बैकयार्ड मुर्गी पालन के लिए कौन सी नस्लें हैं बेहतर? पोल्ट्री विशेषज्ञ डॉ. एल.सी. वर्मा से जानिए इस बिज़नेस के गणित

अगर पोल्ट्री फ़ार्मिंग की बात करें तो बैकयार्ड मुर्गी पालन व्यवसाय कई मानकों में फ़ायदेमंद है। खेती करते हुए बैकयार्ड मुर्गी पालन व्यवसाय भी शुरू किया जा सकता है। उत्तर प्रदेश स्थित कृषि विज्ञान केन्द्र मऊ के प्रमुख और पोल्ट्री विशेषज्ञ डॉ. एल.सी. वर्मा से किसान ऑफ़ इंडिया की विशेष बातचीत।

बैकयार्ड मुर्गी पालन backyard poultry farming

आज के समय में घटती खेती और केवल एक ही फसल पर निर्भर रहकर किसानों के लिए आजीविका चलाना दूभर हो जाता है। इसलिए ज़रुरी है कि छोटे और सीमांत किसान, डेयरी, मशरूम उत्पादन, मधुमक्खी पालन, मछली पालन, रेशम कीट पालन और पोल्ट्री फ़ार्मिंग जैसी अन्य कृषि गतिविधियों को अपनाएं। इससे किसान स्वरोजगार के साथ-साथ आर्थिक उन्नति की ओर अग्रसर होंगे। अगर पोल्ट्री फ़ार्मिंग की बात करें तो बैकयार्ड मुर्गी पालन व्यवसाय कई मानकों में फ़ायदेमंद है। खेती करते हुए बैकयार्ड पोल्ट्री फ़ार्मिंग व्यवसाय भी शुरू किया जा सकता है। उत्तर प्रदेश स्थित कृषि विज्ञान केन्द्र मऊ के प्रमुख और पोल्ट्री विशेषज्ञ डॉ. एल.सी. वर्मा से किसान ऑफ़ इंडिया ने Backyard Poultry Farming पर विस्तार से बात की। 

कम लागत में बेहतर विकल्प बैकयार्ड मुर्गी पालन व्यवसाय 

डॉ एल.सी. वर्मा कहते हैं कि देश में मुर्गी पालन तेज़ी से बढ़ता हुआ व्यवसाय है, जो कि खाद्य सुरक्षा के साथ-साथ आर्थिक उन्नति में काफ़ी सहायक है। लोगों में अंडे और मांस की बढ़ती मांग को देखते हुए बैकयार्ड मुर्गी पालन व्यवसाय कम पूंजी में मोटी कमाई और रोज़गार का एक बेहतर विकल्प साबित हो रहा है। बढ़ती आबादी और घटते रोज़गार में बेरोजगार युवक कृषि और बैकयार्ड मुर्गी पालन व्यवसाय को अपना सकते हैं। इसका प्रमुख कारण इनसे होने वाला अतिरिक्त लाभ है। यह व्यवसाय बहुत कम लागत में शुरू किया जा सकता है। इसमें मुनाफ़ा भी अच्छा रहता है। 

बैकयार्ड मुर्गी पालन व्यवसाय backyard poultry farming

बैकयार्ड पोल्ट्री की उन्नत नस्लें

पोल्ट्री विशेषज्ञ डॉ. एल.सी. वर्मा बताते हैं कि अगर कोई किसान अंडों के बिज़नेस के लिए बैकयार्ड पोल्ट्री व्यवसाय शुरू करना चाहता है तो कैरी प्रिया और कैरी सोनाली नस्लें बेहतर हैं।  

इसके अलावा, कड़कनाथ और कैरी देवेंद्र नस्लें, मांस और अंडों दोनों उद्देश्य के लिए पाली जाती हैं। केवल मांस के लिए पाली जानी वाली मुर्गियों में कैरी धनराजा, कैरी विशाल, कैरी ट्रॉपिकाना और कैरी मृतुंजय प्रमुख हैं। असील पीला, अंकलेश्वर, श्रीनिधि, वनराजा, धनराजा, कालाहांडी, कलिंग ब्राउन, पंजाब ब्राउन जैसी देसी प्रजातियां भी बैकयार्ड मुर्गी पालन व्यवसाय के लिए बेहतर मानी जाती हैं। 

बैकयार्ड मुर्गी पालन व्यवसाय backyard poultry farming

बैकयार्ड मुर्गी पालन के लिए कौन सी नस्लें हैं बेहतर? पोल्ट्री विशेषज्ञ डॉ. एल.सी. वर्मा से जानिए इस बिज़नेस के गणित

कितनी लागत में शुरू कर सकते हैं बैकयार्ड मुर्गी पालन व्यवसाय?

