लगभग 3-5 किलोग्राम ताजे हरे चारे की कटाई करने लगे। उन्होंने बाहर से चारा खरीदना पूरी तरह से बंद कर दिया और अब वे पूरी तरह से हरे चारे की खेती (Green Fodder Cultivation) में आत्मनिर्भर हो चुके हैं। इस बदलाव से न सिर्फ़ उनकी चारा आपूर्ति सुनिश्चित हुई, बल्कि वे अब अपने मवेशियों को ताजे और पोषक हरे चारे से भी अच्छी तरह से पोषित कर पा रहे हैं, जिससे उनकी पशुओं की उत्पादकता में भी वृद्धि हुई है।

उनकी एक गाय दुधारू है, जो प्रतिदिन चार लीटर दूध देती है, जिसे वे घी बनाने के लिए इस्तेमाल करते हैं। यह घी फिर उपभोक्ताओं को बेचने के लिए बाजार में उपलब्ध होता है। इसके परिणामस्वरूप, वे अब प्रति माह 8,000 रुपये का शुद्ध लाभ कमा रहे हैं। साथ ही, उन्होंने अपने खेत पर प्रति माह 50 श्रम दिवस का रोज़गार भी सृजित किया है, जिससे न सिर्फ़ उनका परिवार बल्कि आस-पास के लोग भी फायदा उठा रहे हैं।

ऊर्जा की बचत और बायोगैस का उपयोग (Energy Saving and Use of Biogas)

हरे चारे की खेती (Green Fodder Cultivation) का एक और बड़ा लाभ यह हुआ कि अब वे अपने पशु गोबर से बायोगैस उत्पन्न करते हैं, जो उनके रोज़ाना के पाक उपयोग के लिए पर्याप्त है। इस प्रक्रिया से वे एलपीजी सिलेंडर के खर्च पर प्रति वर्ष 8,000 रुपये की बचत कर रहे हैं, जिससे न केवल उनके खर्चे घटे हैं, बल्कि यह उन्हें और अधिक आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बना रहा है।

समुदाय में हरे चारे की खेती का प्रसार (Spreading Green Fodder Cultivation in the Community)

इस सफलता के बाद, किसान ने अपने आस-पास के लगभग 10 किसानों को हरे चारे के बीज दिए। इस प्रकार, उन्होंने इस उन्नत किस्म के हरे चारे को आसपास के क्षेत्रों में फैलाया, जिससे अधिक किसानों को इस तकनीकी हस्तक्षेप का लाभ मिला। इस कदम से न केवल उनकी अपनी आय में वृद्धि हुई, बल्कि पूरे समुदाय में हरे चारे की खेती (Green Fodder Cultivation) को भी बढ़ावा मिला।

हरे चारे की खेती से सीख और संदेश (Lessons and Messages from Green Fodder Cultivation)

यह कहानी साबित करती है कि सही तकनीकी हस्तक्षेप और नवाचार से एक किसान का जीवन बदल सकता है। हरे चारे की खेती (Green Fodder Cultivation) ने इस किसान को न केवल आत्मनिर्भर बनाया, बल्कि उनकी आय में भी वृद्धि की है। यह एक ऐसा मॉडल है जो अन्य किसानों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन सकता है।

किसान की यह यात्रा यह दिखाती है कि कृषि में नवाचार और वैज्ञानिक दृष्टिकोण किस तरह से छोटे बदलावों से पूरे कृषि परिदृश्य को बदल सकते हैं। उनका अनुभव यह प्रमाणित करता है कि स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार समाधान ढूंढने और उन्हें लागू करने में कितनी क्षमता छिपी हुई है।

हरे चारे की खेती का भविष्य (The Future of Green Fodder Cultivation)

कृषि क्षेत्र में एक बड़ा बदलाव लाने के लिए हरे चारे की खेती (Green Fodder Cultivation) की दिशा में किए गए प्रयासों ने यह साबित कर दिया है कि यह तकनीकी हस्तक्षेप अन्य किसानों के लिए भी एक आदर्श बन सकता है। यदि अधिक किसान हरे चारे की खेती (Green Fodder Cultivation) की दिशा में कदम बढ़ाते हैं, तो इससे न केवल उनकी आय में वृद्धि होगी, बल्कि पशुओं की सेहत और उत्पादकता में भी सुधार होगा।

इसमें कोई संदेह नहीं कि हरे चारे की खेती (Green Fodder Cultivation) एक महत्वपूर्ण कदम है, जो डेयरी किसानों को आत्मनिर्भर बनाने के साथ-साथ पूरे क्षेत्र के कृषि परिदृश्य को भी बदल सकता है।

निष्कर्ष (Conclusion)

यह कहानी हमें यह सिखाती है कि नवाचार और तकनीकी हस्तक्षेप के साथ कृषि क्षेत्र में बदलाव संभव है। हरे चारे की खेती (Green Fodder Cultivation) जैसे उपाय न केवल किसानों को आत्मनिर्भर बनाने में मदद करते हैं, बल्कि उनके जीवन स्तर में भी सुधार लाते हैं। यदि अन्य किसान भी इस दिशा में कदम बढ़ाएं, तो यह भारतीय कृषि के लिए एक नया मोड़ साबित हो सकता है।

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सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगो तक पहुँचाएंगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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