अगर आप अतिरिक्त आमदनी के लिए मछली पालन करना चाहते हैं, तो आप एक छोटे से तालाब से भी मछली पालन की शुरुआत कर सकते हैं, लेकिन आपके लिए ये जानना ज़रूरी है कि मछली पालन की लागत का एक बड़ा हिस्सा मछलियों के आहार पर खर्च होता है।
एक अनुमान के मुताबिक, लागत का 40 से 60 फ़ीसदी हिस्सा आहार पर खर्च होता है। इससे मुनाफ़े में कमी आती है। ऐसी स्थिति में मछली पालक उपलब्ध स्थानीय सामग्री का इस्तेमाल करके तालाब पर ही मछलियों के लिए भोजन तैयार कर सकते हैं। इससे मछलियों को पौष्टिक आहार मिलेगा और लागत में भी कमी आएगी।
पारंपरिक आहार नहीं है काफ़ी
मछली पालक आमतौर पर मछलियों को सरसों और मूंगफली की खली, चावल और गेहूं की भूसी खिलाते हैं। ये आहार बहुत पौष्टिक नहीं होते हैं, जिससे मछलियों का तेज़ी से विकास नहीं हो पाता है और पानी की गुणवत्ता पर भी असर पड़ता है। किसान अपनी लागत कम करने और पानी को प्रदूषित होने से बचाने के लिए तालाब पर ही आहार बना सकते हैं। इसमें स्थानीय रूप से उपलब्ध सामग्री का ही इस्तेमाल किया जाता है। वो छोटे पैमाने पर आहार का उत्पादन कर सकते हैं। वो लोई, पिंड या सूखे पिलेट्स के रूप में मछलियों के लिए आहार तैयार कर सकते हैं, जो बाज़ार में उपलब्ध आहार से सस्ते होते हैं।
आहार के लिए ज़रूरी सामग्री
पौष्टिक आहार के लिए प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन और खनिजों का मिश्रण ज़रूरी होता है। प्रोटीन के स्रोत के रूप में मछली का आटा, सोयाबीन का आटा, सरसों की खली, मूंगफली की खली, तिल की खली, अलसी की खली, रेशम कीट के प्यूपा का इस्तेमाल किया जा सकता है। जबकि कार्बोहाइड्रेट के स्रोत के रूप में चावल का चोकर, चावल की भूसी, गेहूं की भूसी, गेहूं का आटा, मकई के आटे का उपयोग किया जा सकता है। विटामिन और खनिज लवणों के लिए बाज़ार उपलब्ध इनके मिश्रण का उपयोग किया जा सकता है।

आहार मिश्रण या सूत्रीकरण
तालाब पर आहार बनाने के लिए स्थानीय रूप से उपलब्ध सामग्री को एक खास अनुपात में मिलाया जाता है। जैसे- सरसों/मूंगफली की खली और चावल/गेहूं की भूसी 1:1 या 3:2 या 7:3 के अनुपात में मिलाया जाता है। सरसों की खली, चावल की भूसी और अलसी/सूरजमूखी के बीज की खली 4:5:1 के अनुपात में मिलाया जाता है। सूरजमुखी की खली, चावल की भूसी और रेशम कीट प्यूपा 13:6:1 अनुपात में मिलाया जा सकता है। सरसों/तिल/सूरजमुखी के बीज की खली, चावल की भूसी और रेशम कीट प्यूपा 9:3:7:1 अनुपात में मिलाया जा सकता है। वसा की मात्रा बढ़ाने के लिए 2-4 प्रतिशत वनस्पति तेल मिलाया जा सकता है।
आहार बनाने का तरीका
कुचला हुआ आहार- इसके लिए आहार मिश्रण के मुताबिक सामग्री एकत्र करके उन्हें पीसकर पाउडर बनाया जाता है और इसे हाथ से मिलाया जाता है। फिर इसे एयरटाइट थैलों में भरकर रखा जाता है। ये आहार हाथ से या बोरी में भरकर आहार खिलाने की विधि के अनुसार तालाब में डाला जाता है।
