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“अगर इरादे मज़बूत हों, तो कोई भी मंज़िल दूर नहीं होती।” यह पंक्ति बिल्कुल सटीक बैठती है धमतरी जिले की ग्राम पंचायत देवपुर की रहने वाली विमला साहू पर, जिन्होंने केवल आठवीं तक पढ़ाई करने के बावजूद ऑयस्टर मशरूम की खेती को अपनाकर लाखों की आमदनी शुरू कर दी है। उनका सफर आत्मनिर्भरता, मेहनत और लगन की मिसाल है, जो न सिर्फ़ उनके परिवार बल्कि आसपास की महिलाओं के लिए भी प्रेरणा बन चुका है।
शुरुआत का संघर्ष और नया मोड़ (The struggle of the beginning and the turning point)
विमला साहू पहले एक गृहिणी थीं और पारिवारिक ज़रूरतों के लिए दूसरों पर निर्भर रहा करती थीं। साल 2023 में उन्होंने छत्तीसगढ़ राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन बिहान के अंतर्गत “लखपति दीदी योजना” से जुड़कर अपने जीवन में नया अध्याय शुरू किया। उन्होंने डोंगेश्वर धाम महिला ग्राम संगठन और नव ज्योति कृषक अभिरुचि महिला स्व-सहायता समूह के माध्यम से ऑयस्टर मशरूम की खेती में कदम रखा।
ब्लॉक और जिला स्तर की टीम से प्रशिक्षण लेकर उन्होंने सबसे पहले 200 बैग्स में ऑयस्टर मशरूम तैयार किए। पहली ही फ़सल में उन्हें क़रीब ₹24,000 की आमदनी हुई, जिससे उनका आत्मविश्वास और भी बढ़ा। इसके बाद उन्होंने 600 बैग्स में ऑयस्टर मशरूम की खेती शुरू की, जिससे उन्हें तिमाही ₹50,000 की आमदनी हो रही है।
ऑयस्टर मशरूम की खेती से आर्थिक समृद्धि (Economic prosperity from oyster mushroom cultivation)
विमला साहू की मेहनत और तकनीकी जानकारी ने उनके जीवन को पूरी तरह बदल दिया है। ऑयस्टर मशरूम की खेती से उन्हें सालाना ₹1 लाख से अधिक की कमाई हो रही है, जिससे वह अब ‘लखपति दीदी’ के नाम से जानी जाती हैं। उन्होंने अपने परिवार को आत्मनिर्भर बनाया और आसपास की महिलाओं को भी मशरूम उत्पादन का प्रशिक्षण देकर उन्हें सशक्त करने का बीड़ा उठाया है।
अन्य महिलाओं की कहानियां और प्रेरणा (Stories and inspiration from other women)
विमला की सफलता ने पार्वती साहू, मालती पटेल और गायत्री साहू जैसी महिलाओं को भी प्रेरित किया। पार्वती, जो पहले केवल गृहिणी थीं, अब ऑयस्टर मशरूम की खेती कर आर्थिक रूप से सशक्त हो चुकी हैं। मालती पटेल, जो पहले पारंपरिक खेती करती थीं, अब मशरूम उत्पादन से अतिरिक्त आमदनी प्राप्त कर रही हैं। गायत्री साहू, जो कृषि मित्र के रूप में चुनी गईं, अब न केवल खुद की आय बढ़ा रही हैं, बल्कि अपने बच्चों को भी अच्छे स्कूल में पढ़ा पा रही हैं।
ऑयस्टर मशरूम की खेती की विधि (Method of cultivation of oyster mushroom)
ऑयस्टर मशरूम की खेती करना अपेक्षाकृत सरल और कम लागत वाली प्रक्रिया है। इसके लिए एक किलो बीज (स्पॉन) और दस किलो भूसे की आवश्यकता होती है। सबसे पहले भूसे को अच्छी तरह धोकर कीटाणुरहित किया जाता है और फिर सूखने दिया जाता है। इसके बाद भूसे में मशरूम का बीज मिलाकर पॉलीथीन की थैलियों में भर दिया जाता है। इन थैलियों में हवा के लिए छेद किए जाते हैं।
लगभग 18-20 दिनों में यह प्रक्रिया पूरी हो जाती है, और 3-5 दिनों में मशरूम फ़सल के रूप में तैयार हो जाती है। इस तकनीक से एक बार में 50-60 किलो तक मशरूम का उत्पादन किया जा सकता है। ऑयस्टर मशरूम की खेती विशेष रूप से छोटे किसानों और महिलाओं के लिए लाभदायक है क्योंकि इसमें पूंजी कम लगती है और लाभ ज़्यादा होता है।
बाज़ार और लाभ की गणना (Market and profit calculation)
विमला साहू जैसे किसान ऑयस्टर मशरूम की खेती से मशरूम को ₹150 से ₹200 प्रति किलो की दर से बेच रहे हैं। यह कारोबार न केवल लाभदायक है, बल्कि स्वास्थ्य की दृष्टि से भी मशरूम एक पोषक तत्वों से भरपूर उत्पाद है, जिससे बाज़ार में इसकी मांग लगातार बढ़ रही है।
स्वावलंबन की ओर बढ़ते कदम (Steps towards self-reliance)
विमला साहू का उदाहरण यह बताता है कि यदि महिला सशक्तिकरण को सही दिशा मिले, तो वो समाज में बड़ा बदलाव ला सकती हैं। उन्होंने अपनी मेहनत और ऑयस्टर मशरूम की खेती के माध्यम से यह सिद्ध किया है कि सीमित संसाधनों में भी बड़ा मुकाम हासिल किया जा सकता है। अब वह अपने गांव की महिलाओं को प्रशिक्षित कर आत्मनिर्भरता की राह दिखा रही हैं।
निष्कर्ष (Conclusion)
ऑयस्टर मशरूम की खेती न सिर्फ़ कम लागत में बेहतर आमदनी का ज़रिया है, बल्कि यह ग्रामीण महिलाओं के लिए आत्मनिर्भरता की कुंजी भी बन रहा है। विमला साहू की सफलता कहानी हर उस महिला के लिए प्रेरणास्त्रोत है, जो अपनी मेहनत और लगन से अपने परिवार और समाज को नई दिशा देना चाहती है। अगर आपके पास ज़मीन नहीं भी है, तब भी ऑयस्टर मशरूम की खेती करके आप अच्छी कमाई कर सकते हैं – बस ज़रूरत है तो सही जानकारी और संकल्प की।
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