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मछली पालन (Fish Farming) का व्यवसाय करने के लिए उन्नत तरीके से हैचरी तैयार करना बहुत ज़रूरी है। क्योंकि तभी किसानों को गुणवत्ता वाले बीज मिलेंगे। क्या है उन्नत हैचरी तैयार करने की तकनीक, कैसे करें उसका प्रबंधन और प्रजनन के लिए कैसे करें नर-मादा मछली की पहचान। इन सभी सवालों के जवाब जानने के लिए किसान ऑफ इंडिया के संवाददाता सर्वेश बुंदेली ने बात की पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय के कॉलेज ऑफ फिशरिज़ के डॉ. अनूप सचान से।
किसानों को आधारभूत जानकारी देना
डॉ. अनूप सचान बताते हैं कि पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय में एक शैक्षणिक मत्स्य फार्म है जिसमें किसानों को मछली पालन (Fish Farming) का प्रशिक्षण दिया जाता है। उन्हें मत्स्य बीज उपलब्ध कराए जाते हैं। किसानों को बताया जाता है कि मत्स्य बीज कैसे तैयार करें, इसके लिए क्या बेसिक सावधानी बरती जाए, प्रजनक को कैसे तैयार किया जाता है आदि। विश्वविद्यालय में 13 हेक्टेयर का फिश फार्म है, जिसमें 5 हेक्टेयर में कमर्शियल मछली पालन (Fish Farming) किया जाता है यानी मछलियों का उत्पादन बेचने के लिए किया जाता है।
प्रजनकों को अलग करना
जो किसान मछली पालन (Fish Farming) के लिए हैचरी तैयार करना चाहते हैं, उन्हें प्रजनकों को पहले अलग करने की जरूरत होती है। डॉ. अनूप कहते हैं कि सबसे पहले वो लोग अच्छे प्रजनक को अलग करते हैं, जिनका वज़न 1-2 किलो होता है। उन्हें छांटने के बाद भोजन दिया जाता है। भोजन तैयार करने के लिए 40 प्रतिशत सरसों की खली, 40 प्रतिशत राइस ब्रान, 10 प्रतिशत मोटा अनाज (मक्का, ज्वार, बाजरा, जौ) और 10 प्रतिशत फिश मील मिलाकर भोजन तैयार किया जाता है। ये भोजन प्रजनक मछलियों को दिया जाता है जिससे उनका विकास अच्छा होता है। हैचरी वाले तालाब में समय-समय पर चूना, जियोलाइट डाला जाता है ताकि पानी में रोग न रहे।
नर-मादा मछली की पहचान
डॉ. अनूप सचान कहते हैं कि अभी उनके पास जो दो उन्नत प्रजातियां हैं, जयंती रोहू और कॉमन कार्प की आमुर कार्प। आमुर कार्प के प्रजनन का समय फरवरी के आखिर हफ्ते में होता है, तो पहले उनका प्राकृतिक प्रजनन कराया जाता है। इसमें संचय तालाब में एक बड़ा सा हापा बांध दिया जाता है, फिर उसमें प्रजनक जाल चलाकर अच्छे प्रजनकों को छांट देते हैं।
प्रजनक की पहचान करना थोड़ा मुश्किल होता है कि कौन नर है और कौन मादा। तो इसके लिए मछली के पेक्टोरल फिन को छूकर रगड़ा जाता है, अगर वो खुरदरा है तो मछली नर है और चिकना है तो मादा है। इसके अलावा प्रजनन के समय मादा मछली के पेट का हिस्सा फूला होता है, नर का शरीर सिलेंडरिक होता है। मगर ये पहचान सिर्फ़ प्रजनन के समय ही की जा सकती है, बाकी समय उसके फिन यानी पंखों को छूकर ही पहचाना जाता है।
परिपक्वता की पहचान
हैच करने के लिए परिपक्व मछलियों की पहचान भी ज़रूरी है। इस बारे में डॉ. अनूप सुझाव देते हैं कि मछलियों की परिपक्वता को पहचानने के लिए नर मछली को हल्का दबाते हैं तो उसमें से मेल्ट निकलता है, जिसे सिमेन या स्पर्म भी कहते हैं। वहीं मादा मछली जहां से अंडे देती है वो हिस्सा फूला हुआ लाल रंग का हो जाता है और हल्का दबाने पर एक-आध अंडा निकलता है।
