केले की खेती (Banana Cultivation): गर्मी और ‘पीलिया’ रोग से कैसे बचाएं केले की फसल, कृषि वैज्ञानिक डॉ. अजीत सिंह से जानिए उन्नत तरीके

पिछले कुछ साल से केले की खेती कर रहे किसानों के लिए पनामा विल्ट रोग जी का जंजाल बना हुआ है। बगीचे में लगे पेड़ पनामा विल्ट रोग का शिकार हो रहे हैं। साथ ही गर्मी का असर भी केले की फसल पर पड़ रहा है। कैसे बचाएं इन दोनों से केले की फसल? जानिए डॉ. अजीत सिंह से.

केले की खेती (Banana Cultivation) panama wilt banana disease

केले की खेती (Banana Farming): भारत में केले की बागवानी बड़े पैमाने पर होती है। केले की खेती के लिए 30-40 डिग्री वाले क्षेत्र सबसे ज़्यादा उपयुक्त माने जाते हैं। केला गर्म मौसम में होने वाली फसल है, लेकिन अप्रैल-मई-जून के महीनों में तेज गर्म हवा से पौधों को नुकसान पहुंचने का खतरा होता है। वहीं दूसरी ओर पनामा विल्ट नाम का एक रोग केले के पौधों को तबाह कर रहा है।

पिछले कुछ साल से केले की खेती कर रहे किसानों के लिए पनामा विल्ट रोग जी का जंजाल बना हुआ है। बगीचे में लगे पेड़ पनामा विल्ट रोग का शिकार हो रहे हैं। बाग इस बीमारी की चपेट में आकर साफ़ हो रहे हैं। किसानों के सामने देखते ही देखते बड़ी पूंजी औऱ मेहनत से लगाए गए बाग दम तोड़ रहे हैं।

कैसे किसान इन समस्याओं से छुटकारा पा सकते हैं, इसको लेकर किसान ऑफ़ इंडिया ने बांदा कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कॉलेज ऑफ़ हॉर्टिकल्चर के प्रोफेसर डॉ. अजीत सिंह से ख़ास बातचीत की। 

हवा अवरोधक पेड़ लगाएं

डॉ. अजीत सिंह ने बताया कि गर्म हवा के थपेड़ों से पौधों में नमी की भारी कमी हो जाती है। इसके पत्ते फट जाते हैं, जिससे फोटोसिंथेसिस की क्रिया में बाधा आती है और पौधे मुरझा कर सूखने लगते हैं। इसलिए इस मौसम में केले के बागों का ख़ास प्रबंधन बहुत ज़रूरी है। केले के पौधे को बचाने के लिए किसानों को वायु अवरोधक पेड़ जैसे गजराज घास या ढेंचा को खेत के किनारों पर लगाना चाहिए या फिर ग्रीन नेट से ढकना चाहिए। इससे वातावरण ठंडा रहेगा और केले के पौधे सूखेंगे नहीं।

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गर्मी और ‘पीलिया’ रोग से कैसे बचाएं केले की फसल, कृषि वैज्ञानिक डॉ. अजीत सिंह से जानिए उन्नत तरीके

केले के पौधो को लू के थपेड़ों से कैसे बचाएं?

अगर पौधों में फलों का गुच्छा अप्रैल-मई महीने में निकल आए तो समस्या बढ़ जाती है। इसलिए गुच्छे निकलने की अवस्था थोड़ा आगे-पीछे करने की कोशिश करें। डॉ. अजीत सिंह बताते हैं कि फिर भी अगर केले के गुच्छे निकल आए तो शुष्क हवाओं से बचाने के लिए इन्हें ढके। ऐसा न करने पर गर्म हवा के कारण केले के गुच्छे काले पड़ जाते हैं। केले की सूखी पत्तियों से केले के बंच को ढक देना चाहिए। यह सबसे सस्ता और सरल उपाय है। वैसे आप बेहद पतले पॉली बैग यानि स्केटिंग बैग से भी इसे पूरी तरह कवर कर सकते हैं।  इससे केले के गुच्छे लू के थपेड़ों से बच जाते हैं। 

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केले की खेती (Banana Cultivation): गर्मी और ‘पीलिया’ रोग से कैसे बचाएं केले की फसल, कृषि वैज्ञानिक डॉ. अजीत सिंह से जानिए उन्नत तरीकेकेले की खेती में चाहिए उचित उर्वरक और भरपूर सिंचाई

डॉ. अजीत सिहं बताते हैं कि जब पौधों में फलों के गुच्छे निकलते हैं, तो उनका भार एक तरफ हो जाता है। ऐसे में अगर तेज़ हवा चले तो पौधों के गिरने की आशंका बढ़ जाती है। इसलिए स्टेकिंग ज़रूरी है। यानी पौधों को बांस-बल्लियों का सहारा देना चाहिए। छत्ते में उगने वाले केले की लंबाई और गुणवत्ता बढ़ाने के लिए नर फूलों को काटना ज़रूरी है।