घर के पीछे या आंगन में खाली पड़ी जगह में कम लागत में बैकयार्ड मुर्गी पालन व्यवसाय की शुरुआत की जा सकती है। स्थानीय रूप से उपलब्ध अनाज-पानी की मदद से बिना किसी विशेष खर्च के छोटे पैमाने पर मुर्गियों को पाला जा सकता है। इस व्यवसाय को महिलाएं घर के कामकाज के साथ-साथ करते हुए अतिरिक्त आमदनी का ज़रिया भी बना सकती हैं। अगर बैकयार्ड पोल्ट्री बिज़नेस शुरू करने की बात की जाए तो ये 50 हज़ार रुपये से भी शुरू किया जा सकता है।

डॉ. एल.सी. वर्मा ने बताया कि बैकयार्ड पोल्ट्री फ़ार्म 20 से 30 मुर्गियों से शुरू किया जा सकता है। इसके अलावा, आपको बहुत कुछ करने की ज़रूरत नहीं है। बस शेड के अंदर सतह पर लकड़ी के बुरादे के साथ चूना मिलाकर बिछा देना चाहिए। इससे मुर्गे की बीट से ज़्यादा समस्या नहीं आती। 

बैकयार्ड मुर्गी पालन व्यवसाय backyard poultry farming
तस्वीर साभार: ICAR

आहार पर लगने वाले पैसे की होती है बचत

बैकयार्ड में पाली जाने वाली मुर्गियों पर अनाज का खर्चा भी ज़्यादा नहीं पड़ता। खुले में पालन करने पर आहार की मात्रा आधी हो जाती है, क्योंकि ये बाहर चरती हैं। ये फसल अवशेष को आहार के रूप में खाती हैं। फसल पर लगने वाले कीटों को भी ये मुर्गियाँ खा जाती हैं। इस तरह से इन्हें पोषक तत्व तो मिलता ही है साथ ही ये फसल को नुकसान से भी बचाती हैं। अगर मुर्गियो को दाना देना भी पड़े तो एक मुर्गी को प्रतिदिन 45-50 ग्राम दाना दिया जाता है।  

बीमारी का प्रकोप होता है कम, पर ज़रूर लगवाएं टीका

डॉ. एल.सी. वर्मा ने कहा कि किसी भी व्यवसाय में सफलता पाने के लिए उससे जुड़ी समस्याओं पर काबू पाना बेहद ज़रूरी है। मुर्गी पालन में भी मुर्गीपालकों को रोग की समस्या का सामना करना पड़ता है। हालांकि, ब्रॉयलर और लेयर मुर्गियों की तुलना में बैकयार्ड मुर्गियों में कम बीमारी आती है। इसके बावजूद, मुर्गीपालकों को सावधानी के लिए मुर्गियों में रानीखेत, गुम्बोरो, लीची रोग, खूनी पेचिश रोग और सीआरडी जैसे कई रोगों का टीकाकरण समय पर करा लेना चाहिए।

बैकयार्ड मुर्गी पालन व्यवसाय backyard poultry farming

ब्रॉयलर की तुलना में मिलता है 3 से 4 गुना दाम

डॉ. एल.सी. वर्मा ने बताया कि बैकयार्ड मुर्गियों को तैयार होने में ज़्यादा दिन इंतज़ार नहीं करना पड़ता। जहां देसी मुर्गियाँ 7 से 8 महीने में तैयार होती है, वहीं ये उन्नत नस्ल की बैकयार्ड मुर्गियाँ 4-5 महीनों के अंदर एक से डेढ़ किलो तक की हो जाती है। साथ ही जहां ब्रॉयलर 60 से 70 रुपये में बिकता है, वहीं अन्य बैकयार्ड या देसी मुर्गा 300 रुपये में बिकता है। अगर किसान कड़कनाथ मुर्गी पालन करता है, तो मुर्गा 700 से लेकर हज़ार रुपये  प्रति किलों तक बिक जाता है। इस तरह ये दूसरों से ज्यादा मुनाफ़ा देने वाली प्रजाति है। 

कितनी आमदनी? 

डॉ. वर्मा कहते हैं कि बैकयार्ड पोल्ट्री फ़ार्म के तहत अगर कोई किसान कड़कनाथ मुर्गी पालन करता है तो सालाना 60 से 80 अंडे मिल जाते हैं। इसका बाजार भाव जगह के अनुसार 20 से 50 रुपये तक है। इस हिसाब से अगर किसान 150 मुर्गों वाला फ़ार्म तैयार करें तो महज पांच महीने बाद से एक साल तक केवल अंडो से करीब दो लाख रुपये और इतनी ही राशि चिकन बेचकर कमा सकता है। यानी इस छोटे से फ़ार्म से आप 4 लाख रुपये तक की कमाई कर सकते हैं।

बैकयार्ड मुर्गी पालन व्यवसाय backyard poultry farming
तस्वीर साभार: ICAR

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