Best Practices For Rohu Fish Farming: कैसे करें रोहू मछली पालन कि ज़्यादा हो उत्पादन और बढ़े कमाई

हमारे देश में खेती के अलावा मछली पालन भी किसानों की आमदनी का मुख्य ज़रिया है। रोहू मछली का सही […]

Best Practices For Rohu Fish Farming रोहू मछली पालन

हमारे देश में खेती के अलावा मछली पालन भी किसानों की आमदनी का मुख्य ज़रिया है। रोहू मछली का सही तरीके से पालन करके किसान अच्छी कमाई कर सकते हैं। इसके लिए उन्हें मछली की देखभाल से लेकर आहार तक के बारे में सही जानकारी होना ज़रूरी है। रोहू मछली का स्वाद शायद आपने भी चखा होगा। यह बहुत ही स्वादिष्ट होती है और ज़्यादातर पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, बिहार और असम के लोग इसे बहुत चाव से खाते हैं।

ये मछली कार्प प्रजाति की है जो मीठे पानी में पाई जाती है। इसे रूई या तापरा नाम से भी जाना जाता है। इसे कतला और मृगल जैसी दूसरी मछलियों के साथ पाला जा सकता है। यह मछली अपने लाजवाब स्वाद के लिए मशहूर है। इस मछली की प्रजनन क्षमता भी अच्छी है और इसका मांग भी बहुत है। ऐसे में रोहू मछली पालन से किसान अच्छी आमदनी प्राप्त कर सकते हैं।

रोहू मछली की ख़ासियत (Know About Rohu Fish)

  • इस मछली का सिर छोटा, मुंह तीखा और होंठ झालर की तरह दिखते हैं।
  • इसके शरीर पर लाल रंग के चने के आकार के दाने होते हैं। शरीर लंबा और गोल होता है। इसका  शरीर और शरीर के नीचे की सतह भूरे रंग की होती है।
  • रोहू मछली का पेट चांदी के रंग का होता है।
  • सिर और पंख को छोड़कर इसका पूरा शरीर सल्क नामक त्वचा से ढका होता है।
  • इसके शरीर पर 7 पंख होते हैं। इसकी लंबाई एक मीटर तक होती है।
  • बेहतरीन स्वाद के कारण ही लोग इसे खाना बहुत पसंद करते हैं।
  • सामान्य पानी में ये मछली अच्छी तरह फलती-फूलती है और सामान्य वातावरण में आसानी से ढल जाती है।
  • इस मछली में फैट की मात्रा कम होती है और प्रोटीन भरपूर होती है। इसलिए यह सेहत के लिए भी फ़ायदेमंद है।
  • इसमें विटामिन B-12 और ओमेगा-3 (Omega -3) Iफैटी एसिड भरपूर मात्रा में होता है, जो हृदय को  स्वस्थ रखने में मदद करता है।

रोहू मछली का प्रजनन (Breeding Of Rohu Fish)

रोहू मछली दो से तीन साल में परिपक्व हो जाती है। एक मादा रोहू मछली लगभग 3 लाख अंडे दे सकती है। रोहू मछली खुले पानी में अंडे देती है, और यह रुके हुए पानी में अंडे नहीं देती है। अंडा जमा करने का सबसे अच्छा समय अप्रैल से जुलाई के बीच है। इस मछली की संख्या बढ़ाने के लिए कृत्रिम प्रजनन तकनीक का भी इस्तेमाल किया जा सकता है।

रोहू मछली के बीज (Rohu Fish Hatchery)

रोहू मछली के बीज आसानी से मिल जाते हैं। अगर आप अच्छी गुणवत्ता वाले बीज एकत्र करना चाहते हैं, तो वो आपको स्थानीय हैचरी में मिलेंगे। रोहू मछली के फिंगर्लिंग्स को मृगला ​​और कतला मछली के साथ एक हेक्टेयर के तालाब में,  एकसाथ समान अनुपात में पाला जा सकता है।

