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मौजूदा समय में रबी का सीज़न चल रहा है। रबी की मुख्य फसलें गेहूं, सरसों, चना, मटर, मसूर, बरसीम और जई हैं। किसानों ने अपने खेतों में फसल की बुवाई कर ली है। रबी फसलों (Rabi Crops) की देखभाल में किसानों के सामने कई तरह की समस्या देखने को मिलती हैं, जैसे कि पौधों का खराब हो जाना, कीटों से फसल को नुकसान पहुंचना। इन समस्याओं से जुड़े सवालों के जवाबों को लेकर किसान ऑफ़ इंडिया ने बात की एग्रोनॉमी एक्सपर्ट डॉ. विशुद्धानंद से।
गेहूं की फसल में सिंचाई कब करें?
डॉ. विशुद्धानंद कहते हैं कि बुवाई के 20 से 21 दिन बाद गेहूं की फसल की पहली सिंचाई करनी चाहिए। पहली सिंचाई हल्की करनी चाहिए। खेत में जलभराव नहीं होना चाहिए। गेहूं की फसल में लगभग 6 सिंचाई होती है।
गेहूं की फसल में लगने वाले रोग
डॉ. विशुद्धानंद ने बताया कि रबी की मुख्य फसल गेहूं में ब्लैक रस्ट, पीला गेरू रोग और सफेद गेरु रोग लगता है। तीन तरह की रस्ट गेहूं में पाई जाती हैं। इस बीमारी का लक्षण है कि इसमें पत्तियों पर धब्बे बन जाते हैं। इससे किसानों का काफ़ी नुकसान होता है। इससे बचने के लिए गेहूं की बुवाई समय पर करनी चाहिए। जो किसान गेहूं की लेट बुवाई करते हैं, उनमें इन रोगों के होने की आशंका बढ़ जाती है। इन बीमारियों को कंट्रोल करने के लिए किसानों को फसल चक्र अपनाना चाहिए।
गेहूं फसल में फ़र्टिलाइज़र का इस्तेमाल
रबी फसल में फ़र्टिलाइज़र की ज़रूरत पड़ती है। किसान मुख्य तौर पर यूरिया, पोटाश और डीएपी का इस्तेमाल करते हैं। संतुलित मात्रा के बारे में बात करें तो खेत में 120 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फ़ॉस्फ़ोरस और 40 किलोग्राम पोटाश की प्रति हेक्टेयर में ज़रूरत पड़ती है। ये फ़र्टिलाइज़र खेती में बीज की बुवाई के समय ही इस मात्रा में देते हैं। नाइट्रोजन को दो डोज़ में देना चाहिए। पहली मात्रा फसल की जॉइंट स्टेज यानि कि कल्ले निकलने पर पर देते हैं।
नाइट्रोजन का इस्तेमाल गेहूं की बुवाई के 30 दिन बाद करते हैं। नाइट्रोजन की दूसरी डोज़ लेट जॉइंट स्टेज पर देनी चाहिए। इस तरह से फ़र्टिलाइज़र का इस्तेमाल करने से उत्पादन बढ़ता है। इससे किसानों के लिए मुनाफ़े की संभावना बढ़ जाती है।
फसल को जानवरों से कैसे बचाएं?
डॉ. विशुद्धानंद कहते हैं किसानों को फसल को जानवरों से बचाने के लिए मशक्कत करनी पड़ती है। कई तरह के जानवर फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं। इनमें मुख्य तौर पर नीलगाय फसल को ज़्यादा नुकसान पहुंचाती हैं। इससे बचने के लिए किसान अपने खेत को चारो तरफ़ से तारों से कवर कर लें।
अगर फिर भी नीलगाय किसानों की फसल को नुकसान पहुंचाती हैं तो इस समस्या के समाधान के लिए किसान सबसे पहले नीलगाय का गोबर लेलें। नीलगाय का 10 किलोग्राम गोबर और गाय का मूत्र 10 किलोग्राम को 200 लीटर पानी में मिला कर घोल बना लें। इस घोल का छिड़काव खेत पर करने से नीलगाय से फसल का बचाव कर सकते हैं।
फसल में रोगों से बचाव कैसे करें?
