केला एक ऐसा फल है, जिसकी मांग पूरे साल बनी रहती है और यह बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक सबके लिए फ़ायदेमंद है। इसलिए केले की खेती हमेशा मुनाफ़ा देने वाली होती है। ऐसे में किसान अगर सही किस्म का केला लगाएं तो उन्हें बढ़िया कमाई हो सकती है। केले की उन्नत किस्में कौन सी हैं, इस लेख में हम आपको कुछ ऐसी ही किस्मों के बारे में बताएंगे।
विशेषज्ञों के मुताबिक, केले की 500 से अधिक किस्में हैं और कई किस्मों को अलग-अलग इलाकों में अलग नामों से जाना जाता हैं। जानिए केले की 10 किस्मों के बारे में, जिनकी व्यावसायिक खेती देश के अलग-अलग हिस्सों में जलवायु के आधार पर होती है।
1. ड्वार्फ कैवेंडिश
केल की उन्नत किस्म ड्वार्फ कैवेंडिश अधिक उपज के लिए जानी जाती है। यह किस्म पनामा उक्ठा नामक रोग से सुरक्षित रहती है। इस किस्म के केले के पौधे लंबाई में कम होते हैं औसतन एक घौंद का वज़न 22-25 किलो होता है, जिसमें 160-170 फलियां आती हैं। एक फली का वजन 150-200 ग्रा. होता है। फल पकने पर पीला और स्वादिष्ट लगता है। यह केला पकने के बाद जल्दी खराब होने लगता है।
2. रोवेस्टा
इस किस्म के पौधे की लंबाई ड्वार्फ कैवेंडिश से अधिक होती है। एक घौंद का वज़न 25-30 किलो होता है। इसका फल अधिक मीठा होता है। पकने पर केला चमकीले पीले रंग का हो जाता है। यह किस्म पनामा उकठा के प्रति प्रतिरोधी होती है। हालांकि, लीफ स्पॉट बीमारी से प्रभावित होती है। इसलिए विशेषज्ञों की सलाह पर सही प्रबंधन करें।
3. चिनिया चम्पा
इस किस्म को ‘पूवान’ नाम से भी जाना जाता है। इसका पौधा लंबा, लेकिन फल छोटा, सख्त और गूदेदार होता है। फलों का घौंद 20-25 किलो का होता है। यह किस्म बिहार, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडू, असम में अधिक उगाई जाती है। प्रति घौंद फलों की संख्या 150-300 होती है।
4. ने पुवान
इसे इलाक्की बाले के नाम से भी जान जाता है। यह किस्म ख़ासतौर पर कर्नाटक में उगाई जाती है। अपनी अच्छी खुशबू और स्वाद के लिए पसंद की जाती है। इसके पौधे लंबे और फल छोटे आकार के होते हैं। छाल पतला और गूदा सख्त होता है। इसकी मांग अधिक है इसलिए इस किस्म की किसानों को अच्छी कीमत मिलती है। इसकी घौंद लगभग 12 किलो की होती है, जिसमें 150 के करीबन फल लगते हैं।
5. बत्तीसा
केले की इस किस्म का उपयोग ख़ासतौर पर सब्जी के लिए किया जाता है। इसके घौंद की लम्बाई अधिक होती है। घेरे में लगने वाली फलियों की लम्बाई और आकार भी बड़ा होता है। एक घौंद में 250 से 300 तक फलियां लगती हैं।
6. कारपुरावल्ली
यह तमिलनाडू की मशहूर किस्म हैं। इसके पौधे की लंबाई 10-12 फिट तक होती है। यह अन्य किस्मों की तुलना में मज़बूत होती है, जो हर तरह के मौसम को सहन करने की क्षमता रखती है। इसका इस्तेमाल सब्ज़ी के लिए अधिक होता है। इसमें बीमारियों व कीटों का असर भी कम होता है।
7. नेद्रन (रजेजी) (एएबी)
नेद्रन मुख्य रूप से केरल की प्रमुख किस्म है। इस केले के बने उत्पाद जैसे, चिप्स, पाउडर आदि खाड़ी के देशों में निर्यात किए जाते हैं। इसे सब्जी के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। इसके पौधे की लंबाई 2.7-3.6 मीटर होती है। इसके घौंद का वजन 8-15 किलोग्राम और घौंद में 30-50 फल की छिमियाँ होती है। फल 22.5-25 सेंटीमीटर लम्बे आकार वाले, छाल मोटी, गूद्दा कड़ा और मीठा होता है। फलों को उबाल कर नमक एवं काली मिर्च के साथ खाया जाता है।
8. लाल केला
इस किस्म के पौधे की लंबाई 3.5-4.5 मीटर तक होती है। यह केला ख़ास इसलिए है क्योंकि पकने के बाद फल का रंग पीले की बजाय लाल हो जाता है। इसका फल लंबा और मोटा होता है। छाल भी मोटी होती है। गूदे का रंग हल्का केसरिया होता है और यह नरम व मीठा होता है।
9. अल्पान
यह किस्म ख़ासतौर पर बिहार के वैशाली क्षेत्र में उगाई जाती है। इस प्रजाति के केले के पौधे बड़े होते हैं और घौंद लंबी होती है, लेकिन फल छोटे आकार के होते हैं। पकने के बाद यह पीला रंग का व स्वादिष्ट होता है। इसे थोड़े अधिक दिनों तक के लिए रखा जा सकता है, क्योंकि यह जल्दी खराब नहीं होते।
10. मोन्थन
इस किस्म को कचकेल, बनकेल, बौंथा, कारीबेल, बथीरा, कोठिया, मुठिया, गौरिया कनबौंथ जैसे नामों से भी जाना जाता है। यह सब्जी वाली किस्म है, जो बिहार, केरल (मालाबार) तामिलनाडु (मदुराई, तंजावर, कोयम्बटूर तथा टिल चिरापल्ली) और मुंबई के थाने ज़िले में पाई जाती है। इसका पौधा लम्बा और मजबूत होता है। छाल बहुत मोटी और पीली होती है। गुदा नम, मुलायम, कुछ मीठापन लिए होता है। कच्चा फल सब्जी के रूप में और पका फल खाने के रूप में प्रयोग करते हैं फलों के गुच्छे का वजन 18-22.5 किलोग्राम होता है, जिसमें आमतौर पर 100-112 फल लगते हैं।
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