मुर्गी पालन से आत्मनिर्भर बनीं योगेश्वरी देवांगन, खड़ा किया खुद का Poultry Farm

मुर्गी पालन से आत्मनिर्भर बनीं योगेश्वरी देवांगन की प्रेरक कहानी, जिन्होंने गांव में रहकर ही शुरू किया लाखों का व्यवसाय।

मुर्गी पालन Poultry Farming

छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले के कुरूद विकासखंड के ग्राम चर्रा की एक साधारण महिला, योगेश्वरी देवांगन ने मुर्गी पालन के क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बनाई है। कभी गरीबी में जीवन बिताने वाली योगेश्वरी आज हजारों मुर्गियों की मालकिन हैं और उनका व्यवसाय पूरे देश में फैल चुका है। यह कहानी न सिर्फ़ मुर्गी पालन में संभावनाओं को दिखाती है, बल्कि यह भी सिद्ध करती है कि आत्मविश्वास, मेहनत और सही मार्गदर्शन से कोई भी बड़ा मक़ाम हासिल कर सकता है।

गांव से शुरू हुआ आत्मनिर्भरता का सफर (The journey of self-reliance started from the village)

योगेश्वरी बताती हैं कि समूह से जुड़ने से पहले उनका परिवार अत्यंत गरीब था। बच्चों की पढ़ाई, भोजन और स्वास्थ्य की ज़िम्मेदारी उठाना बहुत मुश्किल था। जीवन यापन के लिए कृषि और मज़दूरी का सहारा लेना पड़ता था। लेकिन मां परमेश्वरी महिला स्व-सहायता समूह से जुड़ने के बाद उन्होंने बचत करना सीखा और दो-चार मुर्गियों से मुर्गी पालन की शुरुआत की।

एनएलएम योजना से मिला सहारा (Support received from NLM scheme)

मुर्गी पालन में लाभ नजर आते ही उन्होंने अपने पति के साथ मिलकर एनएलएम योजना और पशुपालन विभाग की मदद से लोन लिया। इससे उन्होंने एक छोटा मुर्गी फ़ार्म शुरू किया और आज उनके पास 2500 से अधिक मुर्गियां हैं। वे सप्ताह में दो बार चूजों की बिक्री करती हैं। उनके फ़ार्म में सोनाली, टर्की, जापानी बटेर, राजहंस आदि कई प्रजातियां हैं। उनके पास खुद का हैचिंग मशीन भी है, जिससे अंडों से चूजे निकाले जाते हैं। 

मुर्गी पालन से मिला रोज़गार और सम्मान (Poultry farming provided employment and respect)

योगेश्वरी ने मुर्गी पालन के जरिए न केवल अपनी आर्थिक स्थिति में सुधार किया बल्कि गांव की अन्य महिलाओं को भी रोज़गार दिया। उनके फ़ार्म में चार महिलाएं काम कर रही हैं, जिनमें टिकेश्वरी साहू, प्रतिमा साहू और टेमीन साहू शामिल हैं। ये सभी महिलाएं पहले खेती और मज़दूरी से घर चलाती थीं, लेकिन अब उन्हें नियमित आय मिलने लगी है।

2019 से शुरू हुआ सफर और अब करोड़ों की ओर (The journey started in 2019 and now it is heading towards crores)

योगेश्वरी ने 2019 में 300 कड़कनाथ मुर्गियों से मुर्गी पालन की शुरुआत की थी। फिर धीरे-धीरे उन्होंने अन्य नस्लें भी शामिल कीं जैसे बटेर, बतख, गिनी फॉल, टर्की और ब्लैकस्टला। उन्होंने कृषि विज्ञान केंद्र और बैंक ऑफ बड़ौदा से प्रशिक्षण भी लिया। उन्हें बताया गया कि किसानों के लिए केसीसी लोन भी मिल सकता है, जिससे उन्होंने 1.6 लाख रुपये का लोन लेकर मुर्गी पालन को विस्तार दिया।

आज उनके पास 6 से 7 नस्लों की मुर्गियां हैं और उनके पास 10,000 क्षमता वाला हैचिंग मशीन है, जिसमें प्रति तीन दिन में 5,000 अंडे डाले जाते हैं और लगभग 4,000 चूजे निकलते हैं। उन्होंने भारत सरकार की योजना के तहत 50 लाख रुपये का लोन लेकर दो बड़े फ़ार्म और नया मशीन लगाया है।

सोशल मीडिया से बदली किस्मत (Social media changed his luck)

शुरुआत में उन्हें मुर्गी पालन का बाज़ार ढूंढने में मुश्किल हुई, लेकिन छत्तीसगढ़ के एक प्रसिद्ध यूट्यूबर ओमप्रकाश भासाल की मदद से उन्होंने सोशल मीडिया का उपयोग करना सीखा। इससे उन्हें न केवल छत्तीसगढ़ में बल्कि देशभर में पहचान मिली और उनके चूजे अब कई राज्यों में भेजे जाते हैं।

मुर्गी पालन से आत्मनिर्भर बनीं योगेश्वरी देवांगन, खड़ा किया खुद का Poultry Farm

कड़कनाथ मुर्गी पालन (Kadaknath Poultry Farming)

मुर्गी पालन के लिए कड़कनाथ नस्ल को सबसे अच्छा माना जाता है। इसका मांस स्वादिष्ट और पौष्टिक होता है। हालांकि, गर्मियों में इसका विकास थोड़ा धीमा हो जाता है क्योंकि पर्याप्त पोषण नहीं मिल पाता। कंपनियों द्वारा उपलब्ध चारा महंगा होने के कारण गांवों में किसान इन्हें खुला छोड़ देते हैं, जिससे उनका विकास धीमा हो जाता है। इसी समस्या को हल करने के लिए कृषि वैज्ञानिकों ने किफायती और पौष्टिक चारे पर शोध शुरू किया है।

स्थानीय पहचान से राष्ट्रीय ब्रांड तक का सफर (The journey from local identity to national brand)

देवांगन देसी मुर्गी फ़ार्म आज न सिर्फ़ धमतरी या छत्तीसगढ़ में, बल्कि देशभर में जाना-पहचाना नाम बन चुका है। स्थानीय ग्राहक ही नहीं, बल्कि अन्य राज्यों से भी लोग उनके चूजों की मांग कर रहे हैं। मुर्गी पालन के इस सफर ने उन्हें आत्मनिर्भर, सम्मानजनक और प्रेरणादायक महिला बना दिया है।

निष्कर्ष (Conclusion)

मुर्गी पालन आज सिर्फ़ एक व्यवसाय नहीं बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था का मजबूत आधार बनता जा रहा है। योगेश्वरी देवांगन जैसी महिलाएं यह साबित कर रही हैं कि आत्मनिर्भरता और आर्थिक मजबूती की राह गांव से होकर भी गुजर सकती है। यदि इच्छाशक्ति, मेहनत और सही मार्गदर्शन हो, तो मुर्गी पालन से लाखों की कमाई और सैकड़ों को रोज़गार दिया जा सकता है।

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