मधुमक्खी पालन एक ऐसा व्यवसाय है जिसे अगर सही तरीके से किया जाए, तो अच्छा मुनाफ़ा कमाया जा सकता है। उत्तर प्रदेश के सहारनपुर के रहने वाले संजय सैनी 1990 से मधुमक्खी पालन (Beekeeping) कर रहे हैं और वो 16 तरह की शहद का उत्पादन कर रहे हैं। मधुमक्खी पालन से जुड़े अहम बातों और ये फ़सलों के लिए कैसे लाभदायक है, इन सभी मुद्दों पर उन्होंने विस्तार से चर्चा की किसान ऑफ इंडिया के संवाददाता सर्वेश बुंदेली के साथ।
2018 में बनाया FPO
संजय सैनी को मधुमक्खियों से ख़ासा लगाव है, इसलिए वो इस व्यवसाय में आए। उन्होंने 1990 में मधुमक्खी पालन (Beekeeping) का काम शुरू किया और 2018 में FPO बनाया जिसके ज़रिए वो मधुमक्खी पालन से जुड़े कई उत्पाद बेच रहे हैं। वो बताते हैं कि भारत में निकला शहद इंग्लैंड में 16000 रुपए किलो तक बिक रहा है। इससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि मधुमक्खी पालन (Beekeeping) में कितनी संभावनाए हैं।
शहद निकालने का तरीका है महत्वपूर्ण
शहद के लिए बहुत फ़ायदेमंद है, मगर तभी जब वो शुद्ध हो। शहद की शुद्धता सुनिश्चित करने के लिए उसे सही तरीके से निकालना ज़रूरी है। संजय सैनी कहते हैं कि शहद का किस रूप में और कैसे कलेक्शन किया जाता है ये बहुत बड़ा विषय है, क्योंकि शहद में लेड यानी सीसे की मात्रा जितनी कम होगी वो उतना ही अधिक शुद्ध होगा।
शहद की विभिन्न क़िस्में
संजय सैनी बताते हैं कि भारत में अभी तक 47 क़िस्म की शहद का कलेक्शन हो चुका है। यानी 47 क़िस्म के फूलों के ऊपर से शहद निकाला जा चुका है जिसमें लीची, यूकेलिप्टस, अकेसिया, शीशम, बबूल, सूरजमुखी, धनिया, सौंफ, सरसों, खजूर, वन तुलसी, मीठी तुलसी, श्यामा तुलसी आदि शामिल है। शहद निकालना एक अलग तकनीक है और उसमें सीसे की मात्रा को कम रखने के लिए कुछ बातों का ध्यान रखना बहुत ज़रूरी है। जैसे मधुमक्खी पालकों को प्रदूषण से एकदम अंदर जाकर शहद का कलेक्शन करना चाहिए।
इसके साथ ही सुपर हनी (सुपर हनी या शहद सुपर, मधुमक्खी के छत्ते में शहद रखने के लिए लगाया जाने वाला बॉक्स होता है) में ही शहद एकत्र करना चाहिए। क्योंकि मधुमक्खी के बॉक्स का जो तापमान है वो 35 डिग्री तक रहता है, मगर तब जब मधुमक्खी की स्ट्रेंथ होती है। अगर तापमान 50 डिग्री या 4 डिग्री है तो भी मधुमक्खी अंदर का तापमान 35 डिग्री तक बनाए रखेगी, उनकी अपनी एक तकनीक, गतिविधि और कार्यप्रणाली है।
मधुमक्खियों के बाय प्रोडक्ट
मधुमक्खियां फूलों के ऊपर शहद बनता है और बी पॉलन या पराग इसका एक हिस्सा है जिसे सुपर फूड कहा जाता है। यह बहुत हाई एनर्जिक होता है। मधुमक्खी पालन (Beekeeping) के अन्य उत्पाद हैं रॉयल जेली है, बी वैक्स, प्रोपोलिस, मधुमक्खी का जहर आदि। इस ज़हर का इस्तेमाल हार्ट पेशेंट दिए जाने वाले इंजेक्शन मे किया जाता है।
अच्छी आमदनी
संजय सैनी बताते हैं कि वैश्विक रूप से मुधमक्खी के जहर की कीमत 5600 रुपए प्रति ग्राम है। रॉयल जेली 25 से 50 हजार रुपए प्रति किलो बिकता है। पराग की बात करें तो अलग-अलग फूलों के पराग 1000 से 5000 रुपए किलो तक बिकते हैं।
औषधि का काम करती है बी वैक्स और शहद
मुधमक्खियों से मिलने वाला वैक्स एक बेहतरीन औषधि है। संजय सैनी कहते हैं कि बी वैक्स एक ऐसी औषधि है जो घुटने के गैप को भर सकती है। प्राकृतिक औषधि होने के साथ ही फेशियल आदि में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है थोड़ा सा अरोमा मिलाकर। अल्सर जैसी बीमारी को भी ये ठीक करने में मददगार है। आगे वो बताते हैं कि एम्स की एक रिसर्च में कहा गया है कि शहद बीटाडीन से 4 गुना अधिक असरकारक है।
इसलिए इसे ज़ख्म पर लगाया जा सकता है। अगर प्रोपोलिस की बात करें तो ये दुनिया की सबसे असरदार एंटीबायोटिक होती है। इसके अलावा पराग सुपरफूड है जो शुगर को तो नियंत्रित करता ही है, साथ ही खून को शुद्ध करता है और कई रिसर्च बताती है कि ये ब्लड कैंसर जैसी बीमारी को खत्म करने में भी सहायक है।