पिलेट्स आहार- पिलेट्स बनाने के लिए सबसे पहले आहार सूत्रीकरण करना होता है। इसके बाद सभी सामग्री को पीसकर पाउडर बनाया जाता है। नमी के लिए थोड़ा पानी डालकर अच्छी तरह मिलाया जाता है। इसे एक बर्तन में डालकर आग पर पकाया जाता है। पकने के बाद इसे ठंडा किया जाता है और हाथ से चलने वाले या मोटर से चलने वाले पिलेटाइज़र मशीन की मदद से इसके पिलेट्स बनाए जाते हैं। फिर इसे धूप में सुखाकर स्टोर किया जाता है।
गीला पिंड- एकत्रित सामग्री को पीसा जाता है और थोड़ा सा पानी मिलाकर लोई बनाई जाती है। फिर लोई से छोटी-छोटी गोलिया बनाकर मछलियों को दी जाती है। इस आहार को लंबे समय तक स्टोर नहीं किया जा सकता, क्योंकि ये जल्दी खराब हो जाता है।
पकी हुई लोई- गीला पिंड की तरह मिश्रण को मिलाया जाता है और फिर एक बर्तन में रखकर इसे पकाया जाता है। पकने के बाद पकी हुई लोई को सीधे तालाब में मछलियों के भोजन के रूप में डाला जा सकता है।
गीला आहार- ऐसा आहार मुख्य रूप से मांसाहारी मछलियों को खिलाया जाता है। इसे सीधे ही मछलियों को खिलाया जाता है। गीले आहार में कचरा मछली, मत्स्य पालन अपशिष्ट, मांस अपशिष्ट आदि का इस्तेमाल किया जाता है।
छोटे किसान जो बाज़ार से मछलियों का आहार खरीद नहीं सकते, वो इस तरीके से तालाब पर ही मछलियों का आहार तैयार कर सकते हैं।

ये भी पढ़ें: मछली के साथ बत्तख पालन यानी दोगुना लाभ, एक्सपर्ट एनएस रहमानी से जानिए कैसे शुरू करें Fish Cum Duck Farming
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

ये भी पढ़ें:
- कैसे WDRA और उसके डिजिटल सारथी – e-NWR, e-Kisan Upaj Nidhi भारतीय किसानों की बदल रहे तकदीरवेयरहाउसिंग डेवलपमेंट एंड रेगुलेटरी अथॉरिटी (Warehousing Development and Regulatory Authority) यानी WDRA और उसके डिजिटल सारथी – e-NWR (Electronic Negotiable Warehouse Receipt) और e-Kisan Upaj Nidhi (eKUN) – एक क्रांतिकारी बदलाव की नींव रख रहे हैं।
- कश्मीर में आधुनिक मृदा परीक्षण प्रयोगशाला का शुभारंभ: वैज्ञानिक खेती की दिशा में बड़ा कदमश्रीनगर में शुरू हुई अत्याधुनिक मृदा परीक्षण प्रयोगशाला से किसानों को मिलेगा मिट्टी परीक्षण, उर्वरक योजना और वैज्ञानिक खेती का लाभ।
- AI Playbooks for Agriculture and SMEs लॉन्च, भारत में एआई के ज़रिए कृषि में क्रांति!भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार प्रो. अजय कुमार सूद ने देश में AI को बढ़ावा देने के लिए तीन AI Playbooks for Agriculture and SMEs लॉन्च की है।
- प्रति फसल 2000 रुपये, एटा में National Mission on Natural Farming बदल रहा तस्वीरसरकार प्राकृतिक खेती करने वाले किसानों को प्रति फसल 2,000 रुपये की आर्थिक सहायता प्रदान कर रही है।
