परमेंद्र मोहन, खेती-किसानी और राजनीतिक विश्लेषक: जब भी बजट आता है, लोगों के मन में पहला सवाल ये होता है कि उनके लिए क्या है? उद्योग जगत हो, नौकरीपेशा मध्यम वर्ग हो या फिर कोई भी, बजट के प्रावधानों से इस सवाल का जवाब तलाशते हैं।
भारत के किसानों यानी किसान ऑफ इंडिया के मन में भी ये स्वाभाविक सवाल उठ रहे हैं कि इस बार के बजट में उनके लिए क्या है ख़ास, तो आइए हम तलाशते हैं इसका जवाब।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य रखा है और वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने जो बजट पेश किया है, वो 2021-22 का है। स्वाभाविक रूप से इसी बजट के प्रावधानों पर निर्भर है किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य। ऐसे में ये जानना ज़रूरी है कि क्या हैं वो प्रावधान, जिससे सरकार ने इस लक्ष्य को हासिल करने की सोची है।
किसानों की आय बढ़ाने का जरिया है, कृषि उपज की ज्यादा कीमत और कृषि से संबद्ध क्षेत्रों से भी आय। कृषि उत्पादों की ज्यादा कीमत के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य पर ज्यादा खरीद की जानी है और वित्तमंत्री ने अपने बजट भाषण में आंकड़ों के जरिये ये बताया कि मौजूदा सरकार ने एमएसपी बढ़ाया और बढ़ी एमएसपी पर खरीद भी बढ़ी। उन्होंने बताया कि 2013-14 में धान की सरकारी खरीद पर 63,928 करोड़ रुपये का भुगतान हुआ था, जो 2019-20 में 1,41,930 करोड़ हो गई और 2020-21 में 1,72,752 करोड़ रुपये भुगतान का अनुमान है।
इसी तरह दलहन खरीद पर 2013-14 में 236 करोड़ रुपये का भुगतान 2019-20 में 8,285 करोड़ तक पहुंचा जबकि 2020-21 में किसानों को 10,530 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया। कपास खरीद में 2013-14 में मात्र 90 करोड़ का भुगतान किया गया था।, जो 2021 में बजट भाषण तैयार होने तक 25,974 करोड़ रुपये पहुंच चुका है।
इन आंकड़ों के जरिये सरकार ने किसानों को ये संदेश दिया है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य के बारे में लागत के डेढ़ गुना भुगतान का जो भरोसा दिया गया था, वो भरोसा बरकरार है और किसानों की आय बढ़ रही है, इस वित्तीय वर्ष में भी बढ़ेगी।
किसानों की आय बढ़ाने के लिए इस बार के बजट में एक बड़ा कदम कृषि लोन है। सरकार ने इस बार किसानों को 16.5 लाख करोड़ रुपये तक लोन देने का लक्ष्य रखा है, जो पिछले साल के बजट में 15 लाख करोड़ रुपये था।
तीसरा कदम अगर कहें तो वो है ऑपरेशन ग्रीन स्कीम। इसमें 22 और उत्पाद शामिल किए गए हैं। वर्तमान में इस स्कीम में केवल टमाटर, प्याज और आलू शामिल थे। अब 25 उत्पाद हो गए हैं और इन फसलों के खराब होने पर किसानों को मुआवजा देने का भी प्रावधान है।
इलेक्ट्रॉनिक राष्ट्रीय बाजार (ई-एनएएम) के तहत 1000 और मंडियों को लाया जाएगा। इस कदम से किसानों को अपने उत्पाद बेचने के लिए ज्यादा मंच उपलब्ध हो सकेंगे।
इसी तरह कृषि उत्पादकता को बढ़ाने के लिए नाबार्ड के तहत 5000 करोड़ रुपये का माइक्रो इरिगेशन फंड बढ़ाकर अब 10000 करोड़ रुपये कर दिया गया है।
ग्रामीण आधारभूत ढांचे के विकास के लिए आवंटन 30,000 करोड़ से बढ़ाकर 40,000 करोड़ रुपये किया गया।
जब हम बात कृषि की करते हैं तो अब इसका दायरा विस्तृत होता जा रहा है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए डेयरी विकास, मत्स्य पालन, मुर्गी पालन, भेड़ पालन, मधुमक्खी पालन जैसे क्षेत्रों को भी प्रोत्साहन दिया गया है।
अंत में ये कहा जा सकता है कि कोरोना आपदा के दौरान भी जिस तरह से कृषि सेक्टर ने 3.4 फीसदी की पॉजिटिव ग्रोथ रेट के साथ ये साबित किया है कि देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ कृषि ही है, उस रीढ़ को मज़बूत करने वाले प्रावधान इस बजट में दिख रहे हैं, हालांकि इन प्रावधानों के ज़मीन पर उतारने की चुनौतियां भी हैं। चुनौतियों और व्यावहारिकता के बीच की खाई जितनी बेहतर से पटेगी, किसानों की आय दोगुनी करने की ओर कदम उतने ही बेहतर तरीके से बढ़ सकेंगे।