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आज जब खेती में आधुनिकता और नवाचार की बात हो रही है, तो मशरूम की खेती किसानों और ख़ासकर महिलाओं के लिए एक सशक्तिकरण का साधन बन रही है। मशरूम एक ऐसा फ़सल विकल्प है जो कम ज़मीन, कम संसाधन और कम समय में बेहतर मुनाफ़ा देता है। ख़ास बात यह है कि इसे छोटे स्तर से शुरू करके बड़े कारोबार में बदला जा सकता है, और यही वजह है कि आज कई ग्रामीण महिलाएं भी मशरूम की खेती से न केवल आत्मनिर्भर बन रही हैं, बल्कि दूसरों के लिए मिसाल भी पेश कर रही हैं।
मऊ जिले की महिलाओं की सफलता की कहानी (Success story of women of Mau district)
उत्तर प्रदेश के मऊ जिले में मशरूम की खेती अब केवल एक कृषि तकनीक नहीं बल्कि महिलाओं के जीवन को बदलने वाला माध्यम बन चुकी है। शाहपुर गांव में दो साल पहले शुरू हुई एक परियोजना में उद्यान विभाग से अनुदान लेकर मशरूम की आधुनिक तकनीक को अपनाया गया। इस परियोजना की ख़ास बात यह है कि इसमें करीब 200 महिलाओं को प्रशिक्षण के साथ-साथ रोजगार भी मिला है। पहले जिन महिलाओं को काम के लिए दूसरे राज्यों में जाना पड़ता था, अब वे अपने गांव में ही आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बन चुकी हैं।
इस परियोजना में प्रतिदिन लगभग 20 कुंतल मशरूम का उत्पादन होता है। यही नहीं, कई महिलाएं प्रशिक्षण के बाद स्वयं भी मशरूम की खेती कर रही हैं और दूसरों को भी प्रोत्साहित कर रही हैं। महिलाओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आभार व्यक्त किया, जिनकी सरकार की योजनाओं से उन्हें यह अवसर मिला।
क्यों करें मशरूम की खेती? (Why cultivate mushrooms?)
मशरूम की खेती करने के कई फायदे हैं। सबसे पहली बात, यह कम ज़मीन और सीमित संसाधनों में की जा सकती है। इसके लिए धूप की ज़रूरत नहीं होती और इसे बंद कमरों में, कम लागत पर उगाया जा सकता है। यह उन किसानों और महिलाओं के लिए आदर्श व्यवसाय है जिनके पास ज़मीन कम है या वे घर के आसपास ही काम करना चाहते हैं। मशरूम पोषण से भरपूर होता है और बाज़ार में इसकी अच्छी मांग भी है। इसलिए इसकी खेती एक स्थायी आमदनी का साधन बन सकती है।
मशरूम की किस्में और कौन सी है सबसे बेहतर शुरुआत के लिए? (What other mushroom varieties are best to start with?)
मशरूम की खेती में कई किस्में होती हैं लेकिन शुरुआत करने वालों के लिए ऑयस्टर मशरूम सबसे आसान और सस्ता विकल्प है। इसकी खेती कम तापमान और सीमित सामग्री में हो जाती है। इसके बाद आप सफेद बटन मशरूम, ढ़िगरी मशरूम, ब्लैक इयर मशरूम, शिटाके मशरूम या दुधिया मशरूम की ओर बढ़ सकते हैं। किस्म का चुनाव करते समय यह भी ध्यान रखें कि आपके क्षेत्र में किस प्रकार के मशरूम की मांग है।
ऑयस्टर मशरूम की खेती की नई तकनीकें (New techniques of oyster mushroom cultivation)
ऑयस्टर मशरूम की खेती को और आसान बनाने के लिए दो नई तकनीकों को विकसित किया है। पहली तकनीक में भूसे के साथ गुड़ और गेहूं का चोकर मिलाया जाता है, जबकि दूसरी में एनपीके और कैल्शियम कार्बोनेट मिलाया जाता है। दोनों तकनीकों में यह पाया गया कि मशरूम की फ़सल न केवल जल्दी तैयार होती है (सामान्यतः 30 दिन के बजाय 20 दिन में), बल्कि उसका आकार भी बड़ा और पौष्टिकता अधिक होती है। ये तकनीकें न केवल उत्पादन बढ़ाने में मदद करती हैं, बल्कि किसानों और महिलाओं की मेहनत को भी ज़्यादा मुनाफ़े में बदल देती हैं।
मशरूम फ़ार्म की शुरुआत कैसे करें? (How to start a mushroom farm?)