- NABARD की प्लानिंग: अब दूध, मछली और झींगा पालन वालों को भी मिलेगा मौसम बीमा, जानिए कैसे बदलेगी किसानों की तकदीरNational Bank for Agriculture and Rural Development यानी NABARD, एक ऐसी क्रांतिकारी पहल पर काम कर रही है जो कृषि बीमा (Agricultural Insurance) के दायरे को बदल कर रख देगी। अब मौसम आधारित बीमा का फायदा सिर्फ फ़सल उगाने वाले किसानों को ही नहीं मिलेगा बल्कि डेयरी फार्मिंग, मत्स्य पालन और झींगा पालन जैसे कृषि से संबंधित क्षेत्रों में काम करने वाले लाखों लोग भी इसके दायरे में आ जाएंगे।
- GM Crops And Agricultural Biotechnology: कैसे जैव प्रौद्योगिकी खोल रही है किसानों के लिए सफलता के दरवाज़ेजीएम तकनीक एक शक्तिशाली उपकरण है। इसके सही इस्तेमाल से भारत अपनी खाद्य सुरक्षा मजबूत कर सकता है, किसानों की आय बढ़ा सकता है और जलवायु परिवर्तन जैसी चुनौतियों से निपट सकता है।
- उत्तर प्रदेश सरकार किसानों को आधुनिक कृषि यंत्रों पर दे रही भारी सब्सिडी, जानिए अप्लाई करने की लास्ट डेट‘कृषि यंत्रीकरण योजना’ (Krshi Yantreekaran Yojana) के तहत प्रदेश के किसानों को अब आधुनिक कृषि उपकरण (modern agricultural equipment) भारी सब्सिडी पर मिलेंगे। ये सिर्फ एक घोषणा नहीं, बल्कि खेती के तरीके में क्रांतिकारी बदलाव लाने वाला एक ठोस कदम है।
- क्या आपका दूध और पनीर है असली, या ‘सिंथेटिक’? AI बेस्ड Traceability System ला रहा क्रांतिकारी बदलावट्रेसेबिलिटी सिस्टम (traceability System) की रीढ़ अब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस बन गई है। डेयरी और पशुपालन का क्षेत्र अब पुराने ढर्रे से बाहर निकल रहा है, जहां कभी कहीं भी एक जगह डेटा स्टोर नहीं होता था। आज एआई की मदद से हर पशु, हर दिन, हर मिनट का डेटा रिकॉर्ड किया जा रहा है। ये एक क्रांतिकारी बदलाव लेकर आया है।
- Northeast India जैविक क्रांति की ओर आगे बढ़ रहा: MOVCD-NER स्कीम ने बदली पूर्वोत्तर भारत के किसानों की तकदीरनॉर्थईस्ट भारत (Northeast India) में लंबे वक्त तक पारंपरिक खेती और उपज का सही बाज़ार न मिल पाने के कारण यहां के किसानों की स्थिति मज़बूत नहीं हो पा रही थी। इन्हीं चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार ने 2015-16 में ‘मिशन ऑर्गेनिक वैल्यू चेन डेवलपमेंट फॉर नॉर्थ ईस्टर्न रीजन’ (MOVCD-NER) की शुरुआत की।
- Kerala State’s Digital Move: किसानों की किस्मत बदलने को तैयार Digital Crop Survey, होगी रीयल-टाइम डेटा एंट्रीडिजिटल क्रॉप सर्वे (Digital Crop Survey) पारंपरिक रेवेन्यू रिकॉर्ड पर निर्भरता को खत्म करने वाली एक आधुनिक प्रोसेस है। ये केवल रिकॉर्ड करने तक सीमित नहीं है कि जमीन खेती के अंदर आती है या नहीं, बल्कि ये फसल के प्रकार, सिंचाई की स्थिति, भूमि की गुणवत्ता और कुल क्षेत्रफल जैसे micro data को डिजिटल रूप से इकट्ठा करता है।
- प्राकृतिक खेती के ज़रिए हिमाचल की महिला किसान श्रेष्ठा देवी ने अपने जीवन की बदली दिशाश्रेष्ठा देवी ने प्राकृतिक खेती अपनाकर पहाड़ों में कम ख़र्च में अधिक मुनाफ़ा कमाने की मिसाल पेश की है, जिससे कई महिलाएं प्रेरित हो रही हैं।
