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एग्री बिज़नेस यानी कृषि से जुड़े व्यवसायों में भी अपार संभावनाएं हैं, ज़रूरत है तो बस इनोवेटिव सोच की। और जो व्यक्ति इनोवेटिव सोच के साथ एग्री बिज़नेस शुरू करता है वो न सिर्फ़ इस क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बना लेता है, बल्कि उसका पर्यावरण सरंक्षण में भी अहम योगदान देता है। कुछ ऐसा ही काम किया है जयपुर के भीमराज शर्मा ने। उन्होंने गोबर जिसे ज़्यादातर सिर्फ़ खाद के रूप में ही इस्तेमाल किया जाता है, उसे एक बेशकीमती संसाधान बना दिया है और इससे विभिन्न प्रकार के उत्पाद बना रहे हैं।
उन्होंने Gaukriti नाम से एक एग्री बिज़नेस शुरू किया, जो गोबर से कागज़, बीज वाली राखियां से लेकर दीपक तक कई तरह के पर्यावरण अनुकूल उत्पाद बनाता है। कैसे शुरू किया उन्होंने ये बिज़नेस और उनके ये उत्पाद पर्यावरण सरंक्षण में किस तरह से भूमिका निभा रहे हैं, इन तमाम मुद्दों पर उन्होंने विस्तार से चर्चा की किसान ऑफ इंडिया के संवाददाता सर्वेश बुंदेली के साथ।
गाय के गोबर को बनाया संसाधन (Cow dung made into a resource)
भीमराज शर्मा का कहना है कि लोग गाय के हित के बारे में सिर्फ़ बात करते हैं, मगर सिर्फ़ बातों से कुछ नहीं होगा। गाय की रक्षा के लिए उसे स्वावलंबी बनाना होगा। गाय दूध तो हमेशा नहीं देती है, मगर गोबर तो हमेशा देती है, इसलिए उसे स्वावलंबी बनाने के लिए उसके गोबर का सही इस्तेमाल ज़रूरी है। भीमराज शर्मा को लगा कि गाय के गोबर को काम में लाकर अगर कई उत्पाद बनाए जाए तो गाय की अहमियत भी बढ़ेगी।
फिर उन्होंने गौकृति नाम से एक एग्री बिज़नेस की शुरुआत की और सबसे पहले गोबर से दीये बनाएं। वो बताते हैं कि जब उन्होंने शुरुआत की तब कोई भी गोबर से उत्पाद नहीं बनाता था, लेकिन अब बहुत से लोग गोबर से अलग-अलग चीज़ें बना रहे हैं। भीमराज बताते हैं कि उन्होंने दीये बनाए तो देखा कि ये सिर्फ़ दीवाली पर ही बिके। तो फिर उन्हें लगा कि क्यों कोई ऐसी चीज़ बनाई जाए जो हमेशा लोगों को काम में आए। जिसके बाद उन्होंने पेपर बनाना शुरू किया।
पेड़ों को बचाने के लिए बनाया गोबर से पेपर (Paper made from cow dung to save trees)
भीमराज शर्मा 25 सालों से पेपर प्रिंटिंग का काम करते हैं। रोज़ाना ढेर सारे पेपर का इस्तेमाल होता है, तो उनके मन में ख्याल आया कि क्यों न गोबर से पेपर बनाया जाए। क्योंकि एक टन पेपर बनाने के लिए क़रीब 25-30 पेड़ों को काटा जाता है। तो उन्होंने सबसे पहले कागज़ की शीटे बनाई और बाजार में ले गए। मगर उन्होंने देखा कि इस तरह से ये नहीं बिकेगा तो उन्होंने पेपर से भी अलग-अलग उत्पाद बनाना शुरू कर दिया। वो पेपर से क़रीब 100 प्रोडक्ट बनाते हैं। वो बताते हैं कि लोग जिस चीज़ की डिमांड करते हैं, वो पेपर से बना देते हैं जैसे फोटो फ्रेम, डायरी, हनुमान चालीसा, डिब्बा आदि।
गाय के गोबर से बने पेपर का इस्तेमाल लेज़र प्रिंटिंग, डिजिटल प्रिंटिंग, ऑफसेट प्रिंटिंग आदि में भी किया जा रहा है। भीमराज कहते हैं कि शुरुआत में पेपर की क्वालिटी बहुत अच्छी नहीं थी, लेकिन धीरे-धीरे उसमें सुधार किया गया। गोबर से पेपर बनाने के लिए सिस्टम और मशीनें उन्होंने खुद विकसित की है। भीमराज का कहना है कि अगर वो एक टन पेपर बना लेते हैं तो धरती पर क़रीब 30 पेड़ को कटने स बचा सकते हैं। आपको बता दें कि पेपर बनाने के लिए एकदम ताज़ा गोबर का इस्तेमाल किया जाता है और इसमे थोड़ी भी मिट्टी नहीं होनी चाहिए।
गोबर और बीज से बनाते हैं राखियां (Rakhis are made from cow dung and seeds)