फिर इसमें जेली घास डाल देते हैं। अमुर कार्प जब अंडे देती है तो वो इसी घास में चिपक जाते हैं, फिर हम उस घास को हैचरी टैंक में डाल देते हैं और यहां बच्चे होते हैं। ये अंडे 30 घंटे में हैच हो जाते हैं जिससे जीरा मछली पैदा होती है। इन्हें 3 दिन तक हैचरी में ही रखा जाता है। 3 दिन बाद इन्हें प्राकृतिक भोजन की ज़रूरत होती है तो इन्हें नर्सरी तालाब तैयार करके डाला जाता है, उसमें प्लैंकटन भी तैयार करते हैं, जोकि मछली का प्राकृतिक भोजन है।
प्लैंकटन दो तरह के होते हैं एक जंक प्लवक और वनस्पति प्लवक। इसमें से वनस्पति तैयार करने के लिए थोड़ा गोबर लिया जाता है और उसमें थोड़ी-सी सरसों की खली और थोड़ा गुड़ मिलाया जाता है। एक टब के एक तिहाई हिस्से को इस मिश्रण से भरा जाता है और बाकी पानी भरकर रखा जाता है। पानी से भरने के बाद उसमें 8-10 दिन में प्लैंकटन तैयार हो जाता है, फिर इसे तालाब में डाल देते हैं जिससे मछली के बच्चे के लिए प्राकृतिक भोजन तैयार हो जाता है। फिर जब ये अंगुली के साइज की हो जाती है, तो किसान को बेच दी जाती है।
हैचरी की ट्रेनिंग
डॉ. सचान का कहना है कि विश्वविद्यालय में किसानों को 10 दिन की हैचरी की ट्रेनिंग दी जाती है। जिसमें मछली पालन (Fish Farming), मछली उत्पादन, मछली के उत्पाद बनाना, उससे क्या-क्या प्रोडक्ट बनते हैं, मछली के बच्चे कैसे बनते हैं आदि की जानकारी दी जाती है। कुछ किसान यहां से मछली के बच्चे भी ले जाते हैं, ट्रेनिंग के बाद अमुर कार्प और कतला का बच्चा बिहार के किसान बड़ी संख्या में ले जाते हैं। यहां उन्हें मछली के बच्चों की सही तरीके से पैकिंग करना भी सिखाया जाता है।
इन बातों का ध्यान रखें किसान
डॉ. सचान बताते हैं कि किसानों को सबसे पहले तो प्रजनक तैयार करना होगा। इसके लिए स्वस्थ मछली को एक अलग तालाब में रखें, फिर पानी, भोजन की व्यवस्था करें। फिर जब सीजन की पहचान करें कि मछली कब अंडे देने वाली है या कब उनका प्रजनन होता है। अधिकांश मछलियां मानसून सीजन में अंडे देती हैं, लेकिन अमुर कार्प सबसे पहले अंडे देना शुरू कर देती है। तो फरवरी के आखिर हफ्ते में मछलियों पर नज़र रखी जाती है, जब मछली चलने लगती है जहां घास होती है, और वो उथल-पुथल मचाने लगे तो समझ लें कि वो अंडे देने वाली है। फिर उसे बाहर निकालकर प्रजनन कराया जाता है।
कृत्रिम प्रजनन
डॉ. अनूप सचान आगे कहते हैं कि अप्रैल-मई के महीने में ग्रास कार्प और सिल्वर कार्प अंडे देती हैं। उनका कृत्रिम प्रजनन कराया जाता है। इसके लिए नर-मादा मछली को लाकर एक तालाब में डालकर ऊपर से फव्वारा चला देते हैं ताकि उन्हें बरसात का एहसास हो, जिससे वो जल्दी अंडे देने के लिए परिपक्व हो जाती हैं। फिर उन्हें इंजेक्शन दिया जाता है, इससे मछली 10-12 घंटे बाद अंडे देती है। फिर अंडे को हैच किया जाता है। रोहू, कतला और नैन मछली मई-जून-जुलाई और अगस्त तक प्रजनन करती हैं।
अगर आप भी मछली पालन (Fish Farming) का व्यवसाय करना चाहते हैं तो हैचरी से लेकर मछलियों के प्रजनन काल के बारे में पूरी जानकारी होना ज़रूरी है। मछली पालन (Fish Farming) एक लाभदायक व्यवसाय है, लेकिन इसमें सही तकनीक और प्रबंधन की आवश्यकता होती है।
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