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क्या एक परंपरा और नवाचार साथ-साथ चल सकते हैं? क्या सदियों पुरानी कृषि प्रथाओं को आधुनिक विज्ञान के साथ जोड़कर एक नई क्रांति लाई जा सकती है? आज हम आपको ले चलेंगे भारत के खूबसूरत लेकिन दूरस्थ कोने में। अंडमान और निकोबार द्वीप समूह (Andaman and Nicobar Islands) के कार निकोबार (Car Nicobar) में, जहां खेती की प्राचीन परंपराएं नई संभावनाओं Agricultural Revolution से जुड़ रही हैं। इस बदलाव के केंद्र में हैं – पैट्रिक, एक दूरदर्शी किसान, जिन्होंने अपनी सोच और मेहनत से अपने गांव में कृषि का एक नया अध्याय लिखा।
परंपरा और प्रकृति का अनूठा मेल
कार निकोबार में कृषि प्रणाली का आधार इसकी पुरानी खेती की परंपराएं है। यहां किसान ‘तुहेट’ प्रणाली के अंतर्गत खेती करते हैं। यानी समुदाय का सामूहिक श्रम, संसाधनों की साझेदारी और प्रकृति के साथ गहरा तालमेल करके खेती होती है।
लेकिन जलवायु परिवर्तन, मिट्टी का क्षरण और घटती पैदावार ने इस परंपरागत खेती को एक बड़ी चुनौती में बदल दिया। इन्हीं चुनौतियों के बीच एक नया समाधान खोजने के लिए आगे आए पैट्रिक जी।
नए प्रयोग की शुरुआत (Agricultural Revolution)
पैट्रिक मानते थे कि परंपरा ज़रूरी है, लेकिन बदलाव के बिना भविष्य संभव नहीं है। इसके लिए उन्होंने नई फसल किस्मों और आधुनिक खेती तकनीकों को अपनाने की सोची। इसी सोच ने उन्हें ICAR-KVK (कृषि विज्ञान केंद्र) की ट्रेनिंग और टूर (TSP) कार्यक्रम से जोड़ा और यहीं सेहुआ बदलाव का सफर शुरू हुआ।
KVK के मार्गदर्शन में, पैट्रिक ने एक नई भिंडी की किस्म अर्का निकिथा को अपनाने का फैसला लिया। ये किस्म सिर्फ उच्च पैदावार ही नहीं देती, बल्कि रोग प्रतिरोधी भी है, खासकर येलो वेन मोज़ेक वायरस के खिलाफ।
पैट्रिक ने जैविक खेती को प्राथमिकता दी
KVK के विशेषज्ञों ने उन्हें सिखाया कि कैसे प्राकृतिक तरीकों से फसल को सुरक्षित रखा जा सकता है। उन्होंने केमिकल्स छोड़कर कुछ नई तकनीकें अपनाईं।
1.नीम का तेल
2.ब्रह्मास्त्र और नीमास्त्र जैविक कीटनाशक
3.जैव संघ का इस्तेमाल
रिश्तों की खेती, मुनाफे की बढ़त
पैट्रिक ने 3,000 वर्ग मीटर भूमि पर भिंडी की खेती शुरू की। जिसमें उनकी उपज 33.9 क्विंटल रही। वहींं बिक्री मूल्य 80 रुपये प्रति किलोग्राम था। भिंडी की खेती से कुल कमाई 2,71,200 रुपये हुई। और जब लागत निकाली गई तो ये 90,000 रुपये थी। जिससे पता चलता है रि उनका शुद्ध लाभ 1,96,200 रुपये था।
पैट्रिक की सफलता उनके खेत तक सीमित नहीं रही। उनकी भिंडी की गुणवत्ता इतनी शानदार थी कि बाज़ार में इसकी भारी मांग बढ़ गई। स्थानीय उपभोक्ता अब जैविक सब्ज़ियों के फायदे समझने लगे थे और उनकी भिंडी की मांग आपूर्ति से भी अधिक हो गई। उनकी ये सफलता पूरे समुदाय के लिए प्रेरणा बन गई।
एक किसान से एक लीडर तक का सफ़र
पैट्रिक के खेत पर अब दूसरे किसानों को भी खेती के नये तरीके सीखाने लगे। नये किसान ये देखना चाहते थे कि ये नई तकनीक कैसे काम करती है। अर्का निकिथा भिंडी (Arka Nikitha Bhindi) की सफलता ने पूरे क्षेत्र में जैविक खेती को लेकर एक नई उम्मीद जगा दी।
अब कई किसान केमिकल फर्टिलाइज़र छोड़कर जैविक तरीकों की ओर बढ़ रहे हैं। क्योंकि जब एक किसान आगे बढ़ता है, तो पूरा समुदाय आगे बढ़ता है।