भीमराज पेपर बनाने के साथ ही अनोखी राखियां भी बनाते हैं और इसे पूरे देश में भेजते हैं। उनकी राखियों की खासियत है कि इसे बनाने में गोबर और विभिन्न प्रकार के बीजों का इस्तेमाल होता है, जिसमें कद्दू, मिर्च, भिंडी, गेंदे, दूसरे फूल, जीरा, सरसों के साथ ही और भी कई तरह के बीज शामिल हैं। बारिश के मौसम में कहीं भी फेंकने पर ये बीज जम जाते हैं।
इतना ही नहीं राखियां रखने के लिए भी सीड पेपर का इस्तेमाल किया जाता है। यानी राखी बांधने के बाद जब कोई इसे फेंकता है तो ये पूरी तरह से नष्ट होकर नए पौधों के रूप में उग जाती है और पर्यावरण में किसी तरह का अपशिष्ट नहीं बचता है। वो बताते हैं कि हर साल मोदी जी को उनकी राखी भेजी जाती है और वहां से उन्हें पत्र आता है।
बढ़ा दी गोबर की कीमत (The price of cow dung has increased)
भीमराज कहते हैंकि हमारे देश में क़रीब 150 करोड़ लोग रहते हैं और मान लीजिए की 80 करोड़ लोग राखी बांधते हैं, तो अगर हम 80 करोड़ लोगों को ये राखियां बेच दें तो सोचिए कि गौशाला को कितनी आमदनी हो सकती है। क्योंकि राखी बनाने में बहुत कम गोबर का इस्तेमाल होता है। 1 किलो गोबर से क़रीब 1000 राखियां बन जाती हैं। अगर एक राखी 20 रुपए में भी बिके तो समझ लीजिए कि एक किलो गोबर 20,000 में बिका। वो गौशाला से 10 रुपए किलो के हिसाब से गोबर खरीदते हैं, जिससे उन्हें भी कुछ आमदनी हो जाती है।
विदेशों से भी आते हैं ऑर्डर (Orders come from abroad as well)
रक्षाबंधन का त्योहार हमारे देश में बड़े पैमाने पर मनाया जाता है और बहुत सी विदेश में रहने वाली बहनें भी अपने भाइयो को राखी भेजती है। इसके लिए भीमराज ने 500 रुपए में राखी की एक किट बनाई है जिसमें एक कार्ड, राखी, रोली, चंदन होता है। वो इसे पूरे देश में कहीं भी पहुंचाते हैं। अगर कोई विदेश से भी ऑर्डर करता है कि उसे देश के किसी भी हिस्से में राखी पहुंचानी है, तो गौकृति वो काम करती है।
गौकृति की राखियां फेंकन पर जहां फूलों, वनस्पतियों और सब्ज़ियों के सुंदर पौधे उगते हैं, वहीं मार्केट में मिलने वाली चाइनीज़ राखियां पर्यावरण में कचरे का ढेर ही बढ़ाती है। इसलिए वो लोगों से ऐसी राखियों का इस्तेमाल न करने की अपील करते हैं। क्योंकि उनका मानना है कि पर्यावरण बचाने की ज़िम्मेदारी किसी एक इंसान की नहीं है, बल्कि हम सबको मिलकर इस दिशा में काम करना होगा।
खूबसूरत पैकिंग (Beautiful packing)
अच्छे उत्पाद बनाने के साथ ही उसकी पैकिंग भी सुंदर होनी चाहिए तभी लोग आकर्षित होते हैं। इसलिए भीमराज का कहना है कि उन्होंने गोबर के दीये बनाकर उसे सुंदर तरीके से पैक किया है और उनके सभी दीये एक समान होते हैं। वो बताते हैं कि ये दीये नीमच मध्य प्रदेश में बनाये जाते हैं और सबसे खास बात ये कि दीये बाने का काम जेल के कैदी करते हैं।
वो कैदियों को इसे बनाने की ट्रेनिंग देते हैं। इतना ही नहीं राखियां भी जेल में बंद महिलाएं बनाती हैं। उन्हें भी पहले इसे बनाने का प्रशिक्षण दिया जाता है। भीमराज की ये पहल वाकई सराहनीय है क्योंकि ये न सिर्फ़ कैदियों को जेल में रहकर व्यस्त रखती है और नई स्किल सिखा रही है, बल्कि जेल से निकलने के बाद भी उनके पास काम का एक विकल्प रहेगा। गौकृति इनोवेशन का काम तो कर ही रहे हैं साथ ही कई लोगों को रोजगार भी दे रहा है, जिसमें कैदी भी शामिल हैं।
भीमराज कहते है कि आप कितना भी पढ़ लिख लो, पैसे कमा लो लेकिन पर्यावरण अगर अच्छा नहीं होगा तो सब बेकार हो जाएगा, तो उसे बचाने की दिशा में भी काम करना ज़रूरी है। सबको पर्यावरण के लिए काम करना ही होगा और अगर कोई व्यक्ति पर्यावरण के लिए काम कर रहा है तो उसका सपोर्ट करें।
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