एक्सपर्ट किसान ऑफ़ इंडिया रावलचंद पंचारिया ने ईज़ाद की सफेद शकरकंद, उनसे जानिए जैविक खेती के मंत्र

फ़ार्म में खुद तैयार करते हैं जैविक खेती से जुड़े उत्पाद

रावलचंद पंचारिया ने 2014 में जैविक खेती शुरू की। उनकी उगाई सफेद शकरकंद की ख़ास किस्म ने उन्हें पहचान दिलाई। किसान ऑफ इंडिया के मंच से उन्होंने अपने अनुभव और सुझाव देश भर के किसानों से साझा किया है।

मेरे सभी किसान भाइयों को मेरा नमस्कार। मैं रावलचंद पंचारिया राजस्थान के जोधपुर जिले के नौसर गाँव का रहने वाला हूं। आज मैं आपसे किसान ऑफ़ इंडिया मंच के माध्यम से जैविक खेती के अपने अनुभव और शकरकंद के अपने नए प्रयोग के बारे में बताने जा रहा हूं। मैं पिछले 6 सालों से कुल मिलाकर 30 बीघे ज़मीन पर जैविक खेती कर रहा हूं।

पंद्रह बीघा में लाल शकरकंद भी बोई हुई है। लाल शकरकंद से सिलेक्शन विधि के ज़रिए मैंने अपने खेत में तीन बीघा क्षेत्र में सफेद शकरकंद भी उगाई है, जो मेरी खुद की ईज़ाद की गई किस्म है।

छोटी उम्र में ही घर की बागडोर संभाली
1998 में पिता की आकस्मिक मौत के बाद घर का सबसे बड़ा होने के नाते मेरे ऊपर परिवार की सारी ज़िम्मेदारी आ गईं। उस वक़्त मैं नौवीं कक्षा में था। नौवीं कक्षा पास करने के बाद मैं सीधा नौकरी करने लगा। जोधपुर से लेकर मद्रास और फिर बॉम्बे, मैंने 1999 से 2002 तक नौकरी की। तनख़्वाह बहुत कम थी। उसके बाद 2003 में मैंने गाँव में दुकान लगा ली। साल 2003 से 2014 तक दुकान चलाई। एक से दो, दो से तीन दुकान बढ़ाते गया और छोटा भाई भी बैठने लगा।

2014 में शुरू की खेतीआज जुड़े हैं कई किसान 

गाँव में 30 बीघा की पुश्तैनी ज़मीन थी। 2014 में काम थोड़ा ठीक चलने लगा। फिर मैंने सोचा मैंने नौकरी भी कर ली और अपना बिज़नेस भी लगवा लिया, लेकिन शरीर को स्वस्थ रखना भी ज़रूरी है। जो हम खा रहे हैं, जो हम ला रहे हैं उसमें कितनी मिलावाट है। खाना ही शुद्ध नहीं है। बीमारियां हो रही हैं हर तरह की। इसलिए मैंने छोटे भाई को दुकान की ज़िम्मेदारी देकर 2014 में खेती शुरू कर दी।

शकरकंद की खेती ( sweet potato farming )

गाँव के लोगों ने ही शुरू कर दिया अच्छा भाव देना 

पुश्तैनी ज़मीन बीस साल से खाली पड़ी थी। मैंने खेती इस सोच के साथ शुरू की कि घर में ही अनाज उग जाएगा। इससे पैसों की बचत तो होगी ही साथ ही स्वास्थ्य भी अच्छा रहेगा। ऐसे धीरे-धीरे अनाज अच्छा होने के कारण प्रचार-प्रसार होने लगा तो मेरे गाँव के लोगों ने ही अच्छा भाव देना शुरू कर दिया। जोधपुर क्षेत्र के ही करीब 100 घर ऐसे हैं जो सीधा ही हमसे माल खरीदते हैं। मैंने सब्जियां भी लगानी शुरू कर दी। खेती से जुड़े नए प्रयोगों में मेरा हमेशा से रुझान रहा है।