मशरूम की खेती शुरू करने के लिए बहुत बड़े फ़ार्म की ज़रूरत नहीं होती। आप एक शेड या रूम तैयार करके भी यह काम शुरू कर सकते हैं। यदि पूंजी कम है तो धान की पराली और बांस की मदद से अस्थायी शेड तैयार कर सकते हैं जिसमें लगभग 30 हजार रुपये का खर्च आता है। इसमें आप 12 से 16 स्लैब तैयार करके शुरुआत कर सकते हैं। सफाई और वेंटिलेशन का ध्यान रखें, क्योंकि मशरूम की गुणवत्ता इन बातों पर निर्भर करती है।
मशरूम फ़ार्म बनाते समय कमरे की दिशा पूर्व-पश्चिम रखनी चाहिए, ताकि वायुसंचार बना रहे। फ़ार्म को ऐसी जगह बनाएं जहां प्रदूषण कम हो और नमी का स्तर नियंत्रित किया जा सके। पानी की निकासी, बिजली और सफाई की उचित व्यवस्था अनिवार्य है।
महिला सशक्तिकरण की नई राह (A new path to women empowerment)
मशरूम की खेती का सबसे प्रेरणादायक पहलू यह है कि यह महिलाओं के लिए आत्मनिर्भरता की नई राह खोल रही है। मऊ जिले की महिलाएं इसका जीता-जागता उदाहरण हैं। जिन्होंने इस परियोजना से प्रशिक्षण लेकर न सिर्फ़ खुद को सक्षम बनाया बल्कि अपनी पहचान भी बनाई। अब वे ना केवल अपने परिवार के लिए कमाई कर रही हैं बल्कि दूसरी महिलाओं को भी सिखा रही हैं। इससे गांव की सामाजिक संरचना में भी बदलाव आ रहा है जहां महिलाएं आर्थिक रूप से मज़बूत होकर निर्णय लेने की स्थिति में आ रही हैं।
लागत, मुनाफ़ा और संभावनाएं (Costs, profits and prospects)
मशरूम की खेती कम लागत में शुरू की जा सकती है। उदाहरण के तौर पर ढ़िगरी मशरूम की लागत 15-20 रुपये प्रति किलो होती है और बाज़ार में यह 30-50 रुपये प्रति किलो बिकती है। वहीं दुधिया मशरूम की लागत 20-25 रुपये प्रति किलो आती है और इसकी बाज़ार कीमत 60-80 रुपये किलो तक जाती है। अगर उचित तकनीक और प्रशिक्षण के साथ इसकी खेती की जाए तो छोटे स्तर पर भी महीने में 10,000 से 30,000 रुपये तक की आमदनी पाना संभव है।
निष्कर्ष (Conclusion)
मशरूम की खेती आज न केवल किसानों के लिए एक आय का साधन है, बल्कि यह महिलाओं के लिए आत्मनिर्भरता और सम्मान का प्रतीक बन चुकी है। चाहे बात मऊ की महिलाओं की हो या देशभर में चल रही नई तकनीकों की – यह साफ है कि अगर इरादा मजबूत हो, तो मशरूम जैसी खेती छोटे संसाधनों से भी बड़ा बदलाव ला सकती है। सरकार की योजनाएं, वैज्ञानिकों की तकनीकें और महिलाओं की मेहनत – यह तीनों मिलकर अब ग्रामीण भारत की तस्वीर बदल रही हैं।
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