मधुमक्खी को क्यों कहा गया है महान कीट
संजय सैनी बताते हं कि कई रिसर्च मे ये कहा गया है कि अगर मधुमक्खियां खत्म हो गई तो 4 साल के अंदर कोई जीव नहीं बचेगा। मधुमक्खी पर्यावरण को शुद्ध करने के साथ ही 70 प्रतिशत तक फ़सलों का उत्पादन बढ़ाने में मददगार है। इसलिए इन्हें महान कीट कहा जाता है। ये मानव के लिए औषधियां पैदा करने के साथ ही पर्यावरण को शुद्ध करने में मदद करती है।
इसके जितना हाई सेंसर किसी जीव के अंदर नहीं है। करोड़ों मधुमक्खियां साथ में घूमती हैं, उठती है, फिर भी आपस में दुर्घटनाग्रस्त नहीं होती है। ये ज़मीन के 10 फीट नीचे दबे बारूद को भी सूंघ सकती है। साथ ही कई किलोमीटर दूर मौजूद फूल को सूंघकर बता देती है कि किस दिशा में फूल है।
मधुमक्खियों की हिफाज़त
मधुमक्खियों की अहमियत समझाने और उसकी हिफाज़त के लिए संजय सैनी ने बी टेंपल बनवाया है। उनका कहना है कि इन्हें ज़िंदा रखने के लिए पेस्टीसाइड पर रोक लगानी होगी और लोगों को जागरुक करना होगा। वो बताते हैं कि आयुर्वेद में तीन चीज़ों को अमृत बताया गया है, गिलोय, शहद और आंवला को। इसलिए अमृत तुल्य शहद प्राप्त करने के लिए मधुमक्खियों की हिफाज़त ज़रूरी है। वो बताते हैं कि 1 किलो शहद में 8 हजार तक कैलोरी होती है जो किसी दूसरे खाद्य पदार्थ में नहीं होती है।
फ़सल उत्पादन में फ़ायदेमंद
मधुमक्खियां फ़सलों का उत्पादन भी कई गुना बढ़ाने में मददगार है। संजय सैनी कहते हैं मधुमक्खी जो पॉलीनेशन करती है उससे फ़सलों का उत्पादन बढ़ता है। रिसर्च के मुताबिक, इससे नींबू की अलग-अलग वैरायटी के उत्पादन में 170 प्रतिशत तक बढ़ोतरी होती है, वहीं ये तिलहन-दलहन में 35 फ़ीसदी तक उत्पादन बढ़ा देती है। जबकि फलों के उत्पादन में 50 फ़ीसदी तक की वृद्धि होती है।
शहद की 16 क़िस्में
सैनी बताते हैं कि उनके यहां शहद की 16 क़िस्मों का कलेक्शन किया जाता है। अलग-अलग राज्यों से उनके यहां मधुमक्खियां माइग्रेट करती हैं। पिछले 5 सालों से वो आयुष विभाग के साथ मिलकर हिमाचल से सटे पंजाब के जंगलों में अध्ययन कर रहे हैं और उसके बाद वाइल्ड हनी लेकर आए। जिसमें 120 फूलों का कॉम्बिनेशन है मगर सबसे ज़्यादा शीशम और मीठा नीम है। इस वाइल्ड हनी को जर्मनी में टेस्ट करवाया गया, जहां इसे विश्व की नंबर एक शहद माना गया। आगे उनकी योजना कर्नाटक के कॉफी प्लांट पर शहद उत्पादन करने की है, साथ ही वो काली मिर्च, लौंग, इलायची पर भी शहद कलेक्शन की योजना बना रहे हैं।
सरकारी योजनाएं
मधुमक्खी पालन (Beekeeping) को बढ़ावा देने के लिए कई सरकारी योजनाए हैं। सैनी बताते हैं कि प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम (PMEGP) के तहत 50 लाख तक की मदद मिल जाती है। इसमें ओबीसी, एससी महिलाओं को 35 फ़ीसदी सब्सिडी मिलती है, जबकि सामान्य वर्ग को 25 फ़ीसदी सब्सिडी मिलती है। उत्तर प्रदेश के लिए मुख्यमंत्री रोज़गार योजना के तहत 10 लाख, मुख्यमंत्री युवा रोजगार योजना के तहत 25 लाख की सहायता मधुमक्खी पालको को मिल सकती है।
यदि कोई शहद की इंडस्ट्री लगाना चाहते हैं तो AIF योजना के तहत 2 करोड़ तक का सहयोग सरकार से मिलता है, वो भी बिना किसी गारंटी के। इसमें 3 फ़ीसदी भारत सरकार और 3 फ़ीसदी राज्य सरकार द्वारा ब्याज के रूप मे सब्सिडी दी जाती है। PMFME योजना के तहत भी सरकार 2 करोड़ की मदद बिना किसी गारंटी के देती है, यदि कोई प्रोसेसिंग का काम करना चाहता है तो। युवा इन योजनाओं का लाभ उठाकर रोजगार की संभावना तलाश सकते हैं।
निष्कर्ष
संजय सैनी कहते हैं कि शहद और मधुमक्खी पालन (Beekeeping) से मिलने वाले दूसरे उत्पादों का इस्तेमाल करके ही वो स्वस्थ हैं और 25 सालों से दवा का सेवन नहीं किया है। अगर आप भी खुद को और पर्यावरण की सेहत को दुरुस्त रखने के साथ ही अच्छी कमाई करना चाहते हैं, तो मधुमक्खी पालन का व्यवसाय शुरू कर सकते हैं।
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