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फिंगर्लिंग्स का पालन कैसे करें? (Best Practices For Rohu Fish Farming)

जब फिंगर्लिंग को नर्सरी से लाया जाता है, तो उसका आकार 20-25 मिमी होता है।  इन्हें 0.05-0.2 हेक्टेयर के मिट्टी के तालाब में दो-तीन महीनों के लिए पाला जाता है। फिर जब ये फिंगर्लिंग्स 80-100 मिमी. (6-10 ग्राम) के हो जाते हैं, तो इन्हें मुख्य तालाब में डाला जाता है। रोहू को दूसरी कार्प प्रजातियों के साथ आसानी से पाला जा सकता है।

तालाब में रोहू मछली पालन (Rohu Carp In Ponds)

मछली पालन में तालाब की अहम भूमिका होती है। इसलिए तालाब को सही तरीके से बनाना ज़रूरी है। इसके लिए तालाब ऐसी जगह में बनाना चाहिए, जहां बाढ़ का खतरा न हो। जिस जगह पर तालाब बनाना है,  वहां की मिट्टी की जल निकासी और जल धारण क्षमता अच्छी होनी चाहिए। रेतली और दोमट भूमि पर तालाब नहीं बनाना चाहिए। अगर आप मिट्टी की जांच करना चाहते हैं तो इसके लिए ज़मीन पर 1 फीट चौड़ा गड्ढा खोदें और उसे पानी से भर दें। अगर गड्ढे में पानी 1-2 दिनों के लिए रहता है तो वह ज़मीन तालाब के लिए उपयुक्त है।  लेकिन गड्ढे में अगर पानी नहीं रहता है, तो समझ लीजिए कि तालाब बनाने के लिए ज़मीन सही नहीं है।

आमतौर पर मछली पालकों को 3 तरह के तालाब बनाने होते हैं- नर्सरी तालाब, मछली पालन तालाब और मछली उत्पादन तालाब। अगर कोई मछली पालक पुराने तालाब में मछली पालन शुरू करने जा रहा है, तो उसे पहले पूरी तरह साफ कर लेना चाहिए।  इसके बाद उसे 10 से 15 दिन तक सूखने देना चाहिए। इसके बाद उसमें चूना डाल दें। चूने के बाद उसमें गोबर की खाद डाल दें फिर चार दिन बाद पानी और मछलियों के बीज डालें। तालाब के पास ही पानी की व्यवस्था होनी चाहिए ताकि तालाब को भरने में दिक्कत न हो। इसमें कम से कम 5 से 6 फीट तक पानी भरा होना चाहिए। अगर तालाब में जलीय खरपतवार या पौधे पनप जाएं तो उन्हें हटा देना चाहिए।

रोहू मछली का आहार (Feed Of Rohu Fish)

रोहू मछली अपने पानी की  मध्य सतह से अपना भोजन लेती है। रोहू मछली का आहार पौधे और पौष्टिक कार्बनिक पदार्थ हैं। रोहू मछली एक सर्वभक्षी मछली है। अपने जीवन-चक्र की शुरुआती अवस्था में ये जोप्लैंक्टोन (पानी में रहने वाला एक तरह का जानवर) को आहार के रूप में खाती है, लेकिन बड़े होने पर यह फाइटोप्लांकटन (एक प्रकार का पौधा) अधिक खाती है।

बाज़ार में मछलियों के लिए आर्टिफिशियल यानी कृत्रिम तैयार आहार मिलता है जो पैलेट के रूप में होता है। ये गीला और सूखा दोनों ही होता है।  गीले पैलेट में, फीड को सख्त बनाने के लिए कार्बोक्सी मिथाइल सैलूलोज़ या जेलेटिन डाला जाता है।  उसके बाद इसे बारीक पीसकर पैलेट्स बनाए जाते हैं। सेहत के लिए ये अच्छा होता है, मगर इसे लंबे समय तक स्टोर नहीं किया जा सकता। इसके विपरीत  सूखे पैलेट को लंबे समय तक के लिए स्टोर किया जा सकता है। ये भी दो तरह के होते हैं एक पानी में डूब जाते हैं और दूसरा पानी के ऊपर तैरते हैं। मछलियों को सही विकास के लिए कुछ खास पोषक तत्वों की भी ज़रूरत होती है। उन्हें प्रोटीन, फैट, कार्बोहाइड्रेड की भी आवश्यकता होती है।

