Author name: Paramendra Mohan

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किसानों की सबसे बड़ी दुश्मन बनी नीलगाय - Kisan of India
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बिहार के किसानों पर नीलगाय का कहर, लगाई सरकार से गुहार

बाढ़ की तबाही तो बरसात के मौसम में ही आती है, जबकि नीलगायों की कहर सालों-साल या कहें कि कई दशकों से जारी है। जंगलों में रहने वाली नीलगाय जब किसानों के खेतों में पहुँचने लगे तो ये खड़ी फसल तो बहुत नुकसान पहुँचाती हैं। चूँकि इन्हें मारा नहीं जा सकता, इसलिए बिहार के किसानों के लिए ये भयंकर संकट बन चुकी हैं। नीलगाय झुंड में बहुत तेज़ दौड़ती हैं। इनके सड़कों और रेलवे ट्रैक पर आने दिन से आये दिन दुर्घटनाएँ भी होती रहती हैं और तमाम लोग मारे भी जाते हैं।

जब अमरूद बना विकल्प, बढ़ी आमदनी
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जब अमरूद बना विकल्प, बढ़ी आमदनी

गेहूँ की खेती छोड़ 80 हज़ार रुपये प्रति एकड़ की लागत से 12 एकड़ में अमरूद के 2400 पेड़ लगाया। दिल्ली-मुम्बई के बाज़ारों में बेची फ़सल और तीन गुना दाम पाया।

गुड़ में कम मुनाफ़ा देख डरें नहीं, नये रास्ते ढूँढ़े
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गुड़ में कम मुनाफ़ा देख डरें नहीं, नये रास्ते ढूँढ़े

किसानों को यदि पैसों की तत्काल ज़रूरत है तो चीनी मिलों की ऊँची कीमत भी उसे रास नहीं आती। वैसे गुड़ बनाने वाले ग्रामीण उद्यमी भी किसान ही हैं। गन्ने के रस में ‘वैल्यू एडीशन’ करके गुड़ बनाते हैं और मंडी में बेचकर कमाई करते हैं। मंडी में इन्हें गुड़ का दाम फ़ौरन या हफ़्ते-दस दिन में हो जाता है। इन्हें चीनी मिलों की तुलना में ये प्रक्रिया ज़्यादा सुविधाजनक लगती है।

भूमिहीन किसान कैसे बनें आत्मनिर्भर? - किसान बलिराम कुशवाहा की कहानी
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भूमिहीन किसान कैसे बनें आत्मनिर्भर? – किसान बलिराम कुशवाहा की कहानी

भूमिहीन किसान को अगर किराये पर ज़मीन लेकर खेती करनी हो तो उसकी फसलों का चुनाव ऐसा ज़रूर होना चाहिए, जिससे वो खेत का किराया और फसल की लागत निकालने अलावा अपने परिवार के लिए अनाज और गृहस्थी चलाने लायक नियमित आमदनी हासिल कर सकें।

'सरकारों के भरोसे रहे तो नहीं होगा किसानों का भला'
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‘सरकारों के भरोसे रहे तो नहीं होगा किसानों का भला’

विनय कुमार कहते हैं कि कृषि क़ानूनों से होने वाले नुकसानों को किसान तो अच्छी तरह से समझ रहे हैं, लेकिन शहरी आबादी को इसकी कोई समझ नहीं है। शहरी लोग ये समझ ही नहीं पा रहे कि ये क़ानून कैसे ख़ुद उनके लिए भी बेहद नुकसानदेह हैं। क्योंकि किसान तो हर हालत में अपनी ज़मीन से अपना घर-परिवार चला लेगा। आने वाले समय में शहरी लोगों के लिए अपना परिवार चला पाना मुश्किल होने वाला है।

मज़दूर Labour Majdoor
एक्सपर्ट किसान

किसान घटे, खेतिहर मज़दूर बढ़े फिर क्यों है श्रमिकों की किल्लत?

देश की कुल खेती योग्य ज़मीन का 54 फ़ीसदी मालिकाना हक महज 10 फ़ीसदी परिवारों के पास है। ज़ाहिर है, इस ज़मीन पर खेती का दारोमदार या तो मशीनों पर है या फिर ऐसे भूमिहीन खेतिहर मज़दूरों और बहुत छोटी जोत वाले किसानों पर, जिनके पास बाकी बची 46 फ़ीसदी भूमि का मालिकाना हक़ है। लेकिन ये तबका बहुत बड़ा है। खेती-किसानी से जुड़े 90 फ़ीसदी परिवार इसी तबके के हैं। यही तबका खेतिहर मज़दूर है, शहरों को पलायन करता है और खेती में बढ़ते मशीनीकरण की मार भी झेलता है।

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कोरोना की ताज़ा लहर ने किसानों की भी मुश्किलें बढ़ाई

छत्तीसगढ़ के रबी, बिहार में गेहूँ, महाराष्ट्र में अंगूर और राजस्थान में जीरा के किसानों पर कोरोना की ताज़ा लहर की वजह से दोहरी मार पड़ रही है। बिचौलियों की पौ-बारह हो रही है।

राकेश टिकैट
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कोरोना की मौजूदा लहर का किसान आन्दोलन पर क्या असर पड़ेगा?

आन्दोलन में शामिल किसानों को मंज़िल की कोई झलक नहीं मिल रही। करीब तीन महीने से बातचीत के मोर्चे पर भी कोई प्रगति नहीं हुई। सरकार ने कृषि क़ानूनों से पीछे हटने का कोई संकेत नहीं दिया। इसीलिए किसानों में अब आन्दोलन को जारी रखने को लेकर नाउम्मीदी भी बढ़ रही है। आन्दोलनकारियों को विरोध प्रदर्शन जारी रखने के लिए फंड की भी दिक्कत हो रही है। शुरुआत में किसान संगठनों के चन्दे के अलावा कुछ एनजीओ और प्रवासी भारतीयों की ओर से आयी मदद भी अब ख़त्म होने को है। इस तरह सारा किसान आन्दोलन प्रतीकात्मक बनता जा रहा है।

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MSP, कृषि कानून और किसान आंदोलन, जानिए PM मोदी ने किस पर क्या कहा?

– परमेंद्र मोहन, खेती-किसानी और राजनीतिक विश्लेषक: संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने धन्यवाद  प्रस्ताव पर चर्चा

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