Banana Fiber: केले के रेशे से कपड़ा बना रहे बुरहानपुर के दिलावेज़ हुसैन, बेकार केले के तनों से Fashion Fabric

मध्य प्रदेश के बुरहानपुर के दिलावेज़ हुसैन ने पर्यावरण के अनुकूल व्यवसाय चुना है। वो केले के रेशे से कपड़ा बना रहे हैं। ये कपड़ा न सिर्फ़ पूरी तरह प्राकृतिक और स्किन-फ़्रेंडली है, बल्कि फ़ैशन और निर्यात के क्षेत्र में भी अपनी पहचान बना रहा है।

Banana Fiber केले के रेशे से कपड़ा

मध्य प्रदेश के बुरहानपुर ज़िले के दिलावेज़ हुसैन ने कपड़ा उद्योग को एक नई दिशा दी है। उनका कदम पर्यावरण के साथ-साथ स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी मज़बूत कर रहा है। वो केले के रेशे से कपड़ा बना रहे हैं- एक ऐसा कपड़ा जो पूरी तरह प्राकृतिक, टिकाऊ और स्किन-फ्रेंडली है।

केले के रेशे से कपड़ा कैसे बनाया जाता है? (How Is Fabric Made From Banana Fiber?)

बुरहानपुर में बड़े पैमाने पर केले की खेती होती है। आमतौर पर फल निकालने के बाद केले के तनों को फेंक दिया जाता है, लेकिन दिलावेज़ हुसैन इन्हीं तनों के रेशे से कपड़ा तैयार कर रहे हैं। इन तनों से रेशा निकालकर उसे प्रोसेस किया जाता है, जिससे साड़ियों, शर्टों और अन्य फैब्रिक उत्पादों के लिए धागा बनाया जाता है।

केले के रेशे से कपड़े की ख़ासियतें (Unique Features Of Banana Fiber Fabric)

  • पूरी तरह प्राकृतिक: केले के रेशे से कपड़ा किसी भी तरह के रासायनिक तत्वों से मुक्त होता है, जिससे ये त्वचा के लिए एकदम सुरक्षित है।

  • आरामदायक और हल्का: ये कपड़ा पहनने में बहुत हल्का और गर्मी में ठंडक देने वाला होता है।

  • पर्यावरण के अनुकूल: इसे  बनाने की प्रक्रिया ज़ीरो वेस्ट मॉडल पर आधारित है।

  • डिज़ाइनर लुक: इस कपड़े पर आकर्षक डिज़ाइनों की कढ़ाई भी की जा सकती है, जिससे ये फैशन की दुनिया में भी लोकप्रिय हो रहा है।

Banana Fiber: केले के रेशे से कपड़ा बना रहे बुरहानपुर के दिलावेज़ हुसैन, बेकार केले के तनों से Fashion Fabric

लागत और बढ़ती डिमांड (Cost And Rising Demand)

एक मीटर केले के रेशे से कपड़ा बनाने में लगभग ₹900 तक का खर्च आता है। इसके बावजूद इसकी प्राकृतिक गुणवत्ता और टिकाऊपन को देखते हुए भारत ही नहीं, विदेशों में भी इसकी मांग लगातार बढ़ रही है। पहले जहां सिर्फ़ साड़ियां बनती थीं, अब शर्ट और अन्य परिधान भी बनाए जा रहे हैं।

ग्रामीणों को रोज़गार और आत्मनिर्भरता (Employment & Self-Reliance For Rural Communities)

दिलावेज़ का ये कदम ग्रामीणों के लिए रोज़गार का नया रास्ता भी बना है। रेशा निकालने से लेकर कपड़ा बुनने तक की प्रक्रिया में कई स्थानीय महिलाएं और कारीगर शामिल होते हैं। इस तरह केले के रेशे से कपड़ा न केवल पर्यावरण-संवेदनशील है, बल्कि सामाजिक रूप से भी फ़ायदेमंद है।

भविष्य की संभावनाएं (Future Prospects)

अगर इस पहल को और बड़े स्तर पर सरकारी समर्थन और तकनीकी मदद मिले, तो ये नवाचार किसानों की आय बढ़ा सकता है, ग्रामीण उद्योग को विकसित कर सकता है और भारत को वैश्विक टिकाऊ वस्त्र बाज़ार में नई पहचान दिला सकता है।

केले के रेशे से कपड़ा बनाना एक शानदार उदाहरण है कि कैसे स्थानीय संसाधनों और रचनात्मक सोच से पर्यावरण की रक्षा, रोज़गार सृजन और आत्मनिर्भरता को एक साथ बढ़ावा दिया जा सकता है।

सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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