रोहू मछली में होने वाली बीमारियां (Rohu Fish Disease Management)

 

पूंछ और पंखों का गलना

इस बीमारी में मछली की पूंछ और पंख गलने लगते हैं। पंख के कोने हल्के सफेद होने लगते हैं और धीरे-धीरे पूरा पंख सफेद होकर गिरने लगता है। इसके इलाज के लिए मछली को 2-3 मिनट के लिए कॉपर सल्फेट के पानी में डुबो दें।

गलफड़े गलना
इस बीमारी में मछली के गलफड़े सलेटी रंग के हो जाते हैं और आखिर में गिर जाते हैं। मछली को सांस लेने में दिक्कत होती है जिसकी वजह से वो पानी की सतह पर आ जाती है और अंत में दम घुटने से मर जाती है। इससे बचाव के लिए मछलियों को 5-10 मिनट के लिए नमक के घोल में डुबोकर रखें।

सफेद धब्बे
मछली की त्वचा, गलफड़े और पंखों पर सफेद धब्बे पड़ जाते हैं। इसके इलाज के लिए मछलियों को 0.02 प्रतिशत फॉर्मेलिन के घोल में 7-10 दिनों के लिए, रोज़ान एक घंटे के लिए डुबोकर रखें।

काले धब्बे
शरीर पर काले रंग के छोटे-छोटे धब्बे होने लगते हैं। इसके उपचार के लिए मछली को 0.03 प्रतिशत पिकरिक एसिड के घोल में 1 घंटे के लिए डुबोकर रखें।

मछली की जोंक
इस बीमारी के कारण त्वचा और गलफड़े जख्मी हो जाते हैं। इलाज के लिए प्रति एकड़ एक लीटर मैलाथियोन तालाब में डालें।

विबरीओसिस
इस बीमारी की वजह से तिल्ली और आंतों पर सफेद या सलेटी रंग के धब्बे बन जाते हैं। उपचार के लिए ऑक्सीटैटरासाइक्लिन 3-5 ग्राम प्रति एल बी 10 दिनों के लिए दें या 6 दिनों के लिए मछली की फीड में हर मछली के लिए प्रति किलो फुराज़ोलीडोन 100 मि.ग्रा. के हिसाब से मिलाएं।

लाल मुंह रोग
इस बीमारी में मछली के पंख, मुंह, गले और गलफड़े लाल हो जाते हैं। इलाज के लिए अलग-अलगतरह के एंटीबायोटिक और टीकाकरण उपलब्ध हैं।

मछली का उत्पादन और मार्केटिंग (Rohu Fish Production & Marketing)

रोहू मछली जल्दी तैयार हो जाती है।  जब इसका वजन करीब 500 ग्राम तक हो जाता है, तो इसे बाज़ार में बेचने के लिए निकाल लिया जाता है। इसे तालाब से जाल के ज़रिए निकाला जाता है। हालांकि 1-2 किलो की मछली की बाज़ार में ज़्यादा मांग होती है और उसकी कीमत भी अच्छी मिलती है। आमतौर पर यह बाज़ार में 100 रुपए से 160 रुपए प्रति किलो के हिसाब से बिकती है। मछली पालक साल में दो बार मछलियों का उत्पादन ले सकता है। मछलियों को स्थानीय बाज़ार के साथ ही दूसरे राज्यों और विदेशों में भी एक्सपोर्ट किया जाता है। इसके लिए इन्हें बर्फ में पैक किया जाता है।

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सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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