- हिमाचल का कांगड़ा ज़िला बना प्राकृतिक खेती का रोल मॉडलकांगड़ा ज़िला प्राकृतिक खेती में नई मिसाल बन रहा है, जहां किसान देशी तरीकों से कम लागत में बेहतर उत्पादन और अधिक मुनाफ़ा कमा रहे हैं।
- ‘Per Drop More Crop’ की नई नीति से जल संरक्षण को बढ़ावा और किसानों को मिलेगा दोगुना फ़ायदाजल संसाधनों का सही मैनेजमेंट करने की दिशा में केंद्र सरकार का ‘पर ड्रॉप मोर क्रॉप’ (‘Per Drop More Crop’) स्कीन मील का पत्थर साबित हो रही है। इस योजना का सबसे चर्चित और महत्वपूर्ण बदलाव वित्तीय सीमा में छूट है।
- Natural Farming: प्राकृतिक खेती से तिलक राज की सेब की खेती बनी नई मिसालहिमाचल प्रदेश के रहने वाले तिलक राज ने प्राकृतिक खेती अपनाकर सेब की खेती में नई पहचान बनाई, कम लागत में आमदनी दोगुनी की।
- Biostimulant products पर अब QR Code अनिवार्य: किसानों के हित में कृषि मंत्रालय का बड़ा फैसलाबायोस्टिमुलेंट (Biostimulant products) प्रोडक्ट्स के लेबल पर क्यूआर कोड (QR code) अनिवार्य कर दिया है। ये कदम किसानों को नकली और घटिया क्वालिटी वाले प्रोडक्ट से बचाने और Transparency करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
- किसानों के लिए डिजिटल खज़ाना: UPAG Portal क्या है और कैसे बदल रहा है भारतीय कृषि की तस्वीर?UPAG Portal भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय (Ministry of Agriculture and Farmers Welfare) की ओर से विकसित एक Integrated digital platform है। इसे Integrated Portal on Agricultural Statistics के नाम से भी जाना जाता है।
- Uttar Pradesh की खेती में Digital Revolution: सीएम योगी का किसानों को तोहफ़ा,4000 करोड़ की ‘UP-AGRISE’ परियोजना की होगी शुरुआतउत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ ने प्रदेश में एक ‘डिजिटल एग्रीकल्चर इकोसिस्टम’ (‘Digital Agriculture Ecosystem’) या UP-AGRISE विकसित करने के निर्देश (Instruction) दिए हैं।
- कृषि का भविष्य! दुनिया का पहला कुबोटा का Hydrogen और AI वाला ट्रैक्टर जो खुद चलता है, प्रदूषण भी ZEROजापान की फेमस ट्रैक्टर कंपनी कुबोटा (Famous tractor company Kubota) ने एक ऐसी क्रांतिकारी तकनीक पेश की है जो कृषि क्षेत्र को हमेशा के लिए बदल कर रख सकती है।
- रविंदर चौहान ने सरकारी नौकरी छोड़ अपनाई प्राकृतिक खेती और बन गए प्रगतिशील किसानप्राकृतिक खेती से रविंदर चौहान ने सेब की खेती में नई पहचान बनाई कम लागत में ज़्यादा मुनाफ़ा और स्वस्थ फ़सल का उदाहरण बने।
- National Women Farmers Day: कृषि क्षेत्र में महिलाओं का योगदान अहम, तय किया मान्यता से लेकर अधिकार तक का सफ़रराष्ट्रीय महिला किसान दिवस (National Women Farmers Day) जो 15 अक्टूबर को हर साल उन्हीं अनाम नायिकाओं के सम्मान और संघर्षों को समर्पित है।





















