Food Traceability: किसानों के लिए वरदान या अभिशाप बन रही फूड ट्रैसेबिलिटी? जानिए इससे जुड़ी अहम बातें

फूड ट्रैसेबिलिटी (Food Traceability) का मतलब है ‘खेत से थाली तक की पूरे सफ़र को ट्रैक करना।’ ये एक ऐसी टेक्नोलॉजी है जो आपकी थाली में पहुंचने वाले हर अनाज, फल या सब्जी की ‘जन्म कुंडली’ बताती है कि वो किस खेत से आया, किस किसान ने उगाया, कौन सी खाद डाली, और कैसे आपके पास पहुंचा।

Food Traceability: किसानों के लिए वरदान या अभिशाप बन रही फूड ट्रैसेबिलिटी? जानिए इससे जुड़ी अहम बातें

आजकल ‘फूड ट्रैसेबिलिटी’ (Food Traceability) शब्द खाद्य सुरक्षा और कृषि व्यापार (Food Security and Agricultural Trade) की दुनिया में छाया हुआ है। ये एक ऐसी टेक्नोलॉजी है जो आपकी थाली में पहुंचने वाले हर अनाज, फल या सब्जी की ‘जन्म कुंडली’ बताती है कि वो किस खेत से आया, किस किसान ने उगाया, कौन सी खाद डाली, और कैसे आपके पास पहुंचा। ये सुनने में जितना अच्छा लगता है, छोटे किसानों और विकासशील देशों के लिए यह ‘डिजिटल जंजीर’ (Digital Chains) बनता जा रहा है। क्यों? आइए समझते हैं।

क्या है फूड ट्रैसेबिलिटी?

फूड ट्रैसेबिलिटी (Food Traceability) का मतलब है ‘खेत से थाली तक की पूरे सफ़र को ट्रैक करना।’ इसमें QR कोड, ब्लॉकचेन और सैटेलाइट ट्रैकिंग जैसी टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल होता है।

जैसे: लखनऊ के दशहरी आम पर एक स्पेशल सील लगी होती है। अगर कोई नकली आम बेचे, तो QR कोड स्कैन करते ही पता चल जाता है कि वो किस बाग से आया, किस किसान ने उगाया और कब तोड़ा गया।

फायदा: अगर कोई मिलावट या धोखाधड़ी हो, तो प्रोडक्ट को तुरंत वापस बुलाया जा सकता है।

लेकिन, यही सिस्टम भारत जैसे देशों के छोटे किसानों के लिए मुसीबत बन रहा है।

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क्यों हो रही है दिक्कत?

EUDR ने नए नियम बना दिए हैं, जिनके तहत:

1.जंगल काटकर खेती करने वाले प्रोडक्ट पर बैन (EUDR नियम)।

2.हर उत्पाद की पूरी हिस्ट्री दिखाना ज़रूरी।

परेशानी ये है कि भारत के 86 फीसदी किसान छोटी जोत वाले हैं। उनके पास- 

:-GPS ट्रैकिंग, डिजिटल रिकॉर्ड या QR कोड जैसी टेक्नोलॉजी नहीं।

:-सर्टिफिकेशन का खर्च उठाने की क्षमता नहीं।

उदाहरण: सोयाबीन खली का संकट

भारत से यूरोप को सोयाबीन खली (पशु आहार) का निर्यात होता है। अब EUDR नियम लागू होने के बाद, भारतीय निर्यातकों (Indian Exporters) को साबित करना होगा कि ये सोयाबीन जंगल न काटकर, खेती की ज़मीन पर उगाई गई थी।

  • चुनौती: ज्यादातर किसानों के पास जमीन के दस्तावेज़ डिजिटल नहीं।
  • नतीजा: अगर सर्टिफिकेशन नहीं मिला, तो निर्यात रुक सकता है।

क्या हो सकता है समाधान?

1.सरकारी मदद
1.डिजिटल लैंड रिकॉर्ड बनाना।
2.किसानों को सस्ते में ट्रैकिंग टूल देना।
3.सर्टिफिकेशन प्रोसेस को आसान बनाना।

2.किसान समूह बनाएं
FPOs (फार्मर्स प्रोड्यूसर ऑर्गनाइजेशन) की मदद से टेक्नोलॉजी शेयर करना।

3.प्राइवेट सेक्टर की भागीदारी
IT कंपनियां किसानों के लिए सस्ते ऐप बना सकती हैं।

अवसर या चुनौती?

फूड ट्रैसेबिलिटी (Food Traceability) फ्यूचर की जरूरत है, लेकिन अगर सरकार और प्राइवेट सेक्टर मिलकर किसानों की मदद नहीं करेंगे, तो ये छोटे किसानों के लिए बोझ बन जाएगा। अगर सही कदम उठाए गए, तो भारत ग्लोबल फूड मार्केट (Global Food Market) में और मजबूती से उभर सकता है।

क्या आपको लगता है कि फूड ट्रैसेबिलिटी भारतीय किसानों के लिए फायदेमंद होगी? कमेंट में बताएं-


सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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