रोगों से बचाव के लिए किसानों को गेहूं की उन्नत किस्मों के बीजों का इस्तेमाल करना चाहिए। इन रोगों से बचाव के लिए एचडी 2733, एचडी 2428, एचडी 2179, एचडी 2425, पी डब्ल्यू टू 343, एचयू डब्ल्यू 291 जैसी किस्मों का इस्तेमाल करना चाहिए। अगर दूसरे तरीके की बात की जाए तो एक्सपर्ट की सलाह पर दवाइयों का छिड़काव कर सकते हैं। बीमारियों से बचाव के लिए किसानों को समय से बुवाई और बीजों का शोधन भी करना चाहिए।
फसल के रोग और बचाव
डॉ. विशुद्धानंद जानकारी देते हैं कि जब पौधे में दाना निकलने की स्टेज होती है, अगर उस पौधे में रोग लगा हो तो दाने की जगह काले रंग का चूर्ण निकलता है। इसमें एक गंध पैदा होती है। ये करनाल बंट की पहचान होती है। इससे बचने के लिए बीज का शोधन करना चाहिए। 4 घंटे के लिए बीज को पानी में भिगोने के लिए डालना चाहिए। उसके बाद धूप में सुखाने के बाद खेत में बीज की बुवाई करनी चाहिए। कंडवा रोग ज़्यादा नमी वाले इलाकों में फैलता है। ये बीमारी एक बाली से दूसरी बाली में फैलती है। अगर ये रोग बार-बार आ रहे हैं तो किसान को फसल चक्र अपनाना चाहिए।
रबी फसलों को पाले से कैसे बचाएं?
रबी सीज़न में जो मटर, गेहूं, सरसों और चने की फसल खेत में बोई गई हैं, पाले से फसल को बचाने के लिए किसान खेत के चारों ओर धुंआ कर सकते हैं। ये पुरानी विधि है। अगर अन्य विधि की बात की जाए तो खेत में किसान हल्की सिंचाई कर दें। इस सिंचाई से पाले की समस्या से राहत मिल सकती है।
कैसे फसल को कीट-पतंगों से बचाएं?
डॉ. विशुद्धानंद आगे बताते हैं कि किसानों को गर्मियों में अपने खेतों की गहरी जुताई करनी चाहिए। सूर्य की रोशनी से सारे कीट-पतंगे मर जाते हैं। इसके साथ ही कीट पतंगों का लाइफ़ साइकिल ब्रेक होता है। इससे कीट-पतंगे फसलों को नुकसान नहीं पहुंचा पाते। इसके साथ ही किसान भाइयों को फसल चक्र को ज़रूर अपनाना चाहिए। सरसों की फसल में माहू लगती है। इससे बचने के लिए नीम के तेल का स्प्रे करें। किसान सरसों की समय पर बुवाई करें।
अगर किसान पछेती बुवाई कर रहे हैं तो माहू कीट लगने की आशंका बढ़ जाती है। सरसों में सफेद मक्खी भी लगती है। ये मक्खी फ्लावरिंग स्टेज के समय फूल को खराब कर देती हैं। इस कारण सरसों की फलियां अच्छी नहीं बनती। इसके इलाज के लिए मैलाथियान दवा और फास्फोमिडान का इस्तेमाल एक्सपर्ट की सलाह पर कर सकते हैं।
चने की खेती में लगने वाले रोग
उकठा रोग चना में खासकर लगता है। ये रोग पानी की कमी के कारण लगता है। इसमें पत्तियां मुरझा जाती हैं। अगर पौधे को उखाड़ते हैं तो पौधे की जड़ो में काले धब्बे आ जाते हैं।चने की फसल में उकठा रोग से बचने के लिए रोग प्रतिरोधक क्षमता वाली किस्मों का उपयोग करना चाहिए जैसे कि पूसा 256, उदय, चमत्कार आदि वैरायटी का इस्तेमाल कर सकते हैं। चने की खेती में फली छेदक नाम का भी कीट लगता है। ये फली में घुस कर उसको खोखला कर देता है। किसान उन्नत बीजों का इस्तेमाल करें जैसे की वरदान, विशाल, रागनी। इन किस्मों का उपयोग करके इस बीमारी से फसलों का बचाव कर सकते हैं। रासायनिक समाधान भी कर सकते हैं।
फसल तैयार होने के बाद लगने वाले कीट
फसल पकने के बाद दीमक का प्रकोप देखने को मिलता है। चूहे से भी फसल को काफ़ी नुकसान होता है। इसके लिए एल्यूनियम फॉस्फेट की तीन ग्राम गोली का इस्तेमाल करना चाहिए। अगर आप समय पर बुवाई और सिंचाई करेंगे तो चूहों के आने और दीमक लगने जैसी समस्याएं नहीं आएंगी।
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