पौधे पर फूल आने के 30 दिन बाद पूरे छत्ते में केले बनने लगते हैं, लेकिन इन सबके बीच पौधों के पोषण का भी उचित ध्यान रखना पड़ता है। इस समय केले के पौधो को वर्मीकम्पोस्ट या गोबर की खाद उपलब्धता के आधार पर ज़्यादा से ज़्यादा देनी चाहिए। ऐसा इसलिए क्योकि पोषक तत्व के साथ अगर केले में सिंचाई की जाती है तो नमी ज़्यादा देर तक रहती है।

डॉ. अजीत सिंह ने बताया कि केले की खेती में सिंचाई प्रबंधन सबसे अहम है। गर्मी के दिनों में पानी का वाष्पीकरण बहुत तेज़ी से होता है। इससे पौधे की सुखने की संभावना रहती है। ऐसे में केले के पौधों के थालो में केले की सुखी पत्तियों या फसल अवशेष का इस्तेमाल करना बेहतर होता है। इससे पौधे में नमी ज़्यादा देर तक बनी रहती है। 

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डॉ. अजीत सिंह ने बताया कि पौधों की रोपाई के कुछ दिन बाद जब इसके बगल से पुत्तियां निकलती हैं, उन्हें भी समय-समय पर हटाना पड़ता है ताकि पौधे का सही विकास हो सके। समय-समय पर ज़रूरी पोषक तत्वों को देना चाहिए, जिससे कि अच्छी पैदावार मिल सके। सिंचाई और उर्वरकों के छिड़काव के लिए खेतों में ड्रिप इरिगेशन सिस्टम का इस्तेमाल करें। वो बताते हैं की नई तकनीकों का सहारा लेने से लागत कम आती है और इससे लाभ का दायरा बढ़ता है। साथ ही केले की क्वालिटी भी बेहतर होती है।

केले का पीलिया है पनामा विल्ट रोग 

डॉ. अजीत सिंह ने बताया कि उत्तर भारत में एक बार फिर पनामा विल्ट तैजी से पैर पसार रहा है, जिसे किसान आम बोलचाल की भाषा में केले की पीलिया बीमारी भी कहते हैं। ये मिट्टी जनित रोग फ्यूजेरियम नामक फंगस से फैलता है। विल्ट रोग का फंगस जब केले के पौधे को चपेट में लेता है, तो उसके जाइलम को जाम कर देता है यानी मिट्टी से केले के पौधे में पानी और पोषण पहुंचाने वाला सिस्टम बाधित कर देता है।

इससे पौधा पीला पड़ने लगता है। पहले पत्तियों पर प्रभाव पड़ता है। फिर तनों के साइड में भूरे-काले रंग के धब्बे पड़ने लगते हैं। फिर जड़ अपनी गोलाई में परत-दर-परत प्रभावित होने लगती है और इस तरह पूरा पौधा अंत में सूखकर गिर जाता है।

केले की खेती (Banana Cultivation) panama wilt banana disease
पनामा विल्ट रोग से प्रभावित केले का पेड़ (तस्वीर साभार: frontiersin & wikipedia)

पनामा विल्ट से बचाव के तरीके

पनामा विल्ट बेहद संक्रामक रोग है। इसलिए रोगग्रस्त पौधे को उसके शुरूआती दौर में पहचान कर बेहद सावधानी से निपटना चाहिए। ऐसे पौधे के तने में खरपतवार नाशी का इंजेक्शन लगाएं। इससे पौधा पूरी तरह और जल्दी सूख जाएगा। फिर उसे वहीं जलाकर मिट्टी में गाड़ देना चाहिए। विल्ट इतना संक्रामक और खतरनाक रोग है कि एक बार सामने आने के बाद इस पर कंट्रोल मुश्किल हो जाता है। इसलिए सावधानी बरत कर इससे बचाव करना ही बेहतर है।

केले की खेती (Banana Cultivation) panama wilt banana disease

Kisan of India Twitterपनामा विल्ट से ग्रस्त पौधे को हटाने के लिए जिस खुरपी, कुदाल, हंसिया या दंराती का इस्तेमाल किया हो, उसे धोकर ही दूसरे पौधे के लिए इस्तेमाल करें। केले के बाग में फ्लड इरीगेशन ना करें, बल्कि ड्रिप से सिंचाई करें। ऐसा इसलिए क्योंकि इस रोग का फंगस पानी से भी फैलता है। इसके अलावा, दवाओं का इस्तेमाल करें। एककिलो ट्राइकोडर्मा को 25 किलो वर्मीकंपोस्ट में मिलाकर 7 से 10 दिन तक इस मिश्रण को छायादार जगह पर रखें। इससे पूरा मिश्रण 26 किलो ट्राइकोडर्मा में बदल जाएगा। इसे खेतों में इस्तेमाल करें। इसके अलावा, कार्बेंडाजिम का स्प्रे हर महीने ज़रूरी है।

केले की खेती (Banana Cultivation) panama wilt banana disease

इस तरह अगर आप बताए गए तरीकों से अपने केले के बगीचे का प्रबंधन करते हैं तो गर्मी और पनामा रोग से होने वाले नुक़सान से बच सकते हैं। साथ ही फलों की गुणवत्ता और उत्पादन दोनों में बढ़ोत्तरी होगी। विपरीत मौसम का कोई बुरा प्रभाव भी आपकी फसल पर नहीं होगा।

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