ऐसे ही मैंने शकरकंद की खेती एक से तीन बार ट्रायल पर लगाई। इसमें मुझे एक अलग किस्म की शकरकंद दिखाई दी सफेद रंग की। उसके बाद मैंने उनकी तीन से चार साल तक अलग बुआई की।

शकरकंद की खेती ( sweet potato farming )

सफेद शकरकंद ने दिलाई पहचान 
जहां जमीन सख्त है, वहां शकरकंद छोटी हो रही है, और जहां रेतीली है वहां बड़ी बन रही है। इसके लिए मैंने कई नए नवाचार प्रयोग किए। लाल शकरकंद से सिलेक्शन विधि के ज़रिए अपने खेत में तीन बीघा क्षेत्र में सफेद शकरकंद की फसल उगाई। नतीजा ये हुआ कि आकार, रंग और गुणवत्ता में सफेद शकरकंद ने लोगों को आश्चर्य में डाल दिया।

कृषि विश्वविद्यालय समेत कई संस्थानों ने किया सम्मानित

दो से ढाई फ़ीट की शकरकंद की फसल लगने लगी। फिर मैं इसे जोधपुर स्थित कृषि विश्वविद्यालय लेकर गया। वहां उन्होंने मुझे नवाचार के लिए बधाई दी और इसी साल 26 जनवरी में शकरकंद की सफल खेती करने और श्रेष्ठ प्रदर्शन के लिए सम्मानित भी किया। कई और सम्मान पत्रों और अवॉर्ड भी मिले हैं। नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन की आयोजित राष्ट्रीय प्रतियोगिता के लिए भी मेरी गुलाबी शकरकंद की थार मधुर किस्म का चयन हुआ है।

 फ़ार्म में जैविक उत्पादों की यूनिट्स 

मैं पूरी तरह से जैविक पद्धति से खेती करता हूं। पशुपालन के बगैर जैविक खेती संभव ही नहीं है। केंचुआ खाद, गौमूत्र, नाइट्रोजन की आपूर्ति पशुपालन के बिना संभव ही नहीं है। मैंने डेयरी भी शुरू कर दी। थारपरकर नस्ल की 8 -10 गाय मेरे पास हैं। मैंने अपने फ़ार्म में केंचुआ खाद समेत कई जैविक उत्पादों की यूनिट्स लगा रखी हैं। आज करीबन 500 किसान मुझसे जुड़े हैं। मेरे फ़ार्म में जैविक खेती को लेकर उन्हें जैविक खेती से जुड़ी हर ज़रूरी जानकारी दी जाती है।

शकरकंद की खेती ( sweet potato farming )

जैविक खेती से बाज़ार पर निर्भरता होगी खत्म

शकरकंद कम पानी में अच्छी पैदावार वाली फसल है। एक बार लगाने के बाद इसकी फसल से पूरी ज़मीन ढक जाती है। ज़मीन ढकने के कारण ज़मीन सूखती नहीं और धूप नहीं लगती है। इसलिए इसको पानी भी कम चाहिए होता है। फसल भी अच्छी बनती है। वहीं जैविक तरीके से की गई खेती में उत्पादन भी अच्छा होगा और भाव भी अच्छे मिलेंगे और ज़मीन भी खराब नहीं होगी। घर का खाद और बीज होगा तो बाजार में निर्भरता नहीं रहेगी। कीटनाशक का इस्तेमाल नहीं करना पड़ेगा और बीज भी नहीं खरीदना पड़ेगा।

मैं अपने किसान साथियों से यही कहना चाहूँगा कि आप भी शकरकंद की खेती कर अच्छा मुनाफ़ा कमा सकते हैं। ये सेहत के लिहाज़ से तो अच्छी है ही साथ ही बाज़ार में इसका दाम भी अच्छा मिलता है। (किसान ऑफ़ इंडिया के किसान एक्सपर्ट रावलचंद पंचारिया के साथ दीपिका जोशी की रिपोर्ट